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________________ ३. - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - आधुनिक सन्दर्भ में जैनधर्मइस सन्दर्भ में एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न पर विचार करना रह , १. उचित रोजगार की प्राप्ति में देरी होने पर तनावग्रस्त होकर गया है कि यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु उसके ही कर्मों का फल निराश हो जाना। है व हत्यारे को उसके मारने के बुरे भावों व मारने के बुरे प्रयत्नों अपने या अपने परिवार के सदस्यों की शादी हेतु योग्य की ही सजा मिलती है, तो फिर ऐसा क्यों कहा जाता है कि साथी की खोज में देरी होने पर तनाव ग्रस्त होकर निराश अमुक हत्यारे ने अमुक व्यक्ति को मारा है? हो जाना। इसके समाधान में यह कहा जा सकता है कि कम शब्दों , जब अपने व्यक्ति ही पराए की तरह व्यवहार करने लगें, में अधिक तथ्य आ जाने की सुविधा से ही माँ बच्चे को कहती तब तनावयुक्त होकर दुनिया को धिक्कारना। है कि 'आटा पिसा लाओ।' इस वाक्य में दो कथन आ गए हैं - ये गेहूँ पिसाने हैं व गेहूँ का दलिया नहीं बनवाना है अपित आटा ४. आकस्मिक आपत्ति के आगमन पर घबरा जाना। बनवाना है। इसी प्रकार 'उसने एक व्यक्ति को मारने का अपराध ५. आगामी संभावित विपत्ति से भयभीत होना। किया है।' इस एक पंक्ति में तीन बातें आ जाती हैं - मारने का यशयोग्य कार्य के बदले अपयश के मिलने से दुःखी होना। इरादा किया है, मारने का प्रयत्न किया है व मारने का प्रयत्न जाने-अनजाने में अपने निमित्त से अन्य की हानि या आधा-अधूरा न होकर पूर्ण हुआ है। स्पष्ट है कि तीन पंक्तियों के बदले एक पंक्ति का उपयोग अधिक सुविधाप्रद है व उस स्वयं की हानि का इतना पछतावा होना कि सदैव अपने को ही धिक्कारते रहना व किसी अन्य कार्य में रुचि न व्यक्ति के रिकार्ड एवं सजा की दृष्टि से भी इस तरह की एक रहना। पंक्ति के उपयोग से कोई अंतर नहीं पड़ता है अतः उक्त एक पंक्ति का उपयोग इस अपेक्षा से उचित ही है। प्रकृति की व्यवस्था पर अविश्वास के कारण अपनी आर्थिक एवं शारीरिक सुरक्षा हेत भौतिक साधनों एवं सारांश यह है कि मरने वाला अपने कर्मों के फल से मरता यश की असीमित उपलब्धि के संचय की भावना से है किन्तु मारने वाला अपने मारने के बुरे भाव एवं बुरे प्रयत्न के स्वयं की शक्ति, शान्ति एवं रिश्तों का बलिदान करना व कारण समाज में व प्रकृति की व्यवस्था में सजा का पात्र बनता है। अन्य परिचित-अपरिचित व्यक्तियों के शोषण की भावना लाभ एवं उपकार की स्थिति में भी ऐसा ही अनेकान्त रखना। लागू होता है (क) लाभ पाने वाले व्यक्ति के कर्मों के फल से मनोवैज्ञानिक भी इस तरह की समस्याओं का समाधान उसे लाभ मिलता है। (ख) जिसने लाभ पहुँचाने का प्रयास किया है, वह व्यक्ति उसके अच्छे विचारों एवं अच्छे प्रयत्नों के . अच्छी सफलता के साथ कर रहे हैं किन्तु आध्यात्मिक समझ कई मामलों में अधिक प्रभावी व स्थाई सिद्ध हो सकती है। . लिए प्रशंसा, प्रतिष्ठा एवं प्रोत्साहन का पात्र बनता है एवं (ग) लाभ पाने वाला आध्यात्मिक गृहस्थ लाभ पहुँचाने वाले व्यक्ति अध्यात्म के ग्रन्थ यहाँ यह कहते हैं कि आत्मा के साथ के प्रति यथायोग्य आभार भी अनुभव करता है। लगी हुई कर्मवर्गणा का प्रभाव भी लाटरी की मशीन पर पड़ता है। यानी अध्यात्म एवं विज्ञान में मूल अंतर इस लाटरी खुलने प्रकृति की व्यवस्था की समझ का लाभ की प्रक्रिया में यह आ जाता है कि विज्ञान चैतन्य तत्त्व एवं प्रकृति की व्यवस्था की यह आध्यात्मिक समझ व्यक्ति कर्म-वर्गणा के अस्तित्व को छोड़कर व्याख्या करना चाहता है। को आध्यात्मिक विकास की तरफ तो अग्रसर करेगी ही किन्त लाटरी खुलने की दार्शनिक व्याख्या में आत्मा के पुराने कार्यों साथ ही जीवन की कई दुःखदायी समस्याओं में भी प्रकाश का के आधार पर आटोमैटिक निश्चित समय पर प्रभावी होने वाले स्रोत बन सकेगी। जीवन की ऐसी कई भौतिक समस्याओं में से रिमोट कंट्रोल के अस्तित्व की स्वीकृति भी है। भारतीय दर्शन निम्नांकित समस्याओं में इस आध्यात्मिक समझ का लाभ स्पष्ट ऐसे रिमोट कंट्रोल को आत्मा के साथ लगे हुए अति सूक्ष्म नजर आ सकता है। अचेतन कणों का पुंज या कर्म-वर्गणा के रूप में स्वीकारता है। DrawariwariwariwordworosorawbrarabradAadirard-o- १२dririrandirowomowonodromidniridwardwordGrowordGitarai Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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