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________________ जन परम्परा : एक ऐतिहासिक यात्रा | ५११ 000000000000 000000000000 उस रात द्रव्य प्रकाश किया गया प्रभु के निर्वाण साथ ही के विश्व का भाव प्रकाश उठ गया । देवों ने आत्म-प्रकाश के अभाव को व्यक्त करते हुए नगर में रत्नों के द्वारा द्रव्य प्रकाश किया । उस समय देश के अठारह गणराज्यों के प्रधान नृप भी वहाँ पौषध-साधना रत थे । उन्होंने अपने-अपने स्थानों पर यह द्रव्य प्रकाश की उस परम्परा को चालू रक्खी। आज भी दीप-माला के रूप में वह क्रम चल रहा है। दाह-क्रिया प्रभु के पार्थिव शरीर की दाहक्रिया देवों द्वारा संपन्न हुई । मानव भी सम्मिलित थे । श्रेष्ठ सुगन्धित पदार्थ से शरीर सिञ्चित किया गया। अग्निकुमार नामक देवों ने आग प्रज्वलित की । वायु कुमार देवों ने आग को व्यापक किया । मेषकुमार ने सुगन्धित जल से चिता शान्त की। भगवान महावीर के विषय में कतिपय ज्ञातव्य भगवान तीस वर्ष गृहवास, बारह वर्ष से कुछ अधिक छद्मस्थ, कुछ कम तीस वर्ष केवली रहे। इस तरह कुल बहत्तर वर्ष का आयुष्य पाये । प्रभु ने अस्थिग्राम में एक, चम्पा और पृष्ठ चम्पा में तीन, वैशाली में बारह, नालंदा (राजगृह) में चौदह मिथिला में छह, भद्रिका में दो, आलंभिया में एक, सावत्थी में एक, अनार्य देश में एक और अन्तिम चातुर्मास पावा में यों कुल बियालीस चातुर्मास किये । भगवान महावीर के शासन में ७०० केवली, ५०० मनपर्यवज्ञानी ३०० अवधिज्ञानी, ३०० चौदह पूर्वधारी ४०० वादी, ७०० वैक्रिय लब्धि धारक, ८०० अनुतरोपपातिक मुनि, १४००० साधु, ३६००० आर्यिका, १५६००० श्रावक तथा ३१८००० श्राविकाएं थीं। श्रावक-श्राविकाओं की यह संख्या व्रत-धारियों की दृष्टि से है। SAMM d - -.. . .. .
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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