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________________ आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की Jain Education International विशेषणा, लोकंषणा प्रादि समस्त एषणाओं के कर्दम से मुक्त होना ही मुक्ति पथ है । जिसकी आप प्रसङ्गानुसार स्पष्ट व्याख्या करती हैं। आपकी प्रवचनशैली प्रभावोत्पादक और हृदयंगम है । जिसने एक बार भी आपकी पीयूषवाणी श्रवण की, वह तो श्रापके वचनामृत - पान करना ही चाहेगा - यही व्याख्यानपद्धति की विशेषता है। किसी भी गंभीर विषय को रोचक बनाकर जन-मानस तक पहुँचाने की कला, आपके प्रवचन शैली की अद्वितीय विशेषता है । कि बहुना ! आपने साधनामय जीवन के पचास वर्ष पूर्ण किये हैं, लोक जागरण का शंखनाद करके भारतीय जनता को सत्पथ पर प्रारूढ करने का श्रेय प्राप्त किया है। यह सीम प्रमोदास्पद वृत्त है। मैं परमविदुषी साध्वी उमरावकुंवरजी म. सा. 'अर्चनाजी' का हार्दिक अभिनन्दन करता हे कि वे मानव-धर्म का प्रचार व प्रसार करने में सदा सक्षम रहें और प्रापके जीवनकमल के शतदल विकसित हों, जिससे सभी जन समाज सुवासित हो-यही मेरी परमप्रभु से प्रार्थना है। O मंगल कामना विमलकुमार चौधरी, खाचरौद २५०० वर्ष पूर्व महावीर ने एक सार्थक व सामयिक संघर्ष का नेतृत्व किया था । धर्म को कर्मकाण्ड, प्रन्याय और असहिष्णुता की कारा से मुक्त कराकर जनोन्मुखी ब व्यवस्थोन्मुखी बनाने के लिये महावीर को प्राशातीत सफलता मिली- श्राज फिर २०वीं शताब्दी का समापनकाल धर्म के विद्रोही मिजाज और असहिष्णु स्वरूप से सहमा हुआ महावीर की क्रान्ति के बीज ढूंढ रहा है-शताब्दियों से यह खोज जारी है। इसी खोज ने धरती पर अनेक रत्न बिखेरे हैं, जिनमें परम विदुषी श्री उमरावकुंवरजी म. सा. भी हैं, जिन्होंने धर्म को मनुष्य के उज्ज्वल प्राचरण का अंग माना है— राष्ट्रीय व सामाजिक चेतना की पृष्ठभूमि पर उन्होंने जैन- चिन्तन को बड़ी सहज, सरल और प्रभावपूर्ण वाणी से नये आयाम दिये हैं । श्राधी सदी की कठोर साधना कसौटी पर टिकी-सजी उनकी दीक्षा स्वर्णजयन्ति लोककल्याणकारी हो—यही मंगल कामना है। For Private & Personal Use Only अर्चना / ४२ www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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