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________________ आचार्य प्रवर श्री सिंहदास जी महाराज | १४१ 000000000000 ०००००००००००० ART यह कार्यक्रम उदयपुर में ही सम्पन्न हुआ क्योंकि रोड़जी स्वामी का वहीं स्वर्गवास हुआ था। पट्टारोहण कब हुआ, इसकी तिथि तो स्पष्ट नहीं है, किन्तु पूज्य श्री रोड़जी स्वामी का स्वर्गवास यदि सं० १८६१ स्वीकार करें (यद्यपि यह स्पष्ट नहीं है, तो उसी वर्ष या उसके आसपास पाटोत्सव होना संगत लगता है । पढ़ोत्सव के अवसर पर मुनिश्री के कई गुरुभाई मुनि अवश्य थे। पुज्य श्री का आचार्यकाल मेवाड़ जैन संघ के लिए अभ्युदयपूर्ण स्वर्णकाल था। आपके नेतृत्व में जैन संघ ने बहुत अच्छा विकास किया। श्रद्धा भेद का जो विक्षेप था, वह रुका, इतना ही नहीं, कई अधर्मी धर्म-मार्ग में प्रवृत्त हुए। परम्परागत अनुश्रुति के अनुसार पूज्य श्री के सत्तावीस शिष्य बने । सम्प्रदाय को व्यवस्थित और पल्लवित करने का बहुत कुछ श्रेय आचार्य को जाता है । आचार्यश्री के सफल और शानदार नेतृत्व को पाकर मेवाड़ का जैन संघ धन्य हो गया । आचार्य श्री की सुव्यवस्था के कारण तथा सम्प्रदाय के बढ़ते प्रभाव से ही मेवाड़ सम्प्रदाय 'पूज्य श्री नरसिंहदास जी महाराज की . सम्प्रदाय' के नाम से प्रसिद्ध होने लगी। कवि भी आचार्य श्री सफल वक्ता ही नहीं, अच्छे कवि भी थे। आचार्य श्री की रचनाएँ कई रही होंगी। किन्तु विगत-परम्परा में सहेजकर रखने की वृत्ति का लगभग अभाव होने के कारण कई रचनाएँ लुप्त हो गई होंगी। लेकिन जो कुछ रचनाएँ उपलब्ध हो सकी उनके आधार से उनका कवित्व प्रकट हुए बिना नहीं रहता। आचार्य श्री की एक रचना जो मिली हुई रचनाओं में सम्भवतः सबसे प्राचीन है, वह है-'रोड़जी स्वामी रा गुण'। उनतीस गाथाओं की इस रचना में पूज्य श्री ने अपने गुरु श्री रोड़जी स्वामी के जीवन के प्रसंगों को बहुत ही सरल राजस्थानी ही नहीं ठेठ मेवाड़ी में चित्रित किया। सुमधुर किसी प्राचीन गीत राग में रनी हुई यह रचना मेवाड़ी भाषा की एक प्राचीन कृति है, जो भाषागवेषकों के लिए तत्कालीन शैली का प्रतिनिधित्व भी करती है। बिना किसी अलंकरण के सीधे भावों को व्यक्त करने वाली यह कृति गेयात्मक होने से बहनों में अत्यधिक लोकप्रिय है । वर्णनात्मक रचना का एक पद प्रस्तुत है पंच महाव्रत पालताजी खम्या करी भरपूर । बाइस परीसा जीतियाजी दोष टाल्या बियालीस पूर ।। संक्षिप्त में कई विशेषताओं को लोकशैली में व्यक्त कर देना, इस कृति की विशेषता है। यही कृति एक ऐसी आधारभूत कृति है, जिसमें तपस्वी श्री रोड़जी स्वामी का जीवन-वृत्त सुरक्षित रह सका । आचार्य श्री की एक दूसरी कृति 'भगवान महावीर रा तवन' नामक मिली। इसमें भगवान महावीर के जीवन का संक्षिप्त परिचय प्रभाती राग में दिया गया है। इसमें ग्यारह गाथाएँ हैं। सहज प्रवाह में भावों को अभिव्यक्त करते हुए कवि ने थोड़े में बहुत कह दिया है। जैसे बीर वरस छट मस्त रहीने कठिन कर्म परजारी। घनघाती चउ कर्म खपावी केवल कमला धारी। आचार्य श्री की एक कृति सुमतिनाथ का स्तवन है। इसमें तेरह गाथाएं हैं। सुमतिनाथ के गुण करते हुए इसमें एक दृष्टान्त भी गूंथ दिया है। जिनेन्द्र का नाम 'सुमति' क्यों दिया गया, इस पर दृष्टान्त है कि एक सेठ के दो पलियाँ थीं। उनमें से एक के एक पुत्र था। दोनों उसे अपना कर मानती थीं। सेठजी का देहावसान हो गया। ...... Ja MINIK १ ग्राम नगर पुर विचरिया कीदो भव जीवा उपकार । अनार्य आर्य किया धर्म दिपायो सुध सार ।। -.-." 'S/ST / y S
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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