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________________ होता है। निर्ग्रन्थ प्रवचन का पालक मुक्त होता है । * ६ जो दीर्घदर्शी लोक के स्वरूप को जानकर विषय-भोगों को त्याग देता है वह मुक्त होता है । ५७ जो दृढ़तापूर्वक संयम का पालन करता है वह मुक्त होता है । ५६ जो लोभ पर विजय प्राप्त कर लेता है वह मुक्त होता है । ** शल्यरहित संयमी मुक्त होता है। त्रिपदज्ञ ज्ञानी (हेय, ज्ञ ेय और उपादेय का ज्ञाता ) त्रिगुप्तसंवृत जो जीव रक्षा के लिए प्रयत्नशील है वह मुक्त होता है । ६८ होता है जैनागमों में मुक्ति मार्ग और स्वरूप | ३११ ० शुद्ध चारित्र का आराधक सम्यक्त्वी मुक्त होता है । ६ मृषाभाषा का त्यागी मुक्त होता है। १ काम-भोगों में अनासक्त एवं जीवन-मरण से निष्पृह मुनि ही मुक्त होता है । ६ शुद्ध अध्यवसाय वाला, मानापमान में समभाव रखने वाला और आरम्भ - परिग्रह का त्याग करने वाला अनासक्त विवेकी व्यक्ति ही मुक्त होता है । ६8 जिस प्रकार पक्षी पांखों को कम्पित कर रज दूर कर देता है उसी प्रकार अहिंसक तपस्वी भी कर्मरज को दूर कर देता है । ७० I अन्त-प्रान्त आहार करने वाला ही कर्मों का अन्त करके मुक्त होता है । ६३ विषय-भोग से विरत जितेन्द्रिय ही मुक्त होता है । ६४ शुद्ध धर्म का प्ररूपक और आराधक मुक्त होता है । ६५ रत्नत्रय का आराधक मुक्त होता है । ६६ जिस प्रकार धुरी टूटने पर गाड़ी गति नहीं करती उसी प्रकार कर्ममुक्त चतुर्गति में गति नहीं करता । ७१ शुद्धाशय स्त्री-परित्यागी मुक्त होता है । ७२ जो संयत विरत प्रतिहत प्रत्याख्यात पापकर्म वाला संवृत एवं पूर्ण पण्डित है वह मुक्त होता है । ७३ जो सुशील, सुब्रती, सदानन्दी सुसाधु होता हैं वह मुक्त होता है ।७४ जो घातिकर्मों को नष्ट कर देता है वह मुक्त होता है । ७५ जो हिंसा एवं शोक संताप से दूर रहता है वह मुक्त होता है । ७६ जो आत्म-निग्रह करता है वह मुक्त होता है । ७७ जो सत्य ( आगमोक्त ) आज्ञा का पालन करता है वह मुक्त होता है ।७८ ज्ञान और क्रिया का आचरण करने वाला मुक्त होता है । ७६ संयम में उत्पन्न हुई अरुचि को मिटाकर यदि कोई किसी को स्थिर करदे तो वह शीघ्र ही मुक्त तेरहवें क्रियास्थान — ऐर्यापथिक क्रिया वाला अवश्य मुक्त होता है।" सावद्य योग त्यागी अणगार ही मुक्त होता है |5 जो परमार्थ द्रष्टा है वह मुक्त होता है। 53 लघु और रुक्ष आहार करने वाला मुक्त होता है । ८४ जो उग्रतपस्वी उपशान्त-दान्त एवं समिति गुप्ति युक्त होता है वह मुक्त होता है । १५ जो आगमानुसार संयमपालन करता है वह मुक्त होता है 15६ जो सम्यष्टष्टि सहिष्णु होता है वह मुक्त होता है। जिस प्रकार अनुकूल पवन से नौका पार पहुँचती है उसी प्रकार उत्तम भावना से शुद्धात्मा मुक्त आचार्य और उपाध्याय की मुक्ति जो आचार्य - उपाध्याय शिष्यों को अग्लान भाव ( रुचिपूर्वक) से भाव से ही उन्हें संयम साधना में सहयोग देते हैं। वे एक, दो या तीन भव से अवश्य मुक्त होते हैं । 58 सूत्रार्थ का अध्ययन कराते हैं और अग्लान Ch 000000000000 MA ☆ 000000000000 HOODCEDECE /
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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