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________________ सत्यव्रत 'तृषित' [ ३१६ काव्यमाला में (४८) एक खड्गशतक का प्रकाशन हमा। इसका रचयिता तथा रचनाकाल अज्ञात है। मुद्गलभट्ट कृत (४६) रामार्याशतक तथा गोकुलनाथ का (५०) शिवशतक स्तोत्र-साहित्य की दो अन्य ज्ञात शतक नामक रचनाए हैं। रामायशतक का उल्लेख, डॉ० कामिल बुल्के ने अपने विद्वत्तापूर्ण शोधप्रबन्ध 'रामकथा-उत्पत्ति और विकास' में किया है (पृष्ठ २१८) । शिवशतक का निर्देश रमाकान्त-सम्पादित सूर्यशतक की भूमिका (पृष्ठ ३२) में हुआ है । दोनों का रचनाकाल अज्ञात है। जयपुर के साहित्य प्रेमी नरेशों ने संस्कृत-पण्डितों को उदारतापूर्वक प्रश्रय दिया तथा उन्हें विविध प्रकार से सत्कृत किया । अपनी अमर कीर्तिलता की जीवन्त प्रतीक 'काव्यमाला' की सैकड़ों जिल्दों में हजारों प्राचीन दुष्प्राप्य ग्रन्थों का प्रकाशित करना उन्हें कालकवलित होने से बचाया और इस प्रकार राष्ट्र की अमिट सेवा की। जयपुर के कतिपय राजाश्रित कवियों ने भी इस साहित्य-विद्या को समृद्ध बनाने में योग दिया है। ___जयपुर-संस्थापक महाराजाधिराज सवाई जयसिंह द्वितीय (१६६६-१७४३ ई.) के समकालीन तथा आश्रित ज्योतिषाचार्य श्री केवलराम ज्योतिषराय का (५१) अभिलाषशतक कदाचित् इस कोटि की सर्वप्रथम रचना है। इसकी एक हस्तलिखित प्रति राजस्थान प्राच्य-विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर में ११२०४ ग्रन्थांक पर उपलब्ध है । हस्तलिखित १६ पत्रों में १०१ पद्य हैं । प्रारम्भिक ३५ पद्यों में भगवान श्री कृष्ण की बाललीलाओं का मनोरम वर्णन है । शेष पद्यों में ऋतुओं, प्रातः काल, सूर्योदय, सूर्यास्त प्रादि का विस्तृत वर्णन है । शतक के वर्णन पौराणिक गाथानों पर आधारित हैं। अभिलाष शतक एक मात्र ज्ञात कृष्ण सम्बन्धी तथा वर्णन प्रधान शतक है । मङ्गलाचरण के व्याज से सृष्टि के प्रारम्भ में शेषशायी भगवान् विष्णु के स्वापोद् बोध का वर्णन किया गया है। प्रातर्नीरद नील मुग्ध महसः स्वापि स्मरामि स्फुटं स्वल्पोद् बोधित नेत्रनीलिम सृजल्लीला द्रं वक्त्राम्बुजम् । येन नोदयतः पुरारुणकृतो बोधप्रभावान्तरा नीलालिद्वयशंसि नाभिनलिनस्याहो सपत्नीकृतम् ॥२॥ काव्य में कमनीय कल्पनाओं की छटा दर्शनीय है । ललित शैली तथा उदात्त कल्पनाओं के मणिकांचन संयोग से काव्य में नूतन आभा का समावेश हो गया है। श्रीकृष्ण की बाललीलाओं का वर्णन बहुत स्वाभाविक तथा सजीव है । शतक का उपसंहार निम्नलिखित पद्य से होता है। टाण शिव शौरिपदाब्ज पूजन प्रतिभाभावित तत्पादाम्बुजः । अभिलाषशतं मनोहर कुरुते केवलराम नामकः ।। अन्तिम पत्र पर एक पद्य और मिलता है, किन्तु वह प्रक्षिप्त प्रतीत होता है । १४ १४. देखिये-मरुभारती, अक्तूबर, १९६४ में प्रकाशित श्री प्रभाकर शर्मा का लेख 'केवलराम ज्योतिषराय तथा उनकी रचना अभिलाष शतकम्' । पृ० २४-२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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