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________________ इतिहास - लेखन की भारतीय अवधारणा डॉ. असीम कुमार मिश्र....) पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी -तिहास-लेखन पर कुछ लिखने से पूर्व इस विषय पर विचार उदाहरण-साहित्य में प्रसंगत: किसी ऐतिहासिक पात्र या घटना २करना आवश्यक है कि इतिहास किसे कहा जाए। प्रकृत का वर्णन भी मिल जाता है, जिससे इतिहास-लेखन में सहायता विषय पर आने से पूर्व इतिहास के संबंध में भारतीय और मिलती है। आख्यान या आख्यायिका का अर्थ ऐतिहासिक पाश्चात्य अवधारणाओं से परिचित होना परमावश्यक है। इतिहास कथा है। शतपथब्राह्मण में आख्यान और इतिहास का अन्तर के व्युत्पत्तिपरक शब्दार्थ से स्पष्ट होता है कि इस शब्द के बताया गया है। पुराणों में सर्ग (सृष्टि), प्रतिसर्ग (प्रलय), वंश निहितार्थ में भूतकाल के स्मरणीय महापुरुषों और प्रसिद्ध घटनाओं (ऋषियों और राजाओं की वंशावलियाँ), मन्वन्तर तथा का वर्णन सन्निहित है। इतिहास शब्द का प्राचीन प्रयोग अथर्ववेद वंशानुचरित ये मुख्य घटक थे। स्मरणीय है कि वंशावली केवल और ब्राह्मण ग्रन्थों में मिलता है। अथर्ववेद में इसकी चर्चा ऋक्, राजाओं की ही नहीं बल्कि ऋषियों की भी दी जाती थी और यजुस् और साम तथा गाथा और नाराशंसी के साथ हुई है। राजाओं से पूर्व उसे स्थान दिया जाता था। इसीलिए जैनऐतिहासिक रचनाओं को ब्राह्मणों और उपनिषदों में इतिहासवेद पट्टावलियाँ जिनमें जैन सूरियों, भट्टारकों की वंशावली है, जैन - कहा गया है। कौटिल्य ने अर्थशास्त्र (ई. प.तृतीय शती) में इतिहास-लेखन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। वेदों की गणना करते हुए लिखा है कि ऋक्, साम और यजुस् वेदों में शन: शेप और परुरवा आदि के आख्यान मिलते त्रिवेद है, इनके साथ अथर्व और इतिहासवेद की गणना वेदों के हैं, जो परवर्ती ऐतिहासिक नाटकों और प्रबंधों के स्त्रोत रहे हैं। अतर्गत की जाती है। कााटल्य ने इतिहास का पचम वद का बाद में इतिहास और पुराण परस्पर घुल-मिल गए। पुराण शब्द महत्त्व प्रदान कर उसे ज्ञान के क्षेत्र में काफी ऊँचा स्थान दिया का प्रयोग अथर्ववेद में प्राचीन जनश्रुति (Ancient-Lore) के है। वहद्देवता में पूरे एक सूक्त को इतिहास सूक्त कहा गया है। अर्थ में हआ है। शतपथब्राह्मण में इतिहास-पराण प्रायः यगपत कौटिल्य ने इतिहास की परिभाषा देते हुए अर्थशास्त्र में लिखा है व्यवहृत मिलते हैं। इनका इतिहास पुराण में क्रमशः विलय हो कि पुराण, इतिवृत्त, आख्यायिका, उदाहरण, धर्मशास्त्र और गया है। इतिहास और पुराण का वर्णन-क्षेत्र एक ही था और अर्थशास्त्र इतिहास है। इस प्रकार प्राचीन भारतीय मान्यता के विषय-वस्तु भी प्रायः समान ही थी। पुराणों में इतिहास, आख्यान अनुसार इतिहास शब्द बहुत व्यापक और विस्तृत था। इसके और गाथा सम्मिलित थे। इनसे वंश-साहित्य या वंशानचरित परिक्षेत्र में अनेक विषय समाविष्ट थे। अर्थशास्त्र में प्रयुक्त 'पुराण' का विकास हआ और वंशवर्णन पुराणों का प्रमुख लक्षण माना शब्द का अभिप्राय उन आख्यायिकाओं से है जो प्राचीन (पुरा) जाने लगा। हरिवंश और रघुवंश इसके प्रमाण हैं। आख्यायिका काल से पीढ़ी दर पीढ़ी विकसित होती आई हैं। इतिवृत्त का भी एक प्रकार की इतिहास-रचना थी। कालान्तर में अर्थशास्त्र शब्दार्थ है 'भूत में घटित घटना'। यह आधुनिक इतिहास के और धर्मशास्त्र ने अपना स्वतंत्र विकास कर लिया। इस प्रकार शब्दार्थ के अधिक निकट है। इतिवृत्त में भूतकाल की घटनाओं हम यह कह सकते हैं कि प्राचीन भारतीय वाङ्मय में इतिहास और स्मरणीय व्यक्तियों का ब्योरा संग्रहीत किया जाता है। की स्पष्ट अवधारणा मिलती है और उसके आधार पर इतिहास उदाहरण या दृष्दान्त साहित्य के अंतर्गत वे कथाएँ कहानियां -रचना होती थी। किन्त कछ पाश्चात्य विद्वानों की देखा-देखी आती हैं जिनमें प्राचीनकाल के यथार्थ या कल्पित व्यक्तियों भारतीय विद्वानों के एक वर्ग में यह धारणा प्रचलित थी कि के दृष्टान्त देकर किसी नैतिक सिद्धांत या राजनीतिक नियम को प्राचीन भारत में इतिहास और इतिहासकार नहीं थे। जिस देश में अनुमोदित-समर्थित किया जाता है। इसीलिए जैन-कथा - इतिहास शब्द का इतना प्राचीन प्रयोग मिलता है और जिसे आख्यायिका साहित्य में ऐसे दृष्टान्त पर्याप्त मिलते हैं । इस विटा और में इतना अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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