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________________ - यतीन्द्रमरिरमारक ग्रन्थ - इतिहासतत्पुत्राऽथ कुलधर कुलभारधुरन्धरः श्री मद्वेगडनासौ संजातः कुलमण्डनम्। प्रौढप्रतापसंयुक्तः शत्रूणां तपनोपमः।।१३।। यस्यानुजः सिंगड़ाह्वः श्रीजिनेश्वरसूरिराट्।।२१।। उनका पुत्र कुलधर हुआ जो कुलभार वहन करने में धुरंधर, यह श्रीमद् वेगड़ नामक कुलमण्डन हुआ जिसका अनुज । प्रौढ़ प्रतापी और शत्रुओं के लिए तपनोपम था। सिंगड़ नामक का था जो श्री जिनेश्वरसूरिराट् हुआ। श्रीजावालपुरे भिन्नमाले श्री वाग्भटे तथा वील्हणदे नामिकास्या पूर्वपत्नी प्रशस्यते। प्रासादा कारिता तेन निजवित्तव्ययोद्वराः।।१४।। भरतो भरमश्चापि भोजो भट्टाभिधः सुता।।२२।। श्री जावालपुर भीनमाल, बाड़मेर में उसने अपने वील्हणदे नामक प्रथम पत्नी थी जिसके भरत, भरम, न्यायोपार्जित वित्त से प्रासाद बनवाए। भोजा और भट्ट नामक पुत्र हुए। तत्सूनुरजितो जातः सामंतस्तु तदंगजः परा कुतिगदेनाम्नी शीलालंकारधारिणी । हेमाभिधः श्रियायुक्तः सुनु/दाविधस्ततः।।१५।। तत्कुक्षिपद्मिनो हंसौ पुत्रौ द्वौ महिमाद्भुतौ ।।२३।। उसका पुत्र अजित तत्पुत्र सामंत हुआ जिसका पुत्र हेमा दूसरी कौतिगदे नामक शीलालंकारधारिणी पत्नी थी जिसके और उसका पुत्र बीदा नामक हुआ। कोखरूप पद्मसरोवर से हंससदृश दो महिमाशाली पुत्र हुए। तत्पुत्रौ भुवने ख्यातौ मालामलयसिंहको। आद्य सूराभिधो मंत्री प्रसिद्धो धरणीतले। मालापुत्रो जूठिलाह्वः कालू नामा तदंगजः।।१६। दानी मानी कलाशाली वदान्यो राजपूजितः।।२४।। उसके दो पुत्र माला और मलयसिंह विश्वविख्यात हुए। . प्रथम सरामंत्री पृथ्वी में प्रसिद्ध है जो दानी मानी कलाशाली व राजमान्य है। माला का पुत्र जूठिल और उसका पुत्र कालू हुआ। कलाकलापसंयुक्तः मंत्री भुवनपालकः। सूनुर्मलयसिंहस्य मंत्री झांझणनामकः सन्मोहणदेवधरः भादूभ्रातृविराजितः।।१७।। द्वितीयस्त्वभवत्पुत्रो धनवान् धर्मकर्मकृत्।।२५।। कलाकलाप संयुक्त मंत्री भुवनपाल दूसरा पुत्र है, जो । मलयसिंह का पुत्र झाँझण मंत्रीश्वर हुआ जो मोहन, देवधर धर्मकार्य करने वाला तथा धनवान है। और भादू भाइयों से सुशोभित था। श्री जिनधर्मसूरीणां पदस्थापनमादरात्। झांझणस्यसुतः श्रेष्ठः श्रीमत्सत्यपुरे वरे येनाकारि स्वसंपत्या महेवलपुरोत्तमे।।२६।। चाह्वानभीमराजेन्द्रराज्यभारधुरन्धरः।।१८।। जिसने श्री जिनधर्मसूरि का पदस्थापना-महोत्सव महेवा झांझण का पुत्र सत्यपुर (साचौर) में श्रेष्ठ था, जो चौहान नामक उत्तम नगर में आदरपूर्वक स्वधन सम्पत्ति द्वारा किया। भीमनरेश्वर की राज्यधुरा का वाहक था। भार्या भुवनपालस्य कर्णादेवी मनोहरा। शत्रजये महातीर्थे येन यात्रा कृता वरा। तस्याश्चत्वारः सत्पुत्राः सुपुत्रीपंचममुत्तमम्।।२७।। श्रीसघं मेलयित्वा च स्ववित्तं सफलीकृतम्।।१९।। भुवनपाल की भार्या कर्णादेवी मनोहरा थी,उसके चार इसने शत्रुजय महातीर्थ का संघ निकालकर तीर्थयात्रा सुपुत्र और पाँचवीं उत्तम पुत्री हुई। कर अपने धन को सफल दिया। प्रथमो धनदत्ताह्वः गांगदत्तस्तथापरः निजदानेन येनात्र कल्पवृक्षाःतिरस्कृताः शिवनामा तृतीयस्तु तुर्यः संग्राम इत्यमी।।२८।। यशो यदीयं सर्वत्र विस्तीर्ण भूमिमण्डले।।२०।। दान के द्वारा जिसने कल्पवृक्ष को भी तिरष्कृत कर दिया पहला धनदत्त, दूसरा गांगदत्त तीसरा शिव और चौथा संग्राम है। था। उसकी यशकीर्ति भू-मंडल में विस्तृत हुई। droiddroivdiodoroordarodromotoriorsdaridroid [१०५-darsamirmanshmororanoramondroidroidrorarokarokare Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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