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________________ विशिष्ट अतिथि 000000000000 ०००००००००००० श्री हीरालाल जी देपुरा, विद्युतमंत्री (राजस्थान) का अभिभाषण TITION पूज्य मुनिवृन्द, भाइयो और बहनो ! आज के इस पावन अवसर पर आपने जो मुझे याद किया, मैं आपका बहुत आभार मानता हूँ । पूज्य श्री की तपस्या को स्वर्ण जयन्ति के अवसर पर मैं भी उपस्थित हुआ। महान संतों के जीवन का, उनकी तपस्या का अभिनन्दन तो उसी दिन हो गया जिस दिन श्री अम्बालाल जी महाराज की दीक्षा हुई। पिछले पचास वर्ष से लगातार एक तपस्वी जीवन बिताना आप जैसे महर्षियों से ही संभव है । जो उपदेश सन्त देते हैं, उसे पहले वे अपने जीवन में उतारते हैं तभी उनके उपदेशों का समाज पर बड़ा असर होता है। महाराज साहब श्री अम्बालाल जी समाज का मार्गदर्शन करते हुए समाज का निर्माण करते हुए आधी शताब्दी पार कर गये, यह केवल आपके लिए ही नहीं, ऐसे महान सन्त से हम और हमारा समाज भी कम गौरवान्वित नहीं होता है। हमारे देश की जो संस्कृति है उसमें त्याग तप की ज्योतियाँ है यही कारण है कि सारा विश्व इस संस्कृति को महत्त्वपूर्ण स्वीकार करता है । कोई चीज महत्त्वपूर्ण होती है तो उसकी सुरक्षा उससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है। हमारी जो संस्कृति है उसकी सुरक्षा करना एक बड़ा कार्य है और यह हमारा नैतिक दायित्व है कि हम उस संस्कृति के मौलिक तत्त्वों की सुरक्षा करें। हमारी जो धार्मिक परम्पराएँ हैं कि उस सन्दर्भ में हमें सोचना है, हम मुनियों के पास चले जाते हैं, मन्दिरों में चले जाते हैं किन्तु हमारी क्या जिम्मेदारी है यह भी हमें सोचना चाहिए । गुरुओं के प्रवचन सुनते हैं उनके सूत्र हम पढ़ते हैं। लेकिन आज से पहले जो गलत कार्य किये, यदि उन्हें नहीं छोड़ पायें तो और जीवन में नया अध्याय प्रारम्भ नहीं कर सकें तो हमारी कितनी सार्थकता है यह सोचना चाहिए। जीवन में परिवर्तन दृढ़ निश्चय के बिना संभव नहीं, व्यक्ति समाज का निर्माता है अत: प्रत्येक व्यक्ति दृढ़ निश्चय पूर्वक आगे बढ़े तो नव युग का निर्माण हो सकता है। हमारे अनेक कष्टों का कारण हमारा गलत मूल्यांकन है । हमारे यहाँ जो धन की प्रतिष्ठा होती जा रही है वह अनेक पतन का मूल है । धन के स्थान पर हमें धर्म को प्रतिष्ठा देनी होगी । बड़ी प्रसन्नता है आज कि हम एक धर्म के प्रतिनिधि का अभिनन्दन कर रहे हैं । ऐसे आयोजन धन के स्थान पर गुणों की प्रतिष्ठा बढ़ाते हैं। भगवान महावीर ने पाँच महाव्रत बताये और हम उनकी बड़ी चर्चाएँ भी करते हैं किन्तु वास्तविक जीवन में हम उन्हें कितना स्थान दे पाये यह विचारणीय है। अनैतिकता से कमाये धन ने हम में, कई कुरीतियां पैदा कर दी है यदि वास्तव में स्वस्थ समाज का निर्माण करना है तो प्रत्येक व्यक्ति को आंकना होगा सिद्धांतों से कौन सत्य, अहिंसा, अचौर्य ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का कितना पालन करता है। ये मोटे सिद्धांत हैं, इन्हें यदि जीवन में नहीं उतार पाये तो जैनधर्म को मैं नहीं समझता कि कोई पा सकता है। अभी दहेज मृत्यु-भोज जैसी बुराइयों को मिटाने को कई वक्ताओं ने कहा, तपस्वियों ने भी कहा, हाथ भी खड़े किये, किन्तु जब तक दृढ़तापूर्वक अपने को न बदला जाये ये बुराइयां नहीं जा सकतीं। Vaatma LACHA HIMIRE - unia NE बाTaI 4 Jan Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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