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________________ सहृदयता सरलता, प्रेम और शांति से सभी का मन जीत लेतें थे। और यहाँ विहार कर वापीस आ रहे है, प्रतिष्ठा कराने हेतू नेरल नगर में। गोरल नगर के श्री संघ के श्रावक श्राविका, आबाल वृद्ध सभी दिनांक २६ अप्रेल को उस ओर प्रतिक्षारत थे, जिस ओर से मुनिराज द्वय आने वाले थे। उनके स्वागत सामैये के लिये बैण्ड भी तैयार था। सभी मैं मुनिराज श्री के पधारने का अपार उत्साह था। जैसे ही मुनिद्वय नगर में पधारे वातावरण में जय जयकार के नारे गुंजाय मान हुए। वाद्ययंत्र गरज उठे। पारम्परिक परम्परानुसार मुनिराज द्वय का शानदार स्वागत हुआ। महिलाओ ने मंगल कलश लेकर सुमधुर गीत गाये। मुनिराज द्वय के साथ साथ साध्वी मंडल भी था। नगर के मुख्य मार्गो से होते हुए चल समारोह के साथ उपाश्रय में पधारे जिन मंदिर में दर्शन वन्दन किये। प्रतिष्ठा महोत्सव को सफल बनाने के लिये घर घरमें धर्म के प्रति अतूट निष्ठा जागृत कर, त्याग का बीजारोपण कर मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी और मुनिराज श्री लोकेन्द्रविजयजी सकल श्री संघ के साथ धार्मीक अनुष्ठान के कार्य सम्पन्न करने में जुट गये। लगभग २० वर्ष के पश्चात नेरल नगर के इतिहास में यह पवित्र अवसर आया था, कि इतने विशाल धार्मिक महोत्सव का आयोजन हो रहा था। लोग प्रतिष्ठा के कार्यों में इतने मगन हो गये कि उन्हे न घर की सुध न खाने की और न व्यापार धन्धे की सुध ही थी। १० मई बुधवार वैशाख शुक्ल ६ से नेरल नगर (रायगड) महाराष्ट्र में भगवान श्री मुनिसुव्रत स्वामी की प्राण प्रतिष्ठा के पावन अवसर पर श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन, श्री बृहद् शांति स्नात्र महापूजन सह नवान्हिका महोत्सव श्रमण सूर्य पूज्य मुनिप्रवर श्री लक्ष्मणविजयजी "शीतल" म.सा. के सुशिष्य रत्न पू. मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी म.सा. एवं मुनिराज श्री लोकेन्द्र विजयजी म.सा. तथा साध्वी श्री पुष्पाश्रीजी आदि ठाणा ६ की शुभ निश्रा में शुरु हुआ। धार्मिक महोत्सव देखने के लिये दर्शनार्थियों की पूरे नगर में चहल पहल थी। मांडवे की सजावट का कार्य पूनावाले को सोपा गया था। लाइट डेकोरेशन अनोखा था। संध्या समय नेरल नगर महोत्सव की रोशनी से जगमगा उठा औसा लगता था जैसे स्वर्ग धरती पर उतर आया हो। ऐसा प्रकाशमय धार्मिक महोत्सव नेरल नगर में पहले कभी नहीं हुआ था। भावी महोत्सव शायद ही इसकी प्रतिस्पर्धा करे। ५ मई १९८९ को साध्वीश्री पुष्पाश्रीजी म.सा. की सशिष्या साध्वी श्री दर्शनरेखाश्रीजी के ५०० आयम्बिल की तपस्या की पूर्णाहूति के उपलक्षमें उनको पारणा कराने का लाभ शा. श्री फुटरमल चौथमलजी ने लिया। इसी दिन श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन का आयोजन रखा गया गुरुदेव मुनिद्वय के महाराष्ट्र आगमन के बाद तीसरी बार श्री पद्मावती माताजी के महापूजन समारोह सम्पन्न हुआ। इस महोत्सव मे विधि विधान के लिये विधिकारक इन्दौर निवासी शा. कांतिलाल लहरच दजी शाह और आंगी के लिये आंगीकार राजगढ़ म.प्र. निवासी शा. मीलापचन्द दौलाजी पधारे थे। १६ मई १९८९ मंगलवार का दिन। वैशाख शुक्ल ११ संवत २०४६ प्राकृतिक छटा से आच्छादित सुरम्य नगर नेरल में प्रभात होते ही तीर्थ यात्रियो का आगमन शुरु हो गया। भव्य रथ यात्रा का आयोजन किया गया। इस हेतु नगर में स्थान स्थान पर स्वागत द्वार बनाये गये। इस प्रतिष्ठा महोत्सव की विशेषता यह थी, कि इस महोत्सव में अजैन नागरिको ने उत्साह पूर्वक पूरा पूरा सहयोग दिया। ढाई बजे रथ यात्रा के चढ़ावे पटांगण में पुरे हुए। झालर की संसारी और संसार त्यागी, दोनों का संसक्षण करने वाली यदि कोई संजीवनी है, तो वह है मात्र धर्म। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012037
Book TitleLekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpashreeji, Tarunprabhashree
PublisherYatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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