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________________ मुनिश्री जिनविजयजी की कहानी ] [ २७ भारतीय विद्या भवन ने दो बहुत बड़े काम और अपने हाथ में लिये हैं जिनमें एक तो ८ लाख रुपये के खर्चे से पार्टस कॉलेज स्थापित किया जायगा और दूसरा भारतवर्ष का वृहदिति हास जो बड़े बड़े १०-१२ भागों में संकलित होगा, प्रकाशित किया जायगा। श्री बिड़ला ने उसके लिए डेढ़ लाख रुपया देने का वचन दिया है । और शीघ्र ही इसका कार्यालय स्थापित होगा । बड़ा भारी कार्य होगा। बम्बई २२-११-४३ विक्रम के विषय में मैं कोई खास विचार स्थिर नहीं कर सका हं क्योंकि इस विषय का जितना भी साहित्य है उसको मैंने अभी तक संकलित रूप से नहीं देखा । विक्रम के विषय में मुझे भी दो तीन जगह से खास करके डा० राधाकुमुद मुकर्जी का विशेषाग्रह है कि मैं कुछ न कुछ लिखू। इस मौके पर विक्रम विषयक जितने महत्व के जैन कथा ग्रन्थ हैं उन सबको ३-४ भागों में विक्रमोत्सव के उपलक्ष में प्रकट कर दिए जाय । इससे अच्छी विक्रम श्रद्धांजलि और क्या हो सकती है ? पर इस समय सबसे बड़ी समस्या कागज की हो रही है। बम्बई ३०-११-४३ मैं यहां से आगामी ता० ७ को कानपुर के लिए जाऊँगा। वहां हिन्दुसंघ की ओर से विक्रमोत्सव है जिसमें देश के मुख्य मुख्य विद्वानों को बुलाया है । मुझे भी जाना जरूरी है । वहीं पर, भारतवर्ष के बृहदितिहास की योजना निश्चित की जाएगी शायद वहां से मुझे कलकत्ता जाना पड़े और फिर ता० ३१ डी. को बनारस में ओरिएन्टल कान्फ्रेन्स में यहां की यूनिवसिटी की ओर से जाना होगा । बम्बई १०-२-४४ गत ७ दिसम्बर को मैं यहां से विक्रमोत्सव के निमित्त कानपुर गया था। वहां से वापस आकर फिर बनारस ओरिएन्टल कान्फरेन्स में वहां से डालमिया नगर और फिर वहां से कलकत्ता, वहां से फिर इधर ता० १४ जनवरी को पहँचा । प्रवास के परिश्रम के कारण शरीर बड़ा शिथिल हो गया-१०-१२ दिन अस्वस्थता में चले गये और साथ में यहां पर भवन का कार्यभार भी बहुत बढ़ गया। भारतवर्ष के यह इतिहास की जो योजना की जा रही है उसका काम कई दिन तक लगा रहा । डालमियानगर से श्री शांतिप्रसादजी जो बना रस लेने के लिये आये थे इसलिये उनके आग्रह से एक दिन वहां जाना हुआ उन्होंने भारतीय विद्या भवन में रहकर अध्ययन करने पोस्ट ग्रेज्यूलेट स्टुडेंटों के-एम० ए० और पी० एच० डी० का अभ्यास करने वालों के लिए माहवार ३००) रुपया फेलोशिप देने का वचन दिया है । इससे अब भवन में ६-७ विद्यार्थी जैन साहित्य का अध्ययन करने वाले रह सकेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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