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________________ नैनमलजी जुहारमलजी, छगनलालजी, मोतीलालजी, मांगीलालजी, धरमचन्दजी, चम्पालालजी, खीमचन्दजी, अजितकुमार ताराचन्दजी फर्म " श्री पद्मावती आइल मिल्स" ने गुरु जयन्ती का सम्पूर्ण लाभ प्राप्त किया । और शाम की आरती भी श्री पद्मावती आइल मिल्स ने चढ़ावा बोलकर प्राप्त को पूज्य गुरुदेव की आरती जैसे ही होने लगी और दिवालों और छत से, गुरुदेव की छतरी से अमीय वर्षा प्रारंभ हो गयी। अमीय वर्षा भी केशर युक्त थी । अमीय वर्षा प्राप्त करने के लिए सैकड़ों गुरु भक्त लालायित हो उठे। सैकड़ों गुरु भक्त अमीय वर्षा का यह चमत्कार देखकर श्रद्धान्वित हो गये। गुरु समाधि मंदिर श्री मोहनखेडा तीर्थ पर अमीय वर्षा होती है। फिर मोहना नगर में विगत २ वर्ष से हो रही है। मोहना नगर में गुरुदेव की मूर्ति ही चमत्कारिक है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि प्रतिवर्ष गुरु जयन्ती के आयोजन पर श्रद्धालु गुरु भक्तों की भीड़ बढ़ती जा रही थी । बास्तव में मोहना का गुरुजयन्ती पेला देखने पर ऐसा लगता है कि सचमुच मोहना, मोहनखेड़ा के पद चिन्हों पर अग्रसर है। कोंकण के इतिहास की गौरवमय गाथा में पूज्यश्री लेखेन्द्रशेखरविजयजी म.सा. की जिनशासन प्रभावनाएँ स्वर्णाक्षरों से अंकित हो गयी है। यह शृंखला यही पूर्ण नही होती है। पूज्य प्रवर की तेजस्वी कार्य शक्ति की सौरभ बम्बई महानगर कह हरक्षेत्र में व्याप्त हो गयी है। श्री पार्श्वपद्मावती महापूजनों के विराट् आयोजनों इस महानगर में आ रहे हजारों श्रद्धालु भक्तों को एक साथ में मंत्र लयबद्ध हो जाना भी एक कीर्तिमान था । " कोंकण केशरी" के पद से शोभित होते ही महिमावंत गरिमायुक्त पद से सुशोभित होते ही कलवा पधारे। पूज्य श्री के आगमन से चारों और हर्ष की लहर दौड़ गयी। कलवा ही नहीं अन्य शहरों में भी "कोंकण केशरी" पद की शाल ओढ़कर अनुमोदना में धन्य भागी बन रहे थे। इससे पूर्व भिवंडी में भी आपका सत्कार समयोचित सम्मानिय रहा है। दानवीरता एवं शुरवीरता से सुशोभित राजस्थानी भूमि पर गोडवाड़ क्षेत्र में बसा जवाली गाँव। जवाली गाँव के धर्मपरायण श्रेष्ठीवर्य श्री मुलचन्दजी गेनमलजी का एक प्रतिष्ठित परिवार रहा है। श्रीमति चम्पाबाई मूलचन्दजी शाह की ओर से माटुंगा - बम्बई में माघ कृष्णा ६ रविवार दिनांक ६/१/९१ को श्री पार्श्वपद्मावती महापूजन का विराट् आयोजन हुआ। पूज्य श्री की पावन निश्रा में ६१ वां महापुजन था। जो कि आज तक महापूजनों में एक यशस्वी शाही महापूजन था। हजारों की जनमेदिनी इस महापूजन को श्रद्धान्वित दृष्टि से देखने में भाव निमग्न थी । "कोंकण केशरी" पूज्य प्रवर भावमयी तन्मयता में, माँ का स्वरुप, उसकी अलौकिक शक्ति और आज के इस युग में भी मां के चमत्कारों से अवगत करवा रहे थे। बलवन्त ठाकुर एण्ड पार्टी अपनी आर्केष्टा लिये भक्ति धुनों से भक्त गणों की भक्ति में सराबार कर रही थी। मुनि श्री लोकेन्द्र विजयजी ने कहा कि आज यह महापूजन इतनी महिमावंत हो गयी है कि हजारों भक्त गण पूजा का सुनकर भक्ति भाव में मग्न होने के लिए इस और कदम बढ जाते हैं। हमें हमारी चेतना को भक्ति के माध्यम से उर्ध्वगामी बनाना है। क्यों कि आज के इस युग में विषम वातावरण में हमारे पास यही एक मात्र विकल्प सुरक्षित है। माटुंगा की यशस्वी शाही पूजन की विराटता का वर्णन शब्दों से लिपिबद्ध करना असंभव सा प्रतीत होता है। क्यों कि आयोजक की विराटता भी प्रसंसनीय है। जैन समाज अपनी दानवीरता से सदा गोरवान्वित रहा है। केवल धार्मिक कार्यों में मानव सेवा, शिक्षण संस्थान और विभिन्न दृष्टिकोण के लिए रचनात्मक कार्यों में सदा अग्रणीय रहा है। आज वर्तमान विचारधारा में जैन समाज एकता के सूत्र में संगठित हो रहा है। अगर वास्तविकता में यह समाज अनेकता में एकता विश्वास प्रकट कर दे तो यह समाज भारतीय परिपेक्ष्य में एक महानता का कार्य हो सकता है। " कोंकण केशरी" पूज्य प्रवर सदा ही समाज को समन्वय का संदेश दिया हैं। Jain Education International पल-पल जो जागृत रहे, वह साधु। निद्रा में भी जो जागृत हो, वह साधु । For Private Personal Use Only ११७ www.jainelibrary.org
SR No.012037
Book TitleLekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpashreeji, Tarunprabhashree
PublisherYatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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