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________________ १६२ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ 2 000000000000 ०००००००००००० मेवाड़ के संघों में सम्प्रदाय-भेद की इन बातों की तीव्र प्रतिक्रिया हुई। एक प्रसिद्ध आचार्य कपासन में आम्नाय दे रहे थे तब दरीबा वाले सुश्रावक श्री जोतमान जी ने बड़ी दृढ़ता के साथ भरी सभा में उन्हें टोक भी दिया। मेवाड़ में मेवाड़ सम्प्रदाय की गुरुधारणा स्पष्ट थी। फिर भी उस समय अन्य धारणाएँ यत्र तत्र हुईं, इसका प्रमाण तो आज भी उपलब्ध है। मुनियों के अभाव में स्थिति गम्भीर थी। फिर भी मेवाड़ के अधिकांश संघों ने दृढ़ता का परिचय देते हुए अन्य आम्नाय को नकारा । परम्परागत आम्नाय पर अडिग रहकर जिस दृढ़ता का परिचय दिया, वह धन्यवादाह है। यद्यपि श्री वेणीचन्द जी महाराज एकाकी थे, किन्तु मेवाड़ की जनता उन्हें परम्परागत सम्प्रदाय के सम्बन्ध से आचार्यवत् स्वीकार करती थी। कठिनाई का वह समय भी अधिक नहीं रहा । श्री वेणीचन्द जी महाराज को श्री एकलिंगदास जी महाराज, श्री शिवलाल जी महाराज जैसे सुयोग्य शिष्यों की उपलब्धि हुई, जिनका परिचय आगे दिया जाएगा। स्वर्गवास श्री वेणीचन्द जी महाराज का स्वर्गवास संवत् १६६१ फाल्गुन कृष्णा अष्टमी के दिन चैनपुरा में हुआ । ऐसा 'आगम के अनमोल रत्न' में उल्लेख है। श्री वेणीचन्द जी महाराज अपनी धर्मक्रियाओं के सजग साधक थे। यही कारण है कि स्वर्गवास से पूर्व अनशन आदि स्वीकार कर वे समाधिमरण पा सके । सम्प्रदाय तो सिर्फ शरीर है, प्राण तो आचार है, धर्म क्रिया है। यदि प्राण की उपेक्षा कर शरीर के ही पीछे पड़े रहे तो यह कैसी विडम्बना होगी। धर्म एवं आचार क्रियाओं की उपेक्षा कर जो व्यक्ति सम्प्रदायवाद फैला रहे हैं, वे एक प्रकार से आत्मा की अवगणना कर शरीर बाद की महत्ता का प्रचार करने वाले अज्ञानी जैसे हैं। -'अम्बागुरु-सुवचन' Mano 圖圖圖圖圖鑑区 dy 1880 म दभगमHARIEHINDEEBARE मराजाTTRINTEDive
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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