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________________ करने के लिए एक पत्र लिखा । मुझे अल्प समय में ही डॉ. जैन सा. की स्वीकृति मिल गई । गुजराती विभाग के लिए डॉ. रमणभाई सी. शाह एवं श्रीमती ताराबहिन आर. शाह की स्वीकृति भी मिल गई और शताब्दी स्मारक ग्रन्थ की रुपरेखा तैयार कर उसके अनुरुप कार्य आरम्भ कर दिया गया। दीक्षा शताब्दी स्मारकग्रन्थ सभी दृष्टि से श्रेष्ठ हो इस बात को ध्यान रखते हुए अपने कार्यो में अति व्यस्त रहते हुए एवं वृद्धावस्था में होते हुए भी डॉ. जैन सा. पूर्ण लगन एवं निष्ठा से जुटे रहे । आपने देश के ख्याती प्राप्त विद्वानों से सम्पर्क कर उच्च स्तरीय सामग्री का संग्रह किया। का प्रस्तुत दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रन्थ जिस रुप में है उसका सम्पूर्ण श्रेय डॉ. जैन सा. को है । इसके लिए उन्हे जितना भी साधुवाद दिया जावे कम ही है। जिस उत्साह, लगन एवं निष्ठा से डॉ. जैन सा. ने इस ग्रन्थ के लिए कार्य किया और समाज के लिए आज वे जो कर रहै है, वे सब कार्य कराते हुए समाज को लाभान्वित करते रहें । यही पूज्य पाद गुरुदेव से विनती है। इसी प्रकार सम्पादक कार्य में मुम्बई निवासी पण्डित सरलमना डॉ. रमणलाल भाई एवं श्रीमती तारा बहिन रमणभाई शाह का भी सम्पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ एवं गुजराती विभाग में प्रतिष्ठित विद्वानों के लेख आपके पूर्ण परिचय के कारण ही ऐसे सारगर्भित लेख प्राप्त हो सके आप भी साधुवाद के पात्र है। वाराणसी श्री पार्श्वनाथ विद्यापीठ के निर्देशक डॉ. श्री प्रकाशजी पाण्डेय व शाजापुर निवासी डॉ. वि. के. शर्मा का भी पूर्ण श्रम पूर्वक सहयोग मिला आप दोनों विद्वान साधुवाद के पात्र है। उज्जैन निवासी डॉ. श्री तेजसिंहजी गौड़ का विशेषकर शताब्दी नायक के जीवन खण्ड में पूर्ण सहयोग मिला आप भी धन्यवाद के योग्य है । गुरुणिजी प्रर्वनिनी शासन दिपीका गच्छ शिरोमणी शताब्दी नायक की शिष्या श्री मुक्ति श्रीजी की मुख्य प्रेरणा अविस्मरणीय सहयोग अधिक से अधिक रहा व सन्दर लेखन कार्य में शताब्दी नायक से दीक्षा प्राप्त कर शिष्या होने का जिन्हे सौभाग्य मिला साध्वी श्री जयन्त श्रीजी आदि साध्वी मण्डल का पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ घर के सदस्यों को क्या साधुवाद दू यह अपनी ज्ञान दर्शना साधना में जीवन का अधिक से अधिक समय देकर चारित्र पालते हुए आत्म साधना मे पढ़ते चाए यहीं मंगल कामना। जी श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वेताम्बर पेढ़ी श्री मोहनखेड़ा तीर्थ एवं श्री शीतलनाथ, शान्तिनाथ प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव की स्मृति मे त्रिस्तुतिक श्री संघ भैसवाड़ा का ग्रन्थ प्रकाशन मे विशेष सहयोग मिला धन्यवाद एवं प्रत्येक कार्य में उत्साह से तन, मन, धन का सहयोग करने में परम गुरु भक्त सरल हृदयी आहोर निवासी श्री शान्तिलालजी वख्तावरमलजी मुथा प्रमुख साधुवाद के पात्र है। ग्रन्थ छापने के कार्य में सन्तोष मामा श्री राजेन्द्रग्राफिक्स निवासी राजगढ़ काश्रम भी बुलाया नहीं जा सकता है वह भी साधुवाद के योग्य है । अन्त में जिन जिन लेखकों ने व श्रावक वर्ग ने अपनी लक्ष्मी का सदुपयोग कर साहित्य प्रकाशन करवाकर गुरु भक्ति का परिचय दिया वे सभी साधुवाद के पात्र है। अ संवत् 2057 कार्तिक सुदि 2 रविवार दीक्षा शताब्दी नायक का 118 वां जन्म दिवस जावरा (रतलाम) M GAYA May जागर ज्योतिषाचार्य मालव रत्न मुनि प्रवर जयप्रभविजय श्रमण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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