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________________ - यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व-कृतित्व - किसी सीमा-विशेष अथवा वर्ग विशेष के लिए सीमित नहीं किया जा सकता है। उनकी अमृतमयी वाणी (जिन वाणी) आज भी समाज का मार्गदर्शन कर रही है। उनके विचारों को आज उनके अनुयायी आचार्य, उपाध्याय, मुनिराज आदि अभिव्यक्ति प्रदान कर रहे हैं। यहाँ इतना स्पष्ट कर देना उचित प्रतीत होता है। नधर्म किसी व्यक्ति या वर्ग विशेष के लिये नहीं है। यह आचरणप्रधान धर्म है। जो भी इसके नियमों का पालन करता है, वही इसका अनुयायी है। जैन धर्म में जाति-पाँति को भी स्थान नहीं है। व्याख्यानवाचस्पति, साहित्यशिरोमणि आचार्य भगवन् श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. जहाँ एक ओर सिद्धहस्त लेखक थे, वहीं दूसरी ओर ओजस्वी वक्ता भी थे। आपका जन्म दिगम्बर जैन मतालम्बी परिवार में हुआ था और आप ने युग प्रधान आचार्य भगवंत श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के सान्निध्य में जैन भागवती दीक्षा अंगीकार की थी। वे उच्चकोटि के साधक होने के साथ-साथ जैनआगममर्मज्ञ और कुशल प्रवचनकार भी थे। वे समय को पहचानकर अपना प्रवचन फरमाते थे और कभी-कभी अपने प्रवचनपीयूष की वर्षा करते हुए समय के प्रवाह को मोड़ने की क्षमता भी रखते थे आप के प्रवचनपीयूष का पान करने के लिए सभी धर्म और जाति के लोग आते थे। लोग न केवल आपके के प्रवचनपीयूष का पान करते थे, वरन् आपके के प्रवचन को अपने जीवन में उतारने का भी प्रयास करते थे। आपके के प्रवचन के विषय भी ऐसे होते थे, जो जनसामान्य के लिए उपयोगी होते थे और उनसे मानवीय मूल्यों में वृद्धि होती थी। एक आचार्य मुनिराज जिस प्रकार समाज का मार्गदर्शन करते हैं, समाज में व्याप्त कुव्यसनों को दूर करने के लिए समाज को उपदेश प्रदान करते हैं, ठीक उसी प्रकार आचार्य भगवंत श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. ने भी अपने प्रवचनों के माध्यम से समाज को अपना मार्गदर्शन प्रदान किया। - इस आलेख के माध्यम से हम यह प्रतिपादित करना चाहते हैं कि आचार्यदेव के प्रवचन उनके समय में तो उपयोगी थे ही, वर्तमान सन्दर्भ में भी उनके प्रवचन उतने ही उपयोगी हैं। आचार्यश्री के प्रवचन से सम्बन्धित निम्नांकित पुस्तकों का उल्लेख मिलता है - (१) श्रीयतीन्द्रप्रवचन, (२) भाषण सुधा (३) समाधानप्रदीप, (४) सत्यसमर्थनप्रश्नोत्तरी भाग १/२। (५) मानवजीवन का उत्थान, (६) श्रीयतीन्द्रप्रवचन (गुजराती) और आर्हत्प्रवचन (गुजराती)। फगवानकार समाधानप्रदीप और सत्यसमर्थनप्रश्नोत्तरी से ऐसा प्रतीत होता है कि किसी विषयविशेष के प्रश्नोत्तर के रूप में होंगी। भाषणसुधा और मानवजीवन का उत्थान प्रवचन संग्रह हमें उपलब्ध नहीं हो सके हैं, यहां यह उल्लेख करना भी प्रासंगिक ही होगा कि आचार्यश्री के द्वारा रचित अनेक पुस्तकें वर्तमान में उपलब्ध नहीं हैं। उनके अनुयायियों को चाहिए कि पुस्तकों की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए वे जहाँ कहीं उपलब्ध हों, प्राप्त कर उनका पुनर्मुद्रण करवा लें। हमें इस समय केवल श्रीयतीन्द्र प्रवचन नामक प्रवचन संग्रह उपलब्ध है। श्री यतीन्द्र प्रवचन में संग्रहीत प्रवचनों से ही हम यह देखने का प्रयास करेंगे कि आचार्य देव के प्रवचन वर्तमान सन्दर्भ में कितने प्रासंगिक हैं। शशा N EFFE For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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