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________________ झंकार हुई। वायु मंडल में शक्ति रस का संचार हुआ। मुनिराज श्री लोकेन्द्रविजयजी ने मंच से उद्घोष किया "कुछ ही क्षणो में रथयात्रा प्रारंभ होने जा रही है। पंडाल में सभी भक्त एवं श्रद्धालु महानुभाव वरघोडे के चल समारोहमें सम्मिलीत हो।" परम्परागतानुसार वरघोडे (रथयात्रा) का भव्य आयोजन रखा गया। सबसे आगे इन्द्रध्वजा, हाथी, घुडसवार, महालूंगे इंगले मंडल के साथ भव्य रथ यात्रा का चल समारोह शुरु हुआ। वाद्य यंत्रो की सुरम्य ध्वनि, जिन शासन का जयघोष, बहनों का मंगल गायन आदि से पुरी नेरल नगरी धर्म नगरी प्रतीत हो रही थी। अजैन दर्शको के मुहँ से बरबस निकल पड़ा "यह चल समारोह मानो अश्वमेघ यज्ञ किया जा रहा हो" । रथ यात्रा से मुखरित नगर मे युवको ने रथ यात्रा का सफल संचालन किया। गांव के बाहर विशाल गोलाकार यात्रा मुडकर आगे बढ़ी उस क्षण पुष्पों की वृष्टी की गई। ऐसा आभास हुआ जैसे देवी देवता प्रभु महोत्सव में पुष्प वर्षा कर रहे हो। युवक मनमोहक दृश्य से मुग्ध होकर झुम-झुम कर नृत्य कर रहे थे। जैसे वे भक्तिरस में सरोबार हों। उनके मुख से निकले शब्द कितने प्रिय थे "धुम परे धरती तपे रे" एवं "जोरसे बोलो जय महावीर" - "प्रेम से बोलो जय महावीर"। जब वरघोड़ा समापन की ओर अग्रसर हो रहा था। वहाँ के निवासियोंने प्रभु के समक्ष महालूंगे इंगले मंडळ के साथ भाव विभोर हो कर नृत्य में शामिल हो गये। ऐसे खुशी के अवसर यदा कदा ही आते है। शाम को ६ बजे रथयात्रा भव्य पांडाल मे विसर्जित हुई। १७ मई १९८९ बुधवार वैशाख सुद १२ आज नेरल नगर के नुतन जिन मंदिर में भगवान श्री मनि सव्रत स्वामी आदि जिन बिम्बों की प्रतिष्ठा की जाने वाली है। सभी लोभ ब्रह्म मुहुर्त में उठकर तैयारी में लग गये सभी प्रभु प्रेम के मतवाले हो रहे थे। किसी को आज सामान्य विषयों पर बोलने बतियाने का समय नहीं था। सबकी जबान पर एक ही बात थी। "जल्दी करो, समय नहीं है। आज मंदिर जी मे प्रभु प्रतिष्ठा है।" प्रात: साढ़े नौ बजे अभूत पूर्व भीड के बीच शा. ओटर मलजी हजारी मलजी अपने परिवार सहित हाथी पर बैठ कर तोरण बंधाने आये। करतल ध्वनि के साथ यह कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। दस बजे मुनिराज श्री का आदेश हुआ। विधिकारक विधि सम्पन्न कराने में तत्परता से जुट गये। झालर की मधुर झंकार का स्वर जैसे ही सुनाई पड़ा वैसे ही "ॐ पुन्याहां - पुण्याहां, ॐ प्रियन्ताम - प्रियन्ताम के स्वर से मंदिर गुंज उठा। मुनिराजने घड़ी मे देखकर जैसे शुभ समय का इशारा किया वैसे ही जय घोष के साथ जिन प्रतिमाओं को यथा स्थान प्रतिष्ठित कर दिया गया। समस्त उपस्थित जन समुदाय प्रफुल्लित हो उठा। बालक, वृद्ध, युवक, युवतियाँ इस महत् आयोजन से प्रसन्न होकर एक दूसरे का अभिनन्दन करने लगे। हाथ मिलाकर हँसते हुए एक दूसरे के छापे लगाने लगे। प्रतिष्ठा महोत्सव का मुख्य कार्यालय सम्पन्न होने के पश्चात मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी ने प्रतिष्ठा के महत्व को अत्यन्त ही सरल और मार्मिक वाणी में समझाया। उन्होने यह आशा व्यक्त की कि जिन शासन का धर्मध्वज विशाल गगन में युगो युगो तक लहराता रहे और घर घर में धर्म के प्रति अगाध श्रद्धा बढ़े। ___ बाद में मुनिराज श्री लोकेन्द्र विजयजी ने अपनी चिर परिचित मधुर वाणी में उपस्थित मन जब लागणी के घाव से घवाता है तब कठोर बन ही नहीं सकता। ८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012037
Book TitleLekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpashreeji, Tarunprabhashree
PublisherYatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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