SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व - कृतित्व महानुभावों के समक्ष प्रकट कर चुके थे। अभी तक उन्हें समाधान नहीं मिला था। आज जब पुनः गुरुदेव को असमंजस एवं चिन्तित देखा तो मुनिराज श्री यतीन्द्र विजयजी म.सा. ने उपयुक्त समय जानकर निवेदन किया 'गुरुदेव ! कोश के मुद्रण के लिये आप को किसी प्रकार की चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। आप की कृपा एवं आशीर्वाद से हम दोनों (मुनिराज श्री दीपविजयजी म. एवं मुनिराज श्रीयतीन्द्रविजयजी म.) इस कार्य को सम्पन्न करने का पूरा-पूरा प्रयास करेंगे।' 'केवल मुद्रण ही नहीं, इसे व्यवस्थित रूप से सम्पादित भी करना उसके पश्चान् ही मुद्रण कार्य प्रारंभ हो, यह ध्यान रखने की बात है' गुरुदेव ने अपनी बात कही। 'आपकी आज्ञा का अक्षरशः पालन होगा। आप निश्चिंत रहें' मुनिराज श्री यतींद्रविजयजी म.ने कहा । 'तब ठीक है मैं इस ओर से आश्वस्त हुआ।' गुरुदेव ने कहा और फिर उन्होंने राजगढ़ और बड़नगर के श्री संघों की उपस्थिति में श्री अमिधानराजेंद्रकोश के सम्पादन/प्रकाशन का उत्तरदायित्व अपने सुयोग्य शिष्यद्वय मुनिराज श्री दीपविजयजी म. एवं मुनिराज श्री यतीन्द्रविजयजी म. को सौंप दिया। इसके तीन दिन पश्चात् ही, पौष शुक्ला ६ वि.सं. १९६३ को गुरुदेव देवलोक गमन कर गए। गुरुदेव के समाधिमरण का समाचार पवन-वेग से चारों ओर प्रसारित हो गया। अनेक ग्राम एवं नगरों के श्री संघ राजगढ़ में एकत्र हो गए। इस अवसर पर मुनिराज श्री यतीन्द्र विजयजी म. ने गुरुदेव श्रीमद्विजयराजेन्द्र सूरीश्वरजी म. के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधृत विस्तृत प्रवचन फरमाया। अपने प्रवचन में आप ने गुरुदेव के साहित्य पक्ष और उसमें भी श्री अमिधानराजेन्द्रकोश को प्रमुख रूप से स्थान दिया। साथ ही आप ने गुरुदेव की भावना को अभिव्यक्त करते हुए फरमाया कि गुरुदेव के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनके अपूर्ण कार्य को पूरा करें। श्री अमिधान राजेन्द्र कोश के प्रकाशन के लिये धनराशि की आवश्यकता को भी आप ने प्रतिपादित किया। आगत श्री संघों ने इस अवसर पर श्री अमिधानराजेन्द्रकोश के प्रकाशन के लिये यथाशक्ति अर्थसहयोग प्रदान करने का आश्वासन दिया और कोश के प्रकाशन का प्रस्ताव स्वीकृत कर उसके सम्पादन का भार मुनिराज श्री दीपविजयजी म. एवं मुनिराज श्री यतीन्द्र विजय जी म. को सौंप दिया। वि. सं. १९६४ का पं. श्री मोहन विजयजी म. तथा मुनिमंडल का वर्षावास रतलाम में हुआ। वर्षावास-कालीन प्रवचन प्रारंभ हुए। प्रवचन मुख्य रूप से श्री अमिधानराजेन्द्रकोष पर आधिरत होते थे। कोश के प्रकाशन की समस्या पर भी विचार-विमर्श होता रहा। इसका परिणाम भी शीघ्र ही सामने आ गया। श्रावण शुक्लपंचमी, वि. सं १९६४ को श्री अमिधानराजेन्द्रकोश प्रकाशन-कार्यालय की स्थापना शुभमुहूर्त में हुई। विचार-विमर्श में यही निर्णय हुआ कि कोश के मुद्रण का कार्य किसी प्रिंटिंग प्रेस से करवाने के स्थान पर समाज का ही एक प्रिन्टिंग प्रेस प्रारंभ कर लिया जाय, जिसमें केवल कोश का ही कार्य हो । कोश के मुद्रण के पश्चात अन्य पुस्तकों के प्रकाशन आदि का कार्य होता रहेगा। इस निर्णय के अनुरूप वर्षावास के पश्चात् श्री जैन प्रभाकर प्रिंटिंग प्रेस भी प्रारंभ हो गया और कोश के प्रकाशन का कार्य भी शुरू हो गया। கள Jain Education International [ २२ For Private & Personal Use Only ि www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy