SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 644
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री शिवचरण जी माथुर का उद्घाटन भाषण | १५ उन्होंने देश के आत्म-सम्मान को बनाये रखने और इसे कठिनाइयों से बाहर लाने को कुछ कदम अब उठाये हैं हमें उन्हें अपने स्तर पर अपना कर उनको सफल बनाने का प्रयास करना चाहिए । हमारे देश का आदर्श महान् है । ऐसा और कौन देश होगा जो एक अन्य प्रताड़ित देश को अपनी सेना द्वारा आजाद करा कर वहाँ की जनता को सौंप दे। भारत ने ऐसे आदर्श उपस्थित किये हैं जो अन्यत्र दुर्लभ हैं । ऐसे देश के नागरिक संयम और जिम्मेदारी से चलें तभी वह देश अपने महत्त्व को बनाये रख सकता है । अभी कुछ समय पूर्व देश के सामने कठिन परिस्थिति पैदा कर दी गई, जनता का मनोबल क्षीण होने लगा तो हमारी प्रधानमन्त्री ने समय पर उचित कदम उठाकर देश को अस्त-व्यस्त होने से बचा लिया। आपात स्थिति से देश में एक नयी जिम्मेदारी का वातावरण बना और आज देश में सर्वत्र शान्ति से सारे कार्य ठीक चल रहे हैं । हमारा देश संतों और भक्तों की भूमि है, बड़े-बड़े संतों ने हमारे देश को गौरवान्वित किया है। इसमें कोई शक नहीं कि कई देश हमसे ज्यादा सम्पन्न हैं, भौतिकता की दृष्टि से, किन्तु हमारे पास जो अध्यात्मिक धन है उसकी तुलना में उनके पास कुछ भी नहीं है। सारे विश्व को सभ्यता का पहला पाठ भारत ने सिखाया । भारत को सर्वाधिक गौरव उस महान् संत परम्परा का है, जो सब कुछ त्यागकर भक्ति में और सेवा में जुटे हुए हैं। यहाँ जो मरुधर केसरी मिश्रीमल जी महाराज पधारे हुए हैं मैंने इनके कई बार उपदेश सुने, मैंने देखा कि ये बड़ी से बड़ी बात साफ-साफ कह देंगे और इनके इशारे मात्र से बड़े-बड़े कार्य सम्पन्न हो जाते हैं, यह संतों की आन्तरिक शक्ति है, यह संयम और साधना का बल है । आज हम इस समारोह में संत का अभिनन्दन कर एक नयी जिम्मेदारी ले रहे हैं उनके उपदेशों पर चलने की । इतना बड़ा समारोह तभी सफल होगा जब हम वास्तव में कुछ लेकर जाएं ऐसी प्रतिज्ञा, जो समाज को नयी दिशा दे । सत्य एक होता है, उसके कई रूप होते हैं, जितने भी धर्म है उनमें एक ही सत्य विविध रूप में रहा हुआ है। अत: जैन, बैन, बौद्ध, ईसाई, मुसलमान सभी में जो अच्छाइयां है वे एक हैं। हम जिस महात्मा का सम्मान कर रहे हैं वह जैनधर्म की नहीं, मानवता की निधि है संत सभी का होता है । हमें असाम्प्रदायिक रूप से सत्य और गुणों को स्वीकार करना चाहिए । अन्त में मैं पूज्यनीय श्री अम्बालाल जी महाराज का हार्दिक अभिनन्दन करता हुआ श्रद्धाञ्जली अर्पित करता हूँ और इनके दीर्घ जीवन की मंगल कामना करता हूँ । HOM * * 000000000000 000000000000 4000DDLEC
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy