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________________ गुरुदेव श्री के सुवचन | २५ ०००००००००००० 000000000000 SED पर बढ़ गये । दोनों ने धन के ढेर को साँप जैसे काँचली उपकार तीनों का है, किन्तु तीसरी रानी की तुलना में उतारता है, इस तरह उतार कर फेंक दिया। दोनों रानियों का उपकार थोड़ा है । आज के गृहस्थों के पास धन तो थोड़ा किन्तु घमण्ड दो दिन वह बचा, किन्तु मृत्यु का भय तो थ ज्यादा । धन तो रज जितना है किन्तु अहं मेरु जितना है, तीसरी रानी ने 'अभय' देकर निश्चिन्त कर दिया । वास्तव । इसलिए उनसे त्याग भी मुश्किल से होता है। में "अभय" प्रदान करने के बराबर कोई दान नहीं । सच्चे महावीर लाभ से लोभ भगवान महावीर का सारा महत्त्व उनकी वीतरागता भोगोपभोग की तृष्णा की बड़ी विचित्र स्थिति है। से है । धन वैभव, सत्ता से उनको देखना ही नहीं चाहिए, नहीं मिलते हैं तब तक थोड़ा भी पाने के लिए प्राणी छट - ये तो उनके पास जो थोड़े से थे उनको भी उन्होंने परित्याग पटाते हैं किन्तु, ज्योंही कुछ मिलने लगते हैं कि उनकी आगे कर दिया । अथक कष्ट सहिष्णुता और समभाव से ही वे से आगे असीम तृष्णा बढ़ती जाती है। भगवान ने ठीक ही सच्चे महावीर बने। कहा हैस्वस्थता के लिए स्वाद-संयम जहा लाहो तहा लोहो। लाहा लोहो पवड्ढई ॥ पहला सुख "निरोगी काया" । रोगी शरीर से धर्म की साधना होना कठिन है। अत: शरीर निरोग रहे इसका पाथेय लेकर चलो! ध्यान रखना चाहिए । स्वाद को जीते बिना शरीर निरोग जो मुसाफिर अपने साथ भोजन लेकर चलता है, उसे नहीं रहता। कम खाना और स्वाद को जीतना अपने को चिन्ता नहीं, रहती किन्तु जो खाली ही रवाना होता है स्वस्थ रखने का सच्चा मार्ग है। उसे मार्ग में कष्ट उठाना पड़ता है। इस सामान्य सिद्धान्त स्वस्थ रहने के लिए जीवन को संयम में रखना से अपने भविष्य पर स्वयं विचार कर लो। साथ में कुछ चाहिए । इन्द्रियों पर विजय करने पर ही स्वास्थ्य अच्छा लेकर चल रहे हो या खाली ही रवाना हो रहे हो।। रह सकता है। संवर निर्जरा रूप खाद्य साथ में लेकर चलोगे तो, वचन-बदल न बनो पछताना नहीं पड़ेगा। सोच-समझकर कोई वचन देना चाहिए, जो वचन कदाग्रह नहीं, सत्याग्रह दिया जाये उसका ईमानदारीपूर्वक पालन करना चाहिए। तीन व्यक्ति कमाने को चले, उन्हें लोहे की खान मिली वचन देकर बदलना धोखा देना है। और उन्होंने लोहे का भार उठा लिया । मार्ग में चाँदी बाँह बदल बारी बदल, वचन बदल बे शुर। (रजत) की खान मिली, उन तीन में से दो ने लोहे को फेंक वचन देकर बदले उसके मुख पर, धोबा धोबा धूर ॥ कर रजत का भार उठा लिया । तीसरा लोहे को ही ढोता रहा । आगे उन्हें सोने की खान मिली, लोहे वाला तो अभयदान लोहा ही ढोता रहा, रजत ढोने वालों में एक ने रजत फेंक दाणाण सेठ्ठ अभयप्पयाणं कर स्वर्ण उठा लिया। एक रजत ही ढोता रहा, एक एक अपराधी को मृत्यु दण्ड मिला । लोहा ही। राजा की तीन रानियाँ थीं, उनमें से एक ने, एक दिन स्पष्ट है तीनों में से स्वर्ण लाने वाला ही श्रेष्ठ रहा, शूली टाल कर, करुणा का परिचय दिया । दूसरी रानी ने, रजत और लोहे वाला क्रमशः नुकसान में रहे। आपको एक दिन शूली और रुकवा कर उसे भोजन भी दिया और नुकसान में नहीं रहना है। पुरानी गलत बातों को इसलिए सुन्दर वस्त्राभूषण भी पहनाये। मत उठाए रखो कि वे पुरानी हैं। कोई उससे अच्छी बात ___ तीसरी रानी ने, उस अपराधी की सर्वदा के लिए मृत्यु मिल जाये तो, पुरानी बात का त्याग कर अच्छी बात को दण्ड से बचाकर उसे निर्भय कर दिया । ले लेना चाहिए। मिथ्यात्व को छोड़ने से ही तो सम्यक्त्व AIN APCEMMEANING A - ~ ::Saherit
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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