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________________ यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व - कृतित्व आचार्यश्री का यात्रा-साहित्य : एक अनुशीलन नाम परम पूज्य महत्तरिका गुरुणीजी भावश्रीजी की शिष्या गच्छशिरोमणि शासनदीपिकाप्रवर्तिनी ममतामयीकाकर गुरुणिजी मुक्ति श्रीजी....) इतिहास निर्माण के साधनों में यात्रा-साहित्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। हमारे देश भारतवर्ष में सदियों से विदेशी यात्री आते रहे हैं। इन विदेशी यात्रियों ने तत्कालीन भारतवर्ष के विषय में जो कुछ लिखा आज वह भारतीय इतिहास की अमूल्य धरोहर है। विदेशी यात्रियों की भांति कुछ भारतीय यात्रियों ने भी अपने यात्रा प्रसंग लिखे हैं। यद्यपि इस प्रकार के यात्रा प्रसंग बहुत कम ही लिखे गए हैं, तथापि ये हमें महत्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराते हैं। वस्तुस्थिति यह है कि यात्रा प्रसंग पुरातत्त्व की भांति ही इतिहास की प्रामाणिक ठोस सामग्री उपलब्ध कराते हैं। इसका कारण यह है कि यात्री जैसा देखता है, अनुभव करता है, उसके सामने जैसा करता है, वह ठीक वैसा ही अपने यात्रा प्रसंगों के विवरण में लिपिबद्ध करता है। इसमें उसे कल्पना की उड़ान भरने की आवश्यकता नहीं रहती है। | विश्वपूज्य प्रातः स्मरणीय श्रीमज्जैनाचार्य गुरुदेव श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के सुशिष्यरत्न आचार्य प्रवर श्रीमद्विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. एक उद्भट विद्वान थे। वे जैन धर्म दर्शन के ही नहीं, अन्य अनेक विषयों के भी मान्य विद्वान् थे। उन्होंने अनेक विषयों का तलस्पर्शी अध्ययन किया था। उनके द्वारा लिखित विविध विषयक लगभग साठ-पैंसठ पस्तकें हैं। यह सर्वविदित है कि जैन साध पाद-विहारी होते हैं। उन्हें जहाँ भी जाना होता है, तो वे पैदल ही जाते हैं। पदयात्रा में मार्गवर्ती प्रत्येक गाँव/ नगर से सम्पर्क होता है। विवेकसम्पन्न व्यक्ति ऐसे गाँव/ नगरों की ऐतिहासिकता, धार्मिकता अथवा किसी अन्य विशेषता को लिपिबद्ध करना नहीं भूलता है, फिर भले ही वह उसका उपयोग लेखन में कहीं करे अथवा नहीं करे। जो व्यक्ति/संत यात्रा साहित्य के महत्त्व को समझता है। वह उसे लिपिबद्ध कर पुस्तक का स्वरूप भी प्रदान कर देता है। आचार्य श्रीमद् विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. इस तथ्य से भली-भाँति परिचित थे। इसीलिए उन्होंने यात्रा-साहित्य विषयक निम्नांकित पुस्तकें लिखकर प्रकाशित करवाईं। १. यतीन्द्र-विहार-दिग्दर्शन भाग १, २, ३, ४। २. मेरी नेमाड़ यात्रा और ३. मेरी गोड़वाड़ यात्रा। अब हम यह देखने का प्रयास करेंगे कि आपके द्वारा लिखित यह यात्रा-साहित्य किस प्रकार उपयोगी होकर मार्गदर्शन प्रदान करता है। १. श्री यतीन्द्र विहार-दिग्दर्शन भाग १ - इस पुस्तक की प्रस्तावना में लिखा है - "आज इतिहास के अतिगहन विषय को परिस्फुट करके दिखलाने वाली, पूर्वकालीन जाहोजलाली को प्रत्यक्ष बताने वाली और आदर्श आत्माओं के कतकार्यों का स्मरण कराके आश्चर्यान्वित करने वाली तीर्थ Jain Education International For Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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