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________________ कविराज श्री रिषभदासजी महाराज ०००००००००००० ०००००००००००० अठारहवीं शताब्दी का अन्त और उन्नीसवीं शताब्दी का प्रारम्भ, कोई बहुत पुराना समय नहीं होता, किन्तु प्रमाण आदि के अभाव से उस समय मेवाड़ के जैन-जगत को अपनी सुन्दर काव्य-कृतियों एवं उत्कृष्ट त्याग-तप से प्रभावित करने वाले कविराज ऋषभदास जी महाराज के विषय में परिचयात्मक रूप से हम कुछ भी बताने में समर्थ नहीं हैं। बहुत प्रयत्न करने पर भी रिखबदासजी महाराज का न तो जन्मस्थान का ही हमें पता लगा और न उनके माता-पिता तथा संयम स्वीकृति के समय को ही हम अवगत कर सके । इसमें कोई सन्देह नहीं कि वि० सं० १६०८ में कविराज श्री रिखबदासजी महाराज प्रौढ़ावस्था में विचर रहे होंगे । क्योंकि उस समय की लिखी हुई एक लावणी मिली है, जो तपस्वी श्री सूरजमल जी महाराज के गुण के रूप में लिखी गई है। यदि यह लावणी तीस वर्ष की उम्र के आस-पास लिखी गई हो तो जन्म समय सं० १८७८ के लगभग बैठता है । किन्तु यह केवल अनुमान है, जन्म का समय कुछ वर्ष आगे-पीछे हो सकता है। संयम कब लिया, किसके पास लिया, इस विषय में भी कोई जानकारी नहीं है। नि पूज्य आचार्य श्री नृसिंहदासजी महाराज के कई शिष्य थे । उनमें पूज्य श्री मानजी स्वामी तो थे ही । तपस्वी श्री सूरजमलजी महाराज भी पूज्य श्री नृसिंहाचार्य के शिष्य थे, ऐसा लावणी से सिद्ध होता है। कविराज श्री रिखबदासजी महाराज के गुरु श्री सूरजमलजी महाराज का होना ही अधिक उपयुक्त लगता है। कविराज ने तपस्वीजी की जो लावणी लिखी, उसमें भी तपस्वीजी के प्रति 'गुरु' विशेषण का प्रयोग किया। जो पट्टावलियाँ उपलब्ध हैं, उनमें दो पट्टावलियों की परम्परा में भी पूज्य श्री नृसिंहदासजी महाराज श्री सूरजमलजी महाराज, श्री रिखबदासजी महाराज इस तरह का क्रम है ।२।। इनसे ऐसा अनुमान होता है कि श्री रिखबदासजी महाराज श्री सूरजमलजी महाराज के ही शिष्य थे । यदि शिष्य पूज्य श्री नृसिंहदासजी महाराज के हुए हों तो भी तपस्वीजी श्री सूरजमलजी महाराज के प्रति वे शिष्यभाव से ही अनन्यवत् बरतते रहे, ऐसा सुनिश्चित अनुमान होता है । मुनिराज कविराज थे श्री रिखबदासजी महाराज राजस्थानी भाषा के अच्छे मैंजे हुए कवि थे, ऐसा उनकी प्राप्त रचनाओं से स्पष्ट प्रतीत होता है। एक स्थान पर संगृहीत नहीं होने के कारण इनकी समस्त रचनाओं का मिलना यद्यपि बड़ा कठिन है, मुझ बुध अलप छे तुम गुण किण विध गाऊँ । 'गुरु' दरिया गुण कर भरिया पार न पाऊँ ।। ३ पट्टावली नं०१ बड़ी-नृसिंहदासजी।।नर०॥ सूरजमलजी।।पूज्य श्री रिखबदासजी।। पट्टावली नं० २ छोटी १०५ नरसिंहदासजी, १०६ सूरजमलजी, १०७ रिखबदासजी । AH HapMRAANEMAnt, MA
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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