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________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ इतिहासउससे संबंधित घटनाओं को धार्मिक सिद्धान्तों के दृष्टान्त के प्रायः लड़ते रहे। इस राजनीतिक उथल-पुथल के कारण रूप में प्रस्तुत किया है, जिसके कारण घटनाएँ और पात्र क्रमशः राजनीतिक अभिलेख लगातार नष्ट किए जाते रहे। धार्मिक रुढ़ होते गए और ऐतिहासिक तथ्य दब गए। उदाहरणार्थ-पज्जोत दृष्टिकोण एवं धार्मिक साहित्य आदि को भण्डार आदि में सुरक्षित (प्रद्योत), बिंबसार, अजातशत्रु और नरवाहन आदि की कथाएं रखने के कारण प्रायः वे बचे रहे किन्तु मुस्लिम-आगमन के प्रायः इसी रूप में प्रस्तुत होती रहीं? इस प्रकार इतिहास-ग्रंथ साथ स्थिति भिन्न हो गई। इसके विपरीत तिब्बत, नेपाल और क्रमशः मिथक या लीजेण्ड बनते गए। किन्तु इस आधार पर काश्मीर आदि दूर देशों में जहाँ निरंतर युद्ध आदि नहीं हुए वहाँ यह कथन कि हमारे यहाँ इतिहास-ग्रन्थ नहीं लिखे गए या राजनीतिक इतिहास भी बचा रहा जो यह सिद्ध करने के लिए एकमात्र इतिहास ग्रन्थ कल्हण-कृत राजतरंगिणी ही लिखा गया, काफी है कि यहाँ इतिहास-ग्रंथों की रचना तो हुई पर वे नष्ट कर गलत होगा। दिये गये। इसीलिए भारतीय आदर्श इतिहासकार का प्रतिनिधित्व भारत में विशद्ध रूप से इतिहास ग्रन्थों की कमी के कई अकेले कल्हण ही करता है। पुराणों में उल्लिखित राजवंशों के कारण हैं। यहाँ अतीत की स्मृति इतिहास के रूप में नहीं रखी __ आधार पर देश का राष्ट्रीय इतिहास और इसका विकास प्राचीन गई। हमने अतीत के दो प्रकार माने हैं। एक मृत अतीत जैसे को एवं मध्यकालीन भारत के निरंतर बदलते मानचित्र पर प्रदर्शित व्यक्ति और घटनाएँ आदि, दूसरा जीवन्त अतीत अर्थात् परंपराएँ। करना भा करना भी कठिन था। इसलिए समग्र राष्ट्रीय इतिहास और उसका भारत में परंपराओं की सुरक्षा का प्रयास इतिहास लिखकर नहीं विकास कदाचित् न लिखा जा सका हो और अलग-अलग प्रत्युत क्रियात्मक स्तर पर सबको परंपरा की सुरक्षा में सहभागी राज्यों और प्रदेशों पर आधारित काव्य-शैली में ग्रन्थों का लिखा बनाकर किया गया। इतिहास-ग्रन्थों में गड़बड़ी का एक कारण जाना ही संभव हुआ हो। सार्वभौम चक्रवर्ती सम्राटों का उल्लेख यह भी था कि ऐतिहासिक ग्रन्थों को समय-समय पर परिवर्तित अवश्य किया गया और ऐसे ही सम्राटों की वीर गाथाएँ पुराणों परिवर्द्धित किया गया, पर प्राचीन मूल पाठ को नवीन परिवर्द्धन में संकलित हैं। बाद के लेखकों ने कुमारपाल-चरित, विक्रमांक से अलग नहीं किया गया। परिवर्द्धनकर्ता और मूल लेखक का देव-चरित आदि की तरह व्यक्तिगत राजाओं का आख्यान या परिचय भी कई स्थलों पर अलग-अलग नहीं देने से कति एवं इतिवृत्त लिखा जिसमें क्रमश: इतिहास पुराकथा बनता गया है। कृतिकार में घपला हुआ। इसी प्रकार इतिहास-ग्रन्थों में से जैन लेखकों द्वारा इस प्रकार की तमाम रचनाएँ की गई. ऐतिहासिक एवं अनैतिहासिक घटनाओं को छाँटकर अलग नहीं जिनमें चालुक्यों, चावड़ों, परमारों, पालों आदि का इतिहास किया गया। इतिहासकारों ने इतिहास-लेखन से अधिक पुराण, चरितकाव्य, चौपई, प्रबंध आदि के रूप में सुरक्षित है। काव्यलेखन को वरीयता दी। यही नहीं अर्थ और राजशक्ति की कुमारपालचरित, द्वयाश्रयकाव्य, परिशिष्टपर्वन्, सुकृत-संकीर्तन, अपेक्षा मोक्ष और धर्मशक्ति को अधिक महत्त्व देने के कारण कीर्ति-कौमुदी, प्रभावकचरित, प्रबंधचिंतामणि आदि रचनाओं हमारे यहाँ सेक्युलर साहित्य की तुलना में धार्मिक और में राजाओं, महात्माओं और तीर्थंकरों तथा शलाकापुरुषों का आध्यात्मिक साहित्य ही अधिक लिखे गए। इतिहास-ग्रथों की इतिहास कल्पना और जैन सिद्धान्त के रंग में रंगकर प्रस्तुत कमी का कारण उनका कम लिखा जाना तो है ही पर इसके किया गया है। इनमें कथा या काव्य का आनंद उत्पन्न करने के अन्य कई कारण भी हैं। यदि राजतरंगिणी जैसी ऐतिहासिक लिए यथार्थ घटनाओं और ऐतिहासिक तथ्यों को मनोरंजक रचना काश्मीर में लिखी जा सकती थी तो अन्यत्र भी अवश्य बनाने की दृष्टि से तोड़ा-मरोड़ा गया। यह सभी प्राचीन भारतीय ही लिखी गयी होगी। राजनीतिक रचनाओं और अभिलेखों का इतिहासकारों पर लागू होता है, केवल जैन इतिहासकार ही 'उत्तर भारत में एकबारगी लोप होने का प्रमुख कारण कम्बोडिया, अपवाद नहीं है। ऐतिहासिक प्रबंधकाव्य, चरितकाव्य, जीवनियों जावा की तरह विजेता राजवंशों या राजाओं द्वारा विजित का प्रचलन पूर्व मध्यकाल में अधिक हुआ जिसमें जैनों का राजा के अभिलेखों को नष्ट करना भी रहा है। काश्मीर योगदान महत्त्वपूर्ण है। बाणकृत हर्षचरित इसका प्रारंभिक प्रमाण आदि सुदूर प्रांतों की अपेक्षा उत्तर भारत और मध्य भारत पर है। यह ऐतिहासिक काव्य माना जाता है। पाश्चात्य विद्वान् इसे बराबर आक्रमण होते रहे और देशी राजे-रजवाड़े भी आपस में पूर्णतया ऐतिहासिक नहीं मानते। वस्तुतः सत्य दो प्रकार का సాగరరరరరరసారసాగరసాగeno 55గవారు అందరురురురురురరసారసాగరంలో Jain Education International For Private & Personal Use Only • www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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