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________________ यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व - कृतित्व s मुद्रण कार्य से भी कठिन कार्य था सम्पादन करने का । सम्पादन करते समय इस बात का ध्यान रखना अति आवश्यक होता है कि स्व-परम्परा के विरुद्ध कुछ अन्य विषय न चले जायें। भाषा और शैली को शुद्ध एवं व्यवस्थित करना दूसरी आवश्यकता है। तीसरे इस बात का भी ध्यान रखा जाना आवश्यक होता है कि लेखक की मूल भावना और विषय वस्तु से परे न लिखा जाए। वर्तनी की त्रुटियाँ न रहने पायें । इस कठिन कार्य का प्रारंभ किया मुनिराज श्री यतीन्द्रविजयजी म. ने । आपको इसमें सहयोग मिला मनुराज श्री दीपविजयजी म. का (बाद में आचार्य श्रीमद्विजयभूपेन्द्र सूरीश्वर जी म. ) । सम्पादन और मुद्रण में जो कठोर अध्यवसाय मुनिराज श्री यतीन्द्रविजयजी म. (कालांतर में आचार्य श्रीमद् विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी म.) ने किया उसकी अभिव्यक्ति शब्दों में कर पाना कठिन है। आप के अथक परिश्रम का परिणाम यह हुआ कि वि.सं. १९७२ में कोश के मुद्रण का कार्य समाप्त हो गया। इस अवधि में व्यतीत किये गए वर्षावास एवं शेष काल में आप केवल कोश से संबंधित कार्य सम्पन्न करते रहे। यदि इतना कठोर परिश्रम आपके द्वारा नहीं किया जाता, तो इतनी जल्दी कोश का मुद्रण कार्य सम्भव नहीं हो पाता। आप ने पूर्ण लगन, निष्ठा और समर्पण की भावना से कोश के प्रकाशन में अपना योगदान दिया था। यह आप के कठोर अध्यवसाय का ही परिणाम था कि कोश जैसा अद्वितीय एवं उपयोगी था, वैसा ही उसका सुंदर एवं प्रामाणिक ढंग से सम्पादन करके उसका प्रकाशन करवाया। कोश का मुद्रण ग्रेट और पाई के टाइपों में बहुत बढ़िया रायल चार पृष्ठीय पत्र पर हुआ। कोश को वर्णों के अनुक्रम में विभक्त कर उसका सात भागों में प्रकाशन किया गया। इन सातों भागों पृष्ठ संख्या और उनमें समाविष्ट वर्णों का विवरण इस प्रकार है। - वर्ण पृष्ठ संख्या १०३६ ११९२ १३७९ २७९६ १६३६ १४६६ १२४४ यदि सातों भागों की पृष्ठ संख्या का योग करें, तो वह १०७४९ होता है। इससे इसकी भव्यता और विशालता का अनुमान लगाया जा सकता है। मुद्रण का कार्य समाप्त होने के पश्चात् उसकी बाइन्डिंग का कार्य महत्त्वपूर्ण रहता है। बाइन्डिंग में बहुत अधिक सावधानी रखने की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि श्री अमिधानराजेन्द्रकोश की बाइन्डिंग में लगभग दो वर्ष लगे और सं. १९८१ तक पूरा कोष पुस्तकाकार रूप में पूर्ण रूप से तैयार होकर विद्वानों एवं जिज्ञासुओं के कर-कमलों में पहुँचा। भाग प्रथम द्वितीय Jain Education International तृतीय चतुर्थ पंचम षष्ठ सप्तम aG अ आ इसे छ जसे न प से भ म से व श से ह २३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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