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________________ हमें मनीषी मुनिवरों, यशस्वी विद्वानों और उत्साहनिष्ठ परिषद्-कार्यकर्ताओं तथा पदाधिकारियों तथा नई दुनिया प्रेस, इन्दौर का सहयोग नहीं मिलता तो इतनी स्वल्पावधि में इसका प्रकाशन लगभग असंभव ही था, अतः हम उक्त सबके हृदय से अत्यन्त कृतज्ञ हैं। उन सबके भी हम अत्यधिक ऋणी हैं जिन्होंने अपनी शुभकामनाएँ भेजकर हमें उत्साहित किया है और हमारी प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप में सहायता की है। हम राजेन्द्र-ज्योति के संपादक-मण्डल के भी हृदय से कृतज्ञ हैं, जिसने कम-से-कम समय में अधिकाधिक उपयोगी सामग्री जुटाकर इस ग्रन्थ को उस परम विभूति के प्रति एक बहुमुल्य श्रद्धाञ्जलि के रूप में प्रस्तुत किया है। प्रधान संपादक डा.प्रेमसिंहजी राठौड़ के भी हम आभारी हैं, जिन्होंने प्राप्त सामग्री को व्यवस्थित और संपादित किया, तथा हर कदम पर हमारा सहयोग किया है। इसी तरह हम भाई श्री बसन्तीलालजी पारेख के भी आभारी हैं, जिन्होंने सही वक्त पर सही कागज उपलब्ध कराकर हमारी कठिनाई को आसान किया है। श्री राजेन्द्र-ज्योति के कोषाध्यक्ष भाई श्री शान्तिलालजी सुराणा की बहुमूल्य सेवाओं को तो हम कभी विस्मृत कर ही नहीं सकते, जिन्होंने आठों प्रहर यह काम बड़े समर्पित भाव और निष्ठा से किया है। ज्ञातव्य है कि प्रकाशन के क्षेत्र में परिषद् का यह सर्वप्रथम चरण है। हम नहीं जानते हमें इस कार्य में कितनी सफलता प्राप्त हुई है, किन्तु हमें विश्वास है कि हमारा यह पुण्यशाली आरंभ समाज को प्रतिक्षण आगे बढ़ायेगा और आत्मोन्नयन में सहायक सिद्ध होगा। हम आश्वस्त हैं कि समाजरूपी दीपक में स्थापित यह "श्री राजेन्द्र-ज्योति" हमारा भावी मार्ग प्रशस्त करेगी और हम अधिक उत्साह के साथ आगामी सेवाकार्य कर सकेंगे। कार्तिक शुक्ल ५, वी.नि.सं.२५०३ सी.बी. भगत, महामन्त्री, अ.भा. श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद् राजेन्द्र-ज्योति Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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