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________________ । संकलन सौभाग्य मुनि 'कुमुद' ०००००००००००० 000000000000 गुरुदेव श्री के सुवचन . MAV UNRELI HAIL AMITTER सद्धा परम दुल्लहा अपने पूर्व भव में भगवान शान्तिनाथ जब मेघरथ थे, इधर-उधर मत भटको, भगवान वीतराग के तत्त्वज्ञान उन्होंने एक भयातुर कबूतर को बचाने को अपना तन तक न्यौछावर कर दिया। जो, भयातुर अन्य प्राणी पर दया कर पर विश्वास करो। किसी को ऊपर चढ़ना है तो उसे निसैनी उसे शान्ति प्रदान करता है वही शान्तिस्वरूप बन सकता या सीढ़ियों का सहारा चाहिए । इसी तरह यदि जीवन को ऊँचा उठाना है तो श्रद्धा की निसनी लगाओ। निसनी फैक कर ऊपर चढ़ने की कल्पना मूर्खता है, ऐसे ही श्रद्धा सफलता की कसौटी के बिना कुछ भी करना व्यर्थ-सा है। विश्वास से ही जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियट्टई। आत्मबल पैदा होता है। नवतत्त्व, षड्द्रव्य, देवगुरु धर्म पर धम्मं च कुणमाणस्स, सफला जंति राइओ। विवेकपूर्वक दृढ़ विश्वास रखो बेड़ा पार हो जाएगा। समय तो व्यतीत होता ही है, दिन आता है चला अप्पाचेव दमेयन्वो जाता है, रात आती है चली जाती है। इस तरह उम्र का रथ मृत्यु के निकट पहुँच रहा है । __ जो अपनी आत्मा को वश में कर लेता है, उसके लिए कुछ सोच लीजिये, समय सार्थक हो रहा है या विश्व में कहीं उलझन नहीं है । एक रोटी का टुकड़ा कई श्वानों के मध्य पड़ा है, वे सभी आपस में खींचतान कर अधर्म के आवर्त्त, तुम्हें पाप में गर्क कर सकते हैं रहे हैं। इस मारा-मारी में कई श्वान लहू-लुहान हो रहे हान हा रह किन्तु, वह समय व्यर्थ, कर्मवर्धक हो जाएगा। धर्म के हैं । यह पशुता है, एसी पशुता आज मानव म चल रहा निकट आजा. वीतराग के तत्व ज्ञान का अमत पी ले, समय है। विश्व का वैभव तो कम है किन्तु इन्सान का तृष्णा है व जीवन सब कुछ सार्थक हो जायेगा । धर्मयुक्त जीवन ही ज्यादा, ऐसी स्थिति में छीना-झपटी चल रही है। अगर सफलता की कसौटी है। अपने आपको सुरक्षित और शान्त रखना हो तो अपनी धन के प्रति निस्पृहा तृष्णा को रोक लो । आत्मा का दमन कर लो। धन्ना-शालिभद्र के पास इतनी विशाल रिद्धि थी, कि दयामय बनो सम्राट श्रेणिक भी उस वैभव को देखकर चकित रह चइत्ता भारहं वासं चक्कवट्टो महिड्ढिओ। गया, किन्तु उनको उस धन का कोई अभिमान नहीं था। सन्ति सन्तिकरे लोए, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ वे धन को धूल और कचरे के बराबर समझते थे । शालीभद्र सोलहवें तीर्थकर भगवान शान्तिनाथ का स्मरण करने को इतना-सा ज्ञात हुआ कि उसके भी ऊपर 'नाथ' है। के साथ यह भी सोचिये कि उन्होंने अपने जीवन में शान्ति- बस, इस बात से उन्हें वैराग्य का तत्त्व मिल गया । धन्ना स्वरूप कैसे पाया। जी को सुभद्रा ने कुछ जाग्रत किया कि वे भी त्याग मार्ग (EPARD STER) OO MERamanana नाm arTAMIRSINHain WWWEPOEIN
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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