SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 912
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्ध - इतिहासतेषां मध्ये पुण्यात्मा गांगदत्तो गुणाधिकः। पत्तामिधः सुपुण्यात्मा पाबू नाम्नीति तत्प्रिया। नाम्ना गेलमदेवी भार्या तस्य प्रजायतः।।२९।। नेताभिधानः सत्पुत्रं प्रिया नवरंगदे इति ।।३७।। इनमें पुण्यात्मा गांगदत्त गुणों में विशिष्ट है, जिसकी भार्या पत्ता नामक पुण्यात्मा की पत्नी पाब नाम की है। उसके गेलम देवी हुई। सुपुत्र नेता की प्रिया नवरंगदे हैं। तत्कुक्षिशुक्तिमुक्तायाः पुत्राः पञ्च गुणोज्जवला:। तुर्यश्चतुर्थनामासौ भार्यारूपीति नामिका। राजसिंहः श्रियाशाली मंत्रीशो राजवल्लभः।।३०।। चाचाभिधानो देसूरु लघुपुत्रद्वयं वरः।।३८।। ग माया उसकी कोख रूपी सीप में मोती के सदृश पाँच गणवान चौथा नामके चतुर्थ पुत्र की भार्या रूपी नाम की है। चाचा पुत्र हुए। राजसिंह मंत्रीश्वर राज्य में वल्लभ और क्रियाशाली था। नामक तथा देसूरु नामक दो श्रेष्ठ लघु पुत्र हैं। जसामिधानः राणाह्वः मंत्री दूदाभिधस्तथा। प्रथमा पुत्रिका येठी, रंगी नाम्नी द्वितीयका। महीकर्ण इतिख्याताः सर्वे सर्वत्र भूतले।।३१।। चंगी नाम्नी तृतीया तु, पुत्रीतृतयमुत्तमम् ।।३९।। जसा, राणा, मंत्री दूदा एवं महीकर्ण ये सभी पृथ्वी तल में पहली पुत्री जेठी, दूसरी रंगी, तीसरी चंगी, तीन श्रेष्ठ पुत्रियाँ प्रसिद्ध हुए। तन्मध्यमंत्रीवर्यवस्तु राजसिंहो विशेषतः तेनेदं राजसिंहेन परिवारयुतेन च। त्यागी भोगी यशस्वी च श्रीमान् कुलविभूषणम्।।३२।। सौवर्णाक्षरै श्रेष्ठं श्रीकल्पागमपुस्तकम्।।४०।। __इनमें मंत्रीश्वर राजसिंह विशेषत: त्यागी, भोगी, यशश्वी व उस राजसिंह ने सपरिवार यह कल्पागम की श्रेष्ठ पस्तक कुलभूषण श्रीमान् था। स्वर्णाक्षरों में (लिखवाई)। पदस्थापना कर्मादिपुण्यकार्याण्यनेकशः। श्रीमत् खरतरगच्छे श्रीजिनदत्तसूरयः। कृतानीह पुनःकर्ता सम्पत्तेरनुमानतः।।३३।। तेषामनुक्रमे जात श्रीजिनकुशलनामकः ।।४१।। इसने अपनी सम्पत्ति के अनुसार पदस्थापनोत्सवादि पुण्य . श्री खरतरगच्छ में जिनदत्तसूरि जी हुए। उनकी परंपरा में कार्य अनेक बार किए। अनुक्रम से श्रीजिनकुशल नामक (सूरि) हुए। भार्या राजलदेवीति सतीकुलमत्तिलका। श्रीजिनपद्मसूरीन्द्रो जिनलब्धिस्ततः प्रभुः। चम्बगोत्रीयभोजाह्वनन्दिनीगुणबंधुरा।।३४।। श्रीजिनचन्द्रसूरीशस्तत्पट्टोद्धरणः प्रभुः।।४२।। उसकी भार्या राजलदेवी चम्बगोत्रीय भोजशाह की पुत्री श्री जिनपद्मसूरि, श्री जिनलब्धिसूरि के पट्टप्रभाकर श्री । गुणविशिष्टा, सतीकुलतिलका थी। जिनचन्द्रसूरि हुए। तस्याःकुक्षौ सुरत्नानि रत्नभूमौ यथास्फुटम्। श्री जिनेश्वरसूरीन्द्रो विख्यातो जगतीतले। पुत्रा रत्नान्यजायन्त तन्नामानि यथाक्रमम्।।३५।। तत्पट्टे प्रगटश्चासीत् श्री जिनशेखरसूरिराट् ।।४३।। उसकी रत्नगर्भा कोख से पुत्ररत्न जन्मे जिनके नाम क्रमशः श्री जिनेश्वरसूरि जगत्प्रसिद्ध हुए, उनके पट्टपर श्री कहते हैं। जिनशेखरसूरिराज हुए। आद्य सत्ताभिधो मंत्री सौंदर्यादिगुणान्वितः तत्पट्टाभरणं श्रीमान् श्रीजिनधर्मुनीश्वरः। सक्तादेवी प्रिया तस्य विद्यते गुणसंयुता।।३६।। तस्याणुर्जिनचन्द्राख्यसूरिस्तस्योपदेशेन।।४४।। पहला सत्ता नामक मंत्री गुणशाली था उसकी प्रिया सक्ता उनके पट्ट पर श्री जिनधर्मसूरीश्वर, फिर शिष्याणु श्री। देवी बड़ी गुणवती है। जिनचन्द्रसूरि हुए, जिनके उपदेश से - AMENDMENGmbinasimamiana podpanner Gaman Santana Gabon Gambia Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy