SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बूझ और सत्य को जनता के गले उतार देने का वाग्वेदगद्य सचमुच अप्रतिहत रहा है । मुझे यह लिखते हुए प्रसन्नता और गौरव का अनुभव होता है कि उनका जीवन ऐसा ही समर्पित जीवन है । उनके अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रसंग को मैं एक महान् प्रसंग मानती हूँ, मुझे कहना चाहिये कि इस सुअवसर पर यह पंक्तियाँ लिखते हुए मेरा हृदय कृतार्थता का अनुभव कर रहा है । जितेन्द्रिय साधक ! आप श्री जी की धीरता, वीरता, नम्रता, गम्भीरता, शांति-प्रियता, निर्भीकता, निष्पक्षता, दयालुता, सेवा भावना, दूरदर्शिता, वाक्पटुता, व्यवहारकुशलता, संयम-साधना एवं ज्ञानाराधना इत्यादि गुणों की ज्योत्सना भू-मण्डल में जगमगा रही है। आपकी मधुरता की स्मृति होते ही मुझे संस्कृत काव्य की ये पंक्तियाँ याद आ जाती है- अधरं मधुरं वदनं मधुरं, नयनं मधुरं हसित मधुरं, हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मथुराधिपतेरखिलं मधुरम् वचनं मधुरं चरितं मधुरं, वसनं मधुरं मधुरं, चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मथुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ ठीक इसी प्रकार आपका बोलना, हँसना, चलना सब कुछ मधुर है। आपके नयनों में चातुर्य, माधुर्य दायें और साथ ही साथ दिव्य एवं भव्य जीवन का सत्य भरा हुआ है | आपके चेतनामय वचन मुर्झाये हुए मानव फूलों को नव चेतना और नव स्फुरणा प्रदान करते हैं । सचमुच आपकी वाणी में एक अलौकिक प्रकार का जादू है जो सुनने वालों के समग्र जीवन को आलोकित कर देता है । परम श्रद्धेय जी के पुनित जीवन से कौन परिचित नहीं होगा । उनके विषय में एक पाश्चात्य दार्शनिक हेगेल की युक्ति मुझे याद आ रही है। "What is well-known is not necessarily known merely because it is well-known." व्यापाक एवं विराट् है उनकी परिचय प्रशस्ति को शब्द श्रृंखला की कड़ियों में आबद्ध करना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है । श्रद्धेय श्री गुरुदेव जैन समाज के उपवन में एक फूल श्रद्धान एवं वन्दना | ४६ बनकर महके । आपकी छत्रछाया में जो भी आता है वह आत्म-विभोर हो जाता है। उनके अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रकाशन के इस अवसर पर यद्यपि मैं इस शरीर द्वारा निकट में नहीं हूँ, तथापि शब्दों के द्वारा सन्निकट होकर अपनी तरह से उनका हार्दिक अभिनन्दन करती हूँ और उनके दीर्घ जीवन और आरोग्यता की कामना करती हूँ । "गुलाब बनकर महक तुझको जमाना जाने, तेरी भीनी-भीनी महक अपना बेगाना जाने ।" "शेर की फूल चुने खूब फिरे दिल शाद रहे, ऐ बागवाँ " चारित्र" चाहती है गुलशन सदा आबाद रहे।" साध्वी श्री कुसुमवती महापुरुषों का जीवन ज्योति स्तम्भ सदृश होता है । इनका जीवन संसार भूले-भटके प्राणियों का पथ-प्रदर्शक होता है । उन्हीं महापुरुषों में श्रद्धय १००८ श्री अम्बालाल जी महाराज साहब का नाम भी उल्लेखनीय है । जीवन सौरभमय, पुष्प सदृश है, जिसकी महक समस्त मेवाड़ को महका रही है । सत्यनिष्ठा, सरलता, निर्भिकता, शान्ति और क्षमा जिनके महान् गुण हैं। इनका जीवन निराला जीवन है, साधना की ज्योति से इनका जीवन ज्योर्तिमय है । संयम की साधना, मानवता की साधना, ज्ञान की साधना से इनका जीवन ओत-प्रोत है । साधना पथ के पथिक बनकर यह उस पथ को प्रशस्त और उज्ज्वल बना रहे हैं। जीवन में आये हुए विकट संकटों तथा उलझी हुई समस्याओं को सुलझाने के लिए यह दिव्य विभूति स्वयं मी धैर्य से कार्य करते हुये विश्व के मानवों को भी शान्त धीर-गम्भीर बनने का सन्देश चहुँ ओर प्रसारित कर रहे हैं । मैंने इनके जीवन को का स्रोत ही प्राप्त हुआ। निमज्जित होकर आत्मा गहराई से देखा, सदा मधुरता उनकी वैराग्य पीयूष धारा में आनन्द से गद्गद् हो गई । विरोधिता की प्रचण्ड आंधी, कष्टों के, अन्धड़-झंझावात उनको अपने गन्तव्य पथ से कभी नहीं डिगा सकी। प्रेम का झरना तो प्रवाहित है ही इसके साथ-साथ आप आगम के ज्ञाता भी हैं। श्रद्धेय श्री अम्बालाल जी महाराज का आगमों का अध्ययन बहुत गहन है। आपने जैन धर्म, जैन दर्शन एवं आगम साहित्य का तल-स्पर्शी अध्ययन किया, और उसके M R... * Ganes 000000000000 000000000000 4000DTCDDD
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy