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________________ अपनी निकृष्ट प्रवृत्ति और हिन प्रवृति के फलस्वरूप उन जिवात्माओं के साथ अव्यवहार होने के कारण उन समस्त प्राणियोंकी आत्मा अपने द्वारा दुःखीत हुई हो, पीडित हुई हो तो मनसा, वाचा, कर्मणा के त्रिवेणी संगम विनम्र भाव से मैं वारंवार वैर विरोध की दीर्घ परम्परा को तिलांजली देते हुए अपने मनोमालिन्य हेतु सभी जीवों से क्षमा याचना करना उसी के द्वारा हमारे आत्मोत्थान व जीवन विकास के लिए की गई प्रत्येक साधना - साध्य की प्राप्ति में अभिवृद्धि करके परमात्मा तक पहुंचाने में सहायक होती है ज्ञानीयों ने तो क्षमा धर्म को साधना सिद्धि की पूंजी कहा है जगत के सर्व जीवों के साथ की गई क्षमापना स्वात्मा के लिये एक सुन्दर प्रार्थना है। नमस्कार करने से विनय गुण प्रगट होता है। क्षमा भाव रखकर सभीका सत्कार करने से आत्मा का अवगुरुलहान गुण प्रकट होता है दशविध यति धर्म में प्रथम लक्षण प्रथम गुण की सम्यग् प्रकार से परिपुष्टि होती है वह सर्व प्रथम गुण व लक्षण है "क्षमा क्षमा आत्मा में जो कषायिक विकृति पैदा हुई होती है, उसे दूर कर आत्म कमल को शुद्ध निर्मल स्फाटिकवत प्रकृति अवस्था में लाने की सुन्दर व्यवस्था कर देती है। क्षमा... अर्थात्त जीवों की सहानुभूति प्राप्त करने की केन्द्रशाला क्षमा... अर्थात्त आध्यात्मिक विकास की पाठशाला क्षमा... अर्थात दुष्कर्मों की परिसमाप्ति का प्रथम चरण क्षमा... अर्थात्त मन और मस्तिष्क को शुद्ध करने की प्रयोग शाला पर्युषण पर्व में भी पाँचवे कर्तव्य के विषय में भी कहाँ है कि इन आठ दिनों में अविचार असद व्यवहार और दुराचार की आहुति देकर " क्षमावाणी पर्व पर वर्ष गत हुए भूलों की पूर्णाहुति कर नये रूप से जीवन की साधना प्रारम्भ करना यही जिन वाणी का सन्देश है मनुष्य मात्र भूल का भरा पिटारा है उस भूल को सुधार कर वैर विरोध रूप भूल को दूरकर कषाय रूप त्रिशुलको त्याग कर जीवन बगीया में फूल खिलना यही सच्चा क्षमा पर्व है। किसी विद्वान ने कहा है कि ठंडा लोहा गर्म लोहे को काट देता है दियासलाई दूसरों को जलाने के पूर्व अपना मुख सर्व प्रथम जलाती है। अग्नि के दो रूप है १ ज्योति और २ ज्वाला अब हमें अपने स्वयं के जीवन विकास के लिए कुछ सोचना विचार करना है। १ ज्योति बनने की कला क्षमा गुण को धारण करने से उपलब्ध होती है २ ज्वाला की बला क्रोधाग्नि से जीवन को और साधना को नष्ट कर डालती है ज्योति स्वयं प्रकाशित होकर दूसरों को भी आलोकित प्रकाशित करती है ज्वाला - स्वयं जलकर दूसरों को भी जलाती है और नष्ट भष्ट कर देती हैं पुरण चोट करने पर टुटता नही कायम रहता है जब कि हथोड़ा चोट करता है और टुट भी जाता है। स्टर्न नामक एक विद्वान ने अंग्रेजी में लिखा है कि कायर मानव कदापि क्षमा नही कर सकता, जो व्यक्ति बहादुर है वही क्षमा कर सकता और दे सकता है, कहा भी गया है कि ३१४. . Jain Education International क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो । उसको क्या जो दन्त हीन, विष रहित विनीत सरल हो। आग का छोटे से छोटा तिनका भी भयंकर ज्वाला निर्मित कर सकता है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012037
Book TitleLekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpashreeji, Tarunprabhashree
PublisherYatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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