SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मोहन की दीक्षा के लिए आदेश मंगवाया । आदेश आते ही उन्होंने मोहन को संवत् १९३३ माघ सुदी २ को जावरा में अष्टाह्निका महोत्सवपूर्वक दीक्षा प्रदान की। भगवती दीक्षा के बाद मोहन का नया नाम मुनि मोहनविजय रखा गया । __दीक्षा के बाद आप श्रद्धा भक्तिपूर्वक गुरुसेवा करने लगे । आपने योगोद्वहनपूर्वक तेरह आगम ग्रन्थों का पठन किया। संवत् १९३९ मार्गशीर्ष वदी १ को गुरुदेव ने कुक्षी में आपको बड़ी दीक्षा प्रदान की । दीक्षा के बाद आपने इक्कीस चातुर्मास गुरु महाराज के साथ, एक चातुर्मास श्रीमद् विजय धनचन्द्रसूरिजी महाराज के साथ और तेईस चातुर्मास स्वतंत्र रूप से विभिन्न गांवों में किये। आप ग्यारह साल तक गृहस्थावस्था में रहे और चवालीस वर्ष तक साधुजीवन में रहे। इस प्रकार पचपन साल की आयु पूर्ण करके आप कुक्षी (म. प्र.) से स्वर्ग सिधारे । उपाध्यायजी के संस्मरणीय कार्य-दीक्षाएं : १. संवत् १९५९ आषाढ़ सुदी ५ के दिन आपने सियाणा में दो राजपूत यवकों को भगवती दीक्षा प्रदान की और उनके नाम क्रमशः अमृतविजय और धीरविजय रखे । २. संवत् १९६३ ज्येष्ठ सुदी ५ के दिन आपने श्री केसाजी पोरवाल की पुत्री बाई हस्तु को दीक्षा दी और उसका नाम देवश्री रखा। ३. संवत् १९६४ वैशाख वदी २ के दिन आपने भेसवाड़ा में आहोर निवासी हम्माजी पोरवाल की पुत्री श्राविका कुंकु को दीक्षा दी और उसका नाम धर्मश्री रखा। ४. संवत् १९७२ वैशाख सुदी १० के दिन आपने आहोर में जवानजी पोरवाल की पुत्री बाई हीरी को दोक्षा दी और उसका नाम हेतश्री रखा। आपकी प्रवचन शैली से अनेक लोग प्रभावित होते थे श्वेताम्बर, दिगम्बर, स्थानकवासी, वैष्णव आदि अनेक सम्प्रदायों के लोग आपके व्याख्यानों से लाभ उठाते थे। कई गांवों में आपने उपदेश दे देकर स्थानकवासियों को मंदिरमार्गी बनाया। अनेक गांवों के आपसी झगड़े भी आपने मिटाये । संवत् १९६९ में बागरा चातुर्मास में आपने उपधान तप की आराधना करवाई थी। पूज्य आचार्य श्री धनचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज ने आपको संवत् १९६६ पौष सुदी ८ के दिन उपाध्याय पद से अलंकृत किया। प्रतिष्ठांजन शलाकादि कार्य १. संवत् १९६५ ज्येष्ठ सुदी ३ के दिन मन्दसौर में श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरिजी महाराज की चरण पादुकाओं को छत्री में प्रतिष्ठित किया। संवत् १९६८ माघ सुदी ११ के दिन बड़नगर में भगवान श्री महावीर स्वामी आदि ग्यारह मूर्तियों की प्रतिष्ठांजन शलाका भारी समारोह के साथ की। ३. संवत् १९६८ ज्येष्ठ सुदी ११ के दिन अमरावद में श्री आदि नाथ स्वामी की मूर्ति की प्रतिष्ठा की । ४. संवत् १९७२ माघ सुदी १३ के दिन जालोर जिले के देबावल गांव में श्री पार्श्वनाथ भगवान आदि तीन जिन-बिम्बों की प्रतिष्ठा की। ५. इसके बाद आगरा में श्री पाश्वनाथ आदि तीन जिन बिम्बों की प्रतिष्ठा और साथ में नई भूतियों की अंजन-शलाका की। ६. संवत् १९७३ माघ सुदी १० के दिन रोजाणा (म. प्र.) गांव के जिनालय में विराजमान करने के लिए श्री आदिनाथ आदि तीन पाषाण प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की। ७. संवत् १९७५ में खाचरोद नगर में श्री आदिनाथ स्वामी आदि तीन मूर्तियों की प्रतिष्ठा माघ सुदी १० को की और उन्हें मंदिर में पधराया गया। इस प्रकार अनेक प्रकार के धर्मकार्य उपाध्यायजी महाराज ने अपने जीवन में किये। संवत् १९७५ का चातुर्मास आपने कुक्षी नगर में किया। इस चातुर्मास में आपको पक्षाघात की-लकवे की बीमारी हो गई। अनेक डाक्टरों ने आपका इलाज किया पर आपका रोग जरा भी घटा नहीं। वह बढ़ता ही गया। पूर्वकृत कर्म तो सभी को भोगना ही पड़ता है। दो साल छह महीने चार दिन तक आपको असह्य वेदना सहन करनी पड़ी । इसी बीमारी में संवत् १९७७ पौष सुदी ३ की रात को आपने देह त्याग किया अर्थात् आपका स्वर्गवास हो गया। उपाध्यायजी चले गये, पर उनकी स्मृति तो अब भी ताजी ही है और हमेशा ताजी रहेगी। जैसे सुगन्धित वस्तु की सुवास कभी छिपी नहीं रहती, वैसे ही गुण अपने आप चमक उठते हैं। समाज में जब तक धर्मश्रद्धालु श्रावक-श्राविकाएं न होंगी तब तक समाज अस्त-व्यस्त दशा में ही रहेगा। -राजेन्द्र सूरि बी.नि.सं. २५०३ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy