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३१० | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ
नमि (विदेह) ने आहार का उपभोग करके मुक्ति प्राप्त की है। रामगुप्त ने भी नमि के समान आहार का उपभोग करके मुक्ति प्राप्त की है। 'बाहुक' ने सचित्त जल के सेवन से मुक्ति प्राप्त की है। नारायण ऋषि ने अचित्त जल के सेवन से मुक्ति प्राप्त की है। असिल, देवल, द्वैपायन और पाराशर ऋषि ने सचित्त जल, बीज और हरितकाय के सेवन से मुक्ति प्राप्त
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नमक न खाने से मुक्ति प्राप्त होती है। शीतल जल के सेवन से मुक्ति प्राप्त होती है । होम करने से मुक्ति प्राप्त होती है । ३२ क्रियावादी केवल क्रिया से ही मुक्ति मानते हैं । ज्ञान का निषेध करते हैं। अक्रियावादी केवल ज्ञान से ही मुक्ति मानते हैं । क्रिया का निषेध करते हैं । विनयवादी केवल विनय से ही मुक्ति मानते हैं । ज्ञान-क्रिया आदि का निषेध करते हैं । 33
अन्य दर्शनमान्य मुक्ति मार्गों का अन्य दर्शनों के किन-किन ग्रन्थों में उल्लेख है-यह शोध का विषय है। सूत्रकृताङ्ग के व्याख्या ग्रन्थों में भी मुक्ति विषयक वर्णन वाले अन्य दर्शनमान्य ग्रन्थों का उल्लेख नहीं है इसलिए नवीन प्रकाश्यमान सूत्रकृताङ्ग के व्याख्या ग्रन्थों के सम्पादकों का यह कर्तव्य है कि उक्त मुक्ति मार्गों का प्रमाण पूर्वक निर्देश करें। श्र तसेवा का यह महत्त्वपूर्ण कार्य कब किस महानुभाव द्वारा सम्पन्न होता है ? यह भविष्य ही बताएगा। जैनदर्शन-सम्मत मुक्ति मार्ग
जो ममत्व से मुक्त है वह मुक्त है।३४ जो मान-बड़ाई से मुक्त है वह मुक्त है । ३५ जो वैर-विरोध से मुक्त है वह मुक्त है । ३६ जो रागद्वेष से मुक्त है वह मुक्त है।३७ जो मोह से मुक्त है वह मुक्त है ।३८ जो कषाय-मुक्त है वह मुक्त है । जो मदरहित है वह मुक्त है।४।। जो मौन रखता है वह मुक्त होता है।४१ जो सम्यग्दृष्टि है वह मुक्त होता है।४२ जो सदाचारी है वह मुक्त होता है।४३ अल्पभोजी, अल्पभाषी, जितेन्द्रिय, अनासक्त क्षमाश्रमण मुक्त होता है।४४ आरम्म-परिग्रह का त्यागी ही मुक्त होता है चाहे वह ब्राह्मण, शूद्र, चाण्डाल या वर्णशङ्कर हो । ४५ हिताहित के विवेक वाला उपशान्त गर्वरहित साधक मुक्त होता है ।४६ हिंसा से सर्वथा निवृत्त व्यक्ति ही मुक्त होता है।४७ निदानरहित अणगार ही मुक्त होता है।४८ सावद्य दान के सम्बन्ध में मौन रखने वाला मक्त होता है।४६ प्रत्याख्यान परिज्ञा वाला मुक्त होता है।५० कषाय-मुक्त संवृत दत्तषणा वाला मुनि ही मुक्त होता है।५१ आचार्य की आज्ञानुसार प्रवृत्ति करने वाला मुक्त होता है।५२ गुरु की आज्ञा का पालक मुक्त होता है।५3 कमल के समान अलिप्त रहने वाला मुक्त होता है।५४ विवेकपूर्वक वचन बोलने वाला मुक्त होता है । ५५
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