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________________ यतीन्द्र सूरिस्मारकग्रन्थ - जैन आगम एवं साहित्य ने केशवभेरी एवं वैद्य के दृष्टान्त का भी उल्लेख किया है।२६ मिलता है।३२ पदविभाग और छेद ये दोनों शब्द एक ही अर्थ के द्योतक हैं। छेदसूत्रों का नामकरण छेदसूत्र में सभी सूत्र स्वतंत्र हैं। एक सूत्र का दूसरे सूत्र के नंदी में व्यवहार, बृहत्कल्प आदि ग्रंथों को कालिकश्रुत साथ विशेष संबंध नहीं है तथा व्याख्या भी छेद या के अन्तर्गत रखा है। गोम्मटसार धवला एवं तत्त्वार्थसूत्र२९ विभाग दृष्टि से की गई है। इसलिए भी इनको छेदसूत्र कहा में व्यवहार आदि ग्रन्थों को अंगबाह्य में समाविष्ट किया है। ऐसा जा सकता है। प्रतीत होता है कि जब भद्रबाहु ने नि!हण किया तब तक संभवत: छेदग्रन्थों जैसा विभाग इन ग्रन्थों के लिए नहीं हुआ था। नामकरण के बारे में आचार्य तुलसी (वर्तमान गणाधिपति बाद में इन ग्रन्थों को विशेष महत्त्व देने हेत इनको एक नवीन तुलसी) ने एक नई कल्पना प्रस्तुत की है - "छेदसूत्र को वर्गीकरण के अन्तर्गत समाविष्ट कर दिया गया। फिर भी 'छेदसूत्र' उत्तमश्रु उत्तमश्रुत माना है। 'उत्तम श्रुत' शब्द पर विचार करते समय एक नाम कैसे प्रचलित हुआ, इसका कोई पुष्ट प्रमाण प्राचीन साहित्य कल्पना होती है कि जिसे हम 'छेयसुत्त' मानते हैं वह कहीं में नहीं मिलता। छेदसूत्र का सबसे प्राचीन उल्लेख 'छकश्रत' तो नहीं है? छेकश्रत अर्थात् कल्याणश्रत या उत्तम आवश्यकनियुक्ति में मिलता है।३० श्रुत। दशाश्रुतस्कन्ध को छेदसूत्र का मुख्य ग्रन्थ माना गया है।३३ इससे 'छेयसुत्त' का 'छेकसूत्र' होना अस्वाभाविक नहीं लगता। _ विद्वानों ने अनुमान के आधार पर इसके नामकरण की दशवैकालिक (४/११) में 'जं छेयं तं समायरे' पद प्राप्त हैं। यौक्तिकता पर अनेक हेतु प्रस्तुत किए हैं। छेदसूत्रों के नामकरण इससे 'छेय' शब्द के 'छेक' होने की पुष्टि होती है।"३४ के बारे में निम्न विकल्पों को प्रस्तत किया जा सकता है - जिससे नियमों में बाधा न आती हो तथा निर्मलता की शूबिंग के अनुसार प्रायश्चित्त के दस भेदों में 'छेद' और वृद्धि होती हो, उसे छेद कहते हैं।३५ पंचवस्तु की टीका में 'मूल' के आधार पर आगमों का वर्गीकरण 'छेद' और हरिभद्र द्वारा किए गए इस अर्थ के आधार पर यह अनुमान 'मूल' के रूप में प्रसिद्ध हो गया।३१ इस अनुमान की किया जा सकता है कि जो ग्रन्थ निर्मलता एवं पवित्रता कसौटी पर छेदसूत्र तो विषय-वस्तु की दृष्टि से खरे उतरते हैं। के वाहक हैं, वे छेदसूत्र हैं। अतः इन ग्रन्थों का छेद लेकिन वर्तमान में उपलब्ध मूलसूत्रों की 'मूल' प्रायश्चित्त से नामकरण सार्थक लगता है। कोई संगति नहीं बैठती। वर्तमान में उपलब्ध चार छेदसूत्रों का नामकरण भी सार्थक सामयिक चारित्र स्वल्पकालिक है, अतः प्रायश्चित्त का हुआ है। आयारदशा में साधुजीवन के आचार की विविध अवस्थाओं संबंध छेदोपस्थापनीय चारित्र से अधिक है। छेदसूत्र का वर्णन है। यह दस अध्ययनों में निबद्ध है, अत: इसका नाम तत्चारित्र संबंधी प्रायश्चित्त का विधान करते हैं, संभवतः । 'दशाश्रुतस्कंध' भी है। कल्प का अर्थ है - आचार। जिसमें विस्तृत रूप में साधु के विधि-निषेध सूचक आचार का वर्णन है, वह इसीलिए इनका नाम 'छेदसूत्र' पड़ा होगा। 'बृहत्कल्प है। बृहत्कल्प नाम की सार्थकता का विस्तृत विवेचन दिगम्बर ग्रन्थ 'छेदपिंड' में प्रायश्चित्त के आठ पर्यायवाची मलयगिरि ने बृहत्कल्प-भाष्य की पीठिका में किया है।३६ नाम हैं। उनमें एक नाम 'छेद' है। श्वेताम्बर-परम्परा में __ व्यवहार प्रायश्चित्त सूत्र है। इसमें पाँच व्यवहारों का मुख्य प्रायश्चित्त के दस भेदों में सातवाँ प्रायश्चित्त 'छेद' है। अंतिम वर्णन होने के कारण इसका नाम 'व्यवहार' रखा गया। तीन प्रायश्चित्त साधवेश से मक्त होकर वहन किये जाते हैं। लेकिन श्रमण पर्याय में होने वाला अंतिम प्रायश्चित्त 'छेद' आचारप्रकल्प में आचार के विविध प्रकल्पों का वर्णन है। इसका दूसरा नाम निशीथ भी है। निशीथ का अर्थ है - अर्धरात्रि या है। स्खलना होने पर जो चारित्र के छेद-काटने का विधान अंधकार। निशीथ भाष्य के अनुसार 'निशीथ' की वाचना अर्धरात्रि करते हैं, वे ग्रन्थ छेदसूत्र हैं। या अप्रकाश में दी जाती थी इसलिए इसका नाम निशीथ प्रसिद्ध हो आवश्यक की मलयगिरि टीका में समाचारी के प्रकरण गया।३७ इसका संक्षिप्त नाम 'प्रकल्प' भी है। में छेदसूत्रों के लिए पदविभाग सामाचारी शब्द का प्रयोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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