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________________ अनासक्त साधक ही संसार को सुवासित करता है 10 हरसुख शास्त्री, साहित्याचार्य (जोधपुर) साधु-साध्वी समुदाय किसी एक राष्ट्र, एक प्रान्त, एक जाति की सम्पत्ति नहीं अपितु वह विश्व की अमूल्य सम्पदा होता है। वैसे श्रद्धया साध्वी 'अर्चनाजी' जैनजगत की अद्वितीय साध्वीरत्न हैं परन्तु आपका मौलिक चिन्तन और सौम्य व्यवहार विराटरूपेण सबके लिए समभाव से अनुकरणीय है। अापके व्यक्तित्व में 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का मूर्तिमान् स्वरूप निखर उठा है। आपकी पीयूषवर्षिणी वाणी में तथा आपके साहित्य में प्रात्मवत्सर्वभूतेषु की भावना साकार दृष्टिगोचर होती है। आपके पावन जीवन में 'सत्यं शिवं सुन्दरं' की उदात्त-भावना सार्थक हुई है। जो भी अापके सम्पर्क में आता है, वह आपके प्रति श्रद्धाभाव रखकर गौरव का अनुभव करता है। चिरकाल से प्रापसे मेरा आध्यात्मिक सम्बन्ध है । मैंने आपके व्यक्तिव में विराटप के ही पावन दर्शन किये हैं। प्रापकी वाणी सहज ही हृदयस्पशिनी है और व्यवहार में अतिशय दक्षता है, साधु-जीवन की आदर्श मर्यादाएँ हैं, अपनी शिष्यानों के साथ स्नेहिल गुरुता वस्तुतः प्रशंसनीय है। आपके जीवन के प्रादर्श क्रिया-कलाप से मदीय अन्तर्जगत को असीम प्रेरणा प्राप्त होती रही है। यह सत्य है कि अन्तर्मुखी विकास के पथ पर प्रारूढ भव्य-विभूतियां, साधना के चरम लक्ष्य को उपलब्ध कर अपने जीवन को सफल करती हैं पर उनका सान्निध्य प्राप्त करने वाले सज्जन भी उनके जीवन से महती प्रेरणा लेकर धन्य हो जाते हैं। आपकी सुसङ्गति पानेवाले भी आत्मतत्त्व के सुपात्र हो जाते हैं । आपका जीवन सदा सर्वभूतहिताय रहा है । 'सर्वभूतहितः साधुः' सब प्राणियों के हितकारी होना साधु-जीवन की विशेषता है। भारतीयदर्शन के अनुसार चतुर्वर्ग की प्राप्ति के लिए मानव जन्म मिला है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष-ये चतुर्वर्ग हैं पर प्राज का अधिकांश मानव धर्म-मोक्षरूपी (ग्रादि अन्त) पुरुषार्थ भूलकर अर्थ-काम की क्षुधा बढ़ाने में संलग्न है। उसके लिए आपकी अपरिग्रह की विवेचना धर्म-मोक्ष की ओर उन्मुख करनेवाली होती है। धर्म के प्राचरण के बिना मोक्ष कदापि संभव नहीं है। अर्थ-काम भी धर्म से अोतप्रोत बनें, यही हमारे भारतीय ऋषि-मुनियों का उद्घोष था । आज के इस भौतिक युग में धर्म की महत्ता समझने की नितान्त आवश्यकता है। पाप प्रवचनों के माध्यम से सम्यकज्ञान, सम्यकदर्शन, सम्यकचारित्र की विस्तृत विवेचना करके जनमानस में धर्म की भावना जगाने का भरसक प्रयास करती हैं, अतः प्रापका एतद्विषयक प्रयास स्तुत्य है । • आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की प्रथम खण्ड / ४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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