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________________ ४६८ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ ०००००००००००० 000000000000 (१०) अपने आपको मेरु पर्वत पर स्थित किया। प्रात:काल नैमेत्तिक ने स्वप्नों का परिणाम प्रकट करते हुए कहा(१) मोह का अन्त होगा। (२) शुक्ल ध्यान प्राप्त होगा। (३) विविध श्रत ज्ञान की देशना प्रकट होगी । (४) साधु-श्रावक धर्म रूप द्विविध धर्म की प्ररूपणा होगी। (५) चतुर्विध संघ की स्थापना होगी। (६) देव सेवा करेंगे। (७) संसार सागर पार करेंगे। (८) कैवल्य ज्योति प्रकट होगी। (8) सम्पूर्ण मनुष्य लोक तक कीति फैलेगी। (१०) लोक में सर्वोत्तम धर्मोपदेश करेंगे। चौथे स्वप्न का परिणाम नैमेत्तिक को नहीं सूझा, स्वयं प्रभु ने बताया। एक दीन पर दया भगवान मोराक पधारे । भगवान के एक भक्त देव 'सिद्धार्थ' ने प्रभु को अतीत अनागत के ज्ञात होने की बात प्रकाशित करदी। प्रभु तो ध्यानस्थ थे किन्तु देव सभी के प्रश्नों का उत्तर देता ! वहाँ एक अच्छंदक नमेत्तिक था। प्रभु के प्रबल प्रभाव से उसका व्यवसाय समाप्त हो गया। वह प्रभु के सामने आकर अपना दुःख रोने लगा। प्रभु ने उसकी पीड़ा को पहचान कर तत्काल वहाँ से विहार कर दिया। वस्त्र अटक गया प्रभु ने संयम लिया उस समय देवों ने देवदूष्य वस्त्र प्रभु पर डाल दिया था। वह वस्त्र प्रभु के तन पर था, एक ब्राह्मण उस वस्त्र को पाने को, भगवान के साथ-साथ चल रहा था। अचानक एक जगह-वस्त्र काँटों में अटक गया प्रभु अवस्त्र हो गये । वह वस्त्र ब्राह्मण ने उठा लिया । चण्डकौशिक को प्रतिबोध प्रभु उत्तर वाचाला की ओर पधार रहे थे, मार्ग में ग्वालों ने प्रभु को रोका, उन्होंने कहा-आगे बड़ा भयंकर सर्प है, जिसकी विष-फुत्कारों से वृक्ष भी ढूंठ हो चुके हैं झरने सूख गये हैं। वातावरण विषमय हो चुका है । गगनगामी पक्षी भी इस ओर निकल आए तो मृत्यु पा जाते हैं, अतः आप उधर न जाएं किन्तु भगवान ने चण्डकौशिक को भव्य समझकर उसके अभ्युदय हेतु उधर ही विहार किया। भगवान ने उसी वन में ध्यान किया जहाँ चण्डकौशिक का निवास था। चण्डकौशिक ने तमतमाकर भगवान के अंगूठे पर डंक लगा दिया । डंक लगने पर रक्त निकलना चाहिए था किन्तु निकली "दुग्ध" जैसी धवल धारा । किसी कवि की भाषा में इस परिवर्तन का कारण था कि एक पुत्र का प्यार ही मां के स्तन को करता दुग्धागार। सब जीवों के प्यार निधि का, तन क्यों नहीं हो पय भंडार ।। जहरीली डंक के प्रत्युत्तर में भगवान ने उसे जाग्रत और शांत होने का संदेश दिया । चण्डकौशिक यद्यपि विष-कीट था किन्तु प्रभु के मार्मिक संदेश का उसके अन्तस्थल पर चमत्कारिक प्रभाव हुआ। उसी दिन से उसने हिंसा परित्याग कर दिया। For Dawate Personale Only nelibrary.org
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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