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________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ इतिहासमाना गया है, एक निरपेक्ष सत्य और दूसरा सापेक्ष सत्य (नाम, संश्लिष्ट संरचना को ध्यान में रखकर ही किया जा सकता है। रूप आदि) जो निरंतर परिवर्तनीय है। पाश्चात्य विद्वानों की दृष्टि इतिहास का अध्ययन करने के लिए संश्लेषणात्मक दृष्टि न साथ में इतिहास का संबंध इसी दूसरे दर्जे के सत्य से है। यह मान्य ही विश्लेषणात्मक दृष्टि भी आवश्यक है इसलिए दोनों दृष्टियों में तथ्य है कि भारतीयों ने प्रथम कोटि के सत्य पर अधिक बल सामंजस्य बैठाए बिना इतिहास का अध्ययन सम्भव नहीं हो दिया, इसलिए दोनों की इतिहास-संबंधी अवधारणाओं में बड़ा सकता। किसी देश का प्रामाणिक इतिहास लिखने के लिए एक अंतर है। उन्होंने इतिहास का अर्थ केवल राजनीतिक घटनाओं समन्वित और समग्र दृष्टिकोण को आधार मानकर चलना उपयोगी का वर्णन और राज्यों के उत्थान-पतन की कथा ही नहीं माना है, क्योंकि इतिहास एक तरफ तो घटनाओं का वैज्ञानिक विवेचन था। इतिहास किसी राष्ट्र अथवा समाज द्वारा अपने अतीत में करने के लिए वस्तुनिष्ठ अध्ययन की अपेक्षा रखता है, वहीं मूल्यवान समझी जाने वाली धरोहर की रक्षा का समुचित दूसरी ओर घटनाओं की व्याख्या में व्याख्याता का निजी दृष्टिकोण साधन है। पद्मगुप्तकृत नवसाहसांकचरित, वाक्पतिराजकृत भी महत्त्वपूर्ण होता है। गउडवहो, अश्वघोषकृत बुद्धचरित, मेरुतुंगकृत प्रबंधचिंतामणि, इस कसौटी पर हम देखें तो अनेक जैन-ग्रन्थ पर्याप्त विल्हणकृत विक्रमांकदेवचरित आदि ग्रन्थ भारतीय दृष्टि से समर्थित ऐतिहासिक महत्त्व के सिद्ध होते हैं। जैसे--नन्दीसूत्र, कल्पसूत्र, र इतिहास है। हरिवंशपुराण, तिलोयपण्णत्ति, परिशिष्टपर्वन, द्वयाश्रयकाव्य, इतिहास की प्राचीन एवं आधुनिक परिभाषा का समन्वय कुमारपालचरित, कुमारपालभूपालचरित आदि। इसी क्रम में करते हुए बी.एस. आप्टे ने अपने संस्कृत्-हिन्दी कोश में जो सोमेश्वरकृत कीर्ति-कौमुदी, अरिसिंहकृत सुकृत-संकीर्तन,सोमप्रभ परिभाषा दी है, वह पर्याप्त संतोषजनक है। उन्होंने लिखा है कि कृत कुमारपालप्रतिबोध आदि भी उल्लेखनीय है। जैन-प्रबंधों इतिहास से अभिप्राय उन व्यतीत घटनाओं से है, जो कथायुक्त में जिनचन्द्रकृत प्रबंधावली, प्रभाचंद्र-कृत प्रभावकचरित, मेरुतुंग हों तथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का संदेश दें५। भारतीय कृत प्रबंधचिंतामणि और राजशेखरकृत प्रबन्धकोश की इतिहास इतिहास का सम्यक् लेखन भारतीय समाज और संस्कृति की के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण मान्यता है। इन ग्रन्थों से सातवाहनों, चाहमानों, चालुक्यों, चावडों, परमारों आदि का इतिहास ज्ञात होता है। सन्दर्भ १. बी.एस.पाठक, एन्शियन्ट हिस्टारियन्स ऑफ इण्डिया, पृ. ३ २. कौटिल्यकृत अर्थशास्त्र, अनु. - सामशास्त्री, खण्ड - १, तृतीय अध्याय, पृ. ७-१० ३. इतिहास स्वरूप और सिद्धान्त, सम्पा. - डॉ. गोविन्द चन्द्र पाण्डेय, पृ ५२ ४. बी.एस. पाठक, एन्शियन्ट हिस्टारियन्स ऑफ इण्डिया, पृ. २ ५. अर्थशास्त्र, खण्ड १, तृतीय अध्याय, पृ. ७-१० ६. बी.एस. पाठक, एन्शियन्ट हिस्टारियन्स ऑफ इण्डिया, ९. भारतीय इतिहास-लेखन की भूमिका, अनु. - प्रो. जगन्नाथ अग्रवाल पृ., २१ १०. बी.एस. पाठक, एन्शियन्ट हिस्टारियन्स ऑफ इण्डिया, पृ १९ ११. आदिपुराण१/२४-२५ १२. वासुदेव शरण अग्रवाल, इतिहासदर्शन, पृ. १ १३. सी.एच.फिलिप्स, हिस्टारियन्स ऑफ इण्डिया, पाकिस्तान व सिलोन, प्रस्तावना, पृ. १ १४. वही, पृ. २१ १५. बी.एस.आप्टे - संस्कृत-हिन्दी कोश ७. डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल, इतिहासदर्शन, पृ. ७ ८. सी.एच. फिलिप्स, हिस्टारियन्स ऑफ इण्डिया, पाकिस्तान व सिलोन पृ. १५ - १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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