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________________ - यतीन्दसूरिस्मारक ग्रन्थ - इतिहासव्यय कर अपने कुल के श्रेयार्थ तीर्थ यात्राएँ कीं। इनके यशोदेवी वर्तमान में जो सर्वप्राचीन कलापूर्ण और मुख्य जिनालय और हंसिनी नामक भार्याएँ थी। यशोदेवी के पुत्र जगद्धर ने श्री पार्श्वनाथ स्वामी का है। वह खिलजी काल में मुसलमानों के जैसलमेर में देवविमानतुल्य पार्श्वनाथ जिनालय का निर्माण कराया। अधिकार में जैसलमेर था। वह ध्वस्त किए जिनालय के स्थान इनकी स्त्री का नाम साढलही था। जिसकी कोख से १ यशोधवल, में ही बना या अन्यत्र यह पता नहीं, क्योंकि वर्तमान जिनालय २ भुवनपाल, ३. सहदेव नामक पुत्र और आसुला, हीरला रांका सेठ परिवार द्वारा निर्मित है। जिस की विस्तृत, प्रशस्ति में नामक दो पुत्रियाँ हुईं। सेठ, यशोधवल, मरुस्थल-कल्पद्रुम कहलाते उनकी वंशपरंपरा दी गई है। थे। वे प्रतिदिन देशान्तरों से आए हए श्रावकों की भोजनादि से यह प्रतिष्ठा सं. १३१७ वैशाख सुदि१० को हुई थी। श्री भक्ति करते थे। दूसरे भ्राता भुवनपाल बड़े पुण्यात्मा थे। छह अभयतिलक गणि ने अपने महावीररास में लिखा है कि भवनपाल मास भूमिशय्या, एकासनत्व, स्नानत्याग, षडावश्यक, नवकार ने यह सौधशिखरी जिनालय राय मंडलिक के आदेश से बनवाया मंत्र स्मरण, ब्रह्मचर्य आदि अनेक नियमों के धारक थे। सं. और मण्डलिकविहार नामक मंदिर बनवाकर अपने पिता श्री १२८८ आश्विन सुदि १० को पालनपुर में गुरु महाराज श्री जगद्धर शाह के कुल में कलश चढ़ाया। जिनपतिसूरि के स्तूपरत्न पर ध्वजारोहण कराया। श्री भीमपल्ली भीमपल्ली पुरिविहिभुयणि अनु संठिउ वीर जिणंदो,. में सौधशिखरी प्रासाद निर्माण कराके श्री जिनेश्वरसूरिजी के तसुउवरि भुयण उतुंग वर तोरणं, मंडलिराय आएसि अइ सोहणं करकमलों से वीरप्रभु की स्थापना कराई। इनकी पत्नी पुण्यिनी साहुणा भुवणपालेण करावियं, जगधर साहुकुलि कलश चाडावियं। बड़ी पुण्यात्मा थी, जिसके त्रिभुवनपाल और धीदा नामक पुत्र हेम धय दंड कलसो तहि कारिओ, पहु जिणेसर सूरि पासि पइठाविओ हुए। उनके क्षेमसिंह और अभयचंद्र पुत्र हुए। विक्कमेवरिसि तेरहइसतरोतरे (१३१७) सेय वइसाह दसमीइ सुहवासरे अपने गुरु श्री जिनेश्वरसूरिजी की श्रीसंघ सेना के सेनापति इसी वंश में सा. वीरदेव बड़े नामांकित व्यक्ति हुए, बने। और तीर्थयात्रा द्वारा अपने कल पर अपने नाम का कलश जिनके द्वारा सं. 1381 में श्री जिनकुशल सरिजी के सान्निध्य चढ़ाया। उदारचेता भुवनपाल ने प्रत्येकबुद्ध-चरित्र लिखवाकर में शंगत्रुजयादि तीर्थों का संघ निकालने का विशद वर्णन श्री जिनेश्वरसूरि को समर्पित किया। अभयचंद्र की भार्या लक्ष्मिनी मिलता है। उसके भाई सा. मालदेव व हुलमसिंह,धनपाल, थी और धीधा, जगसिंह, तेजा नामक तीन पुत्र और पद्मिनी व सामल के नाम भी पूर्वजों के रूप में आए हैं। सं. 1377 में कुमारिका दो पुत्रियाँ एवं साचा आदि पौत्र-प्रपौत्र हुए। सेठ जगद्धर श्री जिनकुशलसूरिजी के पट्टाभिषेक के समय भी वीरदेव पत्तन द्वारा श्रीमालनगर में समवशरण, प्रतिष्ठा व शांतिनाथ स्थापना के में उपस्थित ह । इन्हें भीमपल्ली के मुकुटमणि साधुराज उल्लेख मिलते हैं। सामल के पुत्र थे, लिखा है। सेठ क्षेमंधर की द्वितीय पत्नी हंसिनी के १ भीमदेव २ श्री नाहरजी के जैनलेखसंग्रह ततीय भाग में प्रकाशित पदम ३ पुरिसड़ पुत्र थे। पद्म की स्त्री जयदेवी और पुत्र का नाम जयदवा आर पुत्र का नाम अभिलेखों के अतिरिक्त रांका सेठ परिवार द्वारा निर्मापित वर्तमान भी साढल महाश्रावक था। जिनालय गत लेखों के अतिरिक्त निम्नोक्त कल्पसूत्र लेखनप्रशस्ति उपर्युक्त इतिवृत्त जैलसमेर में सर्वप्रथम देवविमान सदृश भी इसी परिवार से संबंधित होने से यहां उद्धृत की जा रही है। पार्श्वनाथ जिनालय निर्माण कराने वालों का है जो जैसलमेर कल्पसूत्र-लेखन-प्रशस्ति ज्ञानभण्डार की कई ताड़पत्रीय ग्रंथप्रशस्तियों एवं युग-प्रधानाचार्य -गुर्वावली के आधार पर लिखा गया है। इस समय न तो कोई गृक्षगच्चारुशाखायुगा..नासप्रयोजयत्। श्रीमानूवेशवंशोऽयं, चिरं नंद्यान् महीतले ।।१।। शिलालेख-प्रशस्ति आदि उपलब्ध है और न उस मंदिर का पता है। जिनालय निर्माता का गोत्र भी नहीं लिखा है। अत: बोहित्थ ता चा-शेष्ठिरंककशाखायां, यक्षदेवस्य नन्दनः। के वंशज बोथरा गोत्र समझना चाहिए। अभूत् झांबटकाभिख्य, तत्सूनुर्धांधलोत्तमः।।२।। श्रीगजू भीमसिघाख्यानभूतां धांधलाङ्गजौ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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