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________________ 000000000000 २ 000000000000 40000 १५४ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज — अभिनन्दन ग्रन्थ किन्तु जितनी रचनाएँ मिल पाईं, उन्हें देखते हुए लगता है कि कविराज ने सैकड़ों रचनाएँ की हैं, जिनमें भजन, स्तवन और चौपाइयाँ (चरित्र) ये प्रमुख हैं । कुछ चरित्र और कुछ भजन मिले हैं। उनसे निष्कर्ष निकलता है कि कविराज की भाषा मेवाड़ी ( राजस्थानी ) भाषा का लोकग्राही सुन्दर नमूना है । अभिव्यक्ति में इतनी सरसता है कि गायक गाता ही रहे और श्रोता सुनता ही रहे तो कोई अघाएगा नहीं । शब्द मानो साँचे में ढले हों । रचना में नितान्त स्वाभाविकता तथा अनूठा प्रवाह है । रचनाएं कई राग-रागनियों में हैं। रागें मेवाड़ी गीतों और भजनों की हैं। चरित्रों में वर्णनात्मक शैली का प्रयोग तो है, किन्तु संक्षिप्तता का विशेष प्रभाव है। इस वैशिष्ट्य के कारण रचनाएँ इतनी लम्बी नहीं हुईं कि जो गायक और श्रोता उपयोग करता हुआ ऊब जाए । वर्णन की सहजता और सरसता का एक प्रमाण देखिए : अनुगमन श चतुर नर ले सतगुर सरणां लाख चोरासी में भम आयो कीया जनम मरणां सबद करी सतगुर समजावे सीख हिये धरणां काल अनंत लयो मानव भव निरफल क्यूँ करणां ॥ अभिव्यक्ति की ऐसी सरलता पाठक को तन्मय किये बिना नहीं रहती । कविराज जैनमुनि हैं । निरन्तर मोक्षमार्ग की साधना ही उनका लक्ष्य है । वैराग्य रस ही उनका पेय है, निरन्तर उसी में छके रहना यह साधकों की मौज है । मुनिराजों के अखण्ड आनन्द का मूल स्रोत वैराग्य है । उनका बोलना, चलना, लिखना, उपदेश, आदेश सभी वैराग्यपूर्ण होते हैं । रचनाओं में भी वैराग्य की ही प्रमुख धारा बहती है । अज्ञानी थे प्रभु न पिछाप्यो रे । विषय सुख संसार ना किच मांहे खुचाणो रे । तन धन जोबन कारमो जेस्यो दूध उफाणो रे । सजन सनेही थारो नहीं नहीं रूप नाणो रे । काल अवध पूरी हुई कीयो वास मसाणो रे । पूर्व पुन्ये पामीयो मानव भव टाणो रे । धर्म रतन चिंतामणी हाथ आय गमाणो रे । इन्द्र आप वंछा करे बेठा अमर विमाणो रे । मनुष थइ करणी करी पावां पद निरवाणो रे । देव निरंजण भेटी यो गुर गुण री षानो रे । धर्म दया में जाणिये जन्म मर्ण मिटाणो रे । विषय वर्णन की शैली तथा शब्द योजना का सुन्दर निखार रचनाकार की विशेषता के द्योतक हैं । भजनों में भावों को तुलनात्मक उपमाओं से उपमित करना भी काव्य में चार चाँद लगाता है। प्रस्तुत भजन में तन-धन यौवन को उफनते दूध की उपमा वस्तुतः एक नयी उपमा है जो प्रायः रचनाओं में कहीं दिखाई नहीं दी । कविराजजी की अब तक निम्नांकित रचनाएँ प्राप्त हुई हैं : (१) आवे जिनराज तोरण पर आवे- २४ गाथाओं में चरित्रात्मक वर्णन, सं० १६१२, रतलाम ( रतनपुरी) में रचित । (२) अज्ञानी थे प्रभु न पिछाण्यो रे–९ गाथाओं का वैराग्यप्रद भजन, सं० १९१२, फाल्गुन कृष्णा २, खाचरौद में रचित | (३) चतुर नर सतगुर ले सरणां -६ गाथाओं का प्रेरक भजन, रचनाकाल उपर्युक्त तिथि १, खाचरौद । (४) फूलवन्ती नी ढाल - कुल छह ढालों का चरित्र, रचनाकाल और स्थान नहीं दिया गया । (५) देव दिन की दोय ढाल - अज्ञात - स्थान और समय । (६) सागर सेठ नी ढाल - ५ ढालों में, सं० १९०४ आसोजसुदी पंचमी, रायपुर (मेवाड़) में रचित । (यह चातुर्मास मारवाड़ से आकर किया) । (७) रूपकुंवर नो चोढाल्यो - चार ढालों में चरित्र, सं० १८६७, उदयपुर में रचित । (८) तपस्वीजी सूरजमलजी महाराज रा गुण-८ गाथाओं में सं० १६०८ जेठ सुदी ८ को रचित । RK 두
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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