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________________ ५०-पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ 000000000000 ०००००००००००० रा ....... ऊपर उनका गम्भीर चिन्तन भी रहा है। उनके प्रवचनों साध्वी श्री उमरावकवर 'अर्चना' को सुनने पर उनकी विशाल दृष्टि, उनके विराट् व्यक्तित्व, [प्रख्यात विदुषी, वक्तृत्व कला की धनी, चिन्तनशील गम्भीर चिन्तन एवं सब धर्मों तथा धर्म पुरुषों के प्रति लेखिका] आदर भाव के स्पष्ट दर्शन होते हैं। उनके जीवन की परम श्रद्धय प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज के सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ज्ञान के साथ अभिमान दर्शनों का सौभाग्य मझे बहधा मिला है। जब भी देखा, एवं अहंभाव की कालिमा नहीं है। मैंने उन्हें अपने ज्ञान-ध्यान में मस्त पाया। किशोरावस्था में दीक्षा लेकर सूर्य के समान प्रकाश, वे मेवाड़ देश में ही अधिकतर अपनी विहार यात्रा चन्द्रमा के समान शीतलता एवं पुष्प के समान सुगन्धि करते रहते हैं । उधर उनका गौरवपूर्ण वर्चस्व है। प्राप्त की । आपके महान पांडित्य एवं विचार शक्ति के संयम-साधना में उनके चरण सतत बढ़ते चलें । उनके समक्ष महान से महान विचारक एवं तार्किक सहसा अपनी श्री चरणों में मेरा शत-शत वन्दन-अभिनन्दन हो। तर्क शक्ति को भूल जाते हैं, और पूर्ण रूपेण अपनी शंकाओं का समाधान पाकर सन्तुष्ट हो जाते हैं। आपका जीवन केतकी की तरह सुरभित हैं। द्राक्षा की तरह विकसित है। 0 श्री रग मुनि श्रमणसंघ का ही नहीं, सम्पूर्ण स्थानकवासी समाज का विश्व के विराट् पुष्पोद्यान में लाखों पुष्प अपनी परम सौभाग्य है जो इस प्रकार की विभूति प्राप्त हुई सुरभि के द्वारा जनमानस को आनन्दित एवं प्रफुल्लित करते हुए जीवन यात्रा व्यतीत करते हैं। उन्हीं पुष्पों "तुम सलामत रहो हजार वर्ष, का जीवन धन्य है जो विकासशील बनकर अपनी कोमलता हर वर्ष के दिन हो पचास हजार ।" के द्वारा जनमानस के हृदयपटल पर अपनी अमिट छाप मेरी जड़ लेखनी इनकी अनन्त गुणावली को शब्दों अंकित कर देते हैं। पुष्प में तीन गुण होते हैं-कोमलता, की सीमा में नहीं बांध सकती। इनकी महिमा अपरिमित सुगन्धि एवं कमनीयता। इन्हीं तीन गुणों के द्वारा पुष्प है। मेरी सीमित बुद्धि इन विशाल गुणों का अंकन करने में समादरणीय होता है। असमर्थ है। तो भी भक्ति-भावना से निमज्जित होकर मेवाड़ संघ शिरोमणि पूज्य प्रवर्तक शान्तमूर्ति पं० रत्न आपके इस अभिनन्दन ग्रन्थ में अपनी तरफ से यही मंगल गल श्री अम्बालालजी महाराज अपनी शान्त-दान्त कोमल की कामना करती हूँ कि आप दीर्घायु हों, आरोग्य हों और । प्रकृति के द्वारा जनमानस को धार्मिक संस्कारों के द्वारा जैन समाज की यह पताका इसी प्रकार ऊँची उठी रहे आप्लावित करते हुए मेवाड़ प्रान्त में विचरण कर रहे और मैं इनसे सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा ग्रहण कर अपने हैं । आपकी सहज प्रतिभा एवं सागर सम गम्भीरता से जीवन को आदर्शमय बना सकू। मेवाड़ प्रान्तीय धार्मिक श्रद्धालु जनता परिचित है। "Let your knowledge be as wide as the आपका ठोस शास्त्रीय ज्ञान भौतिकवादी चकाचौंध में horizon, your understanding as deep as the पथभ्रान्त मानव के लिए प्रकाश पूज के समान मार्गoceans and your ideas high as the heavens above." दर्शक है। "श्रद्धा के अधखिले फूल ये, अमबिंधे मोती। आचारांग सूत्र के अनुसार-"जहा अन्तो नहा बाहि" इनमें महक रही है झिलमिल 'कुसुम' हृदय की ज्योति ।" आपका जीवन जैसा भीतर वैसा ही बाहर है। आप से अभिनन्दन कई बार साक्षात् दर्शनों का स्वणिम लाभ मिला । आपकी सहज निःसृत निश्छल वाणी एवं नवनीत सम समता-शुचिता-सत्य समन्वित कोमल शान्त प्रकृति प्रत्येक मानव मन को बलात् पावन जीवन दर्शन । धार्मिक क्षेत्र में आकर्षित करती रहती है। कई बार आगम विचारक ! निस्पृह साधक । विवादास्पद विषयों पर गम्भीर चर्चायें करते हुए देखें । लो शत-शत "कुसुम" अभिनन्दन । आपके नेत्रों में कभी रोष-मिश्रित लालिमा नहीं देखी । XXAM AUTANIY DBR IM GAARO Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org -
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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