SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 388
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७८ ] ३. मार्ग और देशी का केवल नामोल्लेख करने वाले ग्रन्थ भारतीय संगीतशास्त्र में मार्ग और देशी का विभाजन (१) वाचनाचार्य सुधाकलश का 'संगीतोपनिषत्सारोद्धार' (१४वीं शती ई० ) ( २ ) रामामात्य का 'स्वरमेलकलानिधि' (१६वीं शती ई० ) (३) दामोदर पण्डित का 'संगीतदर्पण' ( १७वीं शती ई० ) ( ४ ) तुलजाधिप का 'संगीतसारामृत' (१७वीं शती ई० ) ( ५ ) अहोबल का 'संगीतपारिजात' (१७वीं शती ई० ) ( ५ ) सोमनाथ का ' रागविबोध' ( १७वीं शती ई० ) ४. मार्ग - देशी का नामोल्लेख तक न करने वाले ग्रन्थ ( १ ) पुण्डरीक विट्ठल का 'सद्रागचन्द्रोदय' ( १६वीं शती ई० ) इनके 'रागमाला' तथा 'रागमञ्जरी' ग्रन्थ भी इसी श्र ेणी में आते हैं, किन्तु वे संगीतशास्त्र के केवल एक देश राग के ही प्रतिपादक ग्रन्थ हैं, इसलिये उनका यहां पृथक् उल्लेख नहीं किया गया है । ( २ ) शुभङ्कर का 'संगीतदामोदर' (१६वीं शती) ( ३ ) श्रीनिवास का 'रागतत्त्वविबोध' (१७वीं शती) मार्ग - देशी का लक्षण प्रमुख ग्रन्थकारों ने इस प्रकार दिया है। : (१) नानाविधेषु देशेषु जन्तूनां सुखदो भवेत् । ततः प्रभृति लोकानां नरेन्द्राणां यदृच्छया ॥१॥ X X X X देशे देशे प्रवृत्तोऽसौ ध्वनिर्देशीति सञ्ज्ञितः || २ || ध्वनिस्तु द्विविधः प्रोक्तो व्यक्ताव्यक्तविभागतः । वर्णोपलम्भनाद् व्यक्तो देशीमुखमुपागतः ॥ १२ ॥ अबला बालगोपालैः क्षितिपालनिजेच्छया । गीयते सानुरागेण स्वदेशे देशिरुच्यते || १३|| निबद्धाश्चानिबद्धश्च मार्गोऽयं द्विविधो मतः । आपला (ला) पादिनिबन्धोयः स च मार्गः प्रकीर्तितः ।। १४ ।। प्रलापादिविहीनस्तु स च देशी प्रकीर्त्तितः । (बृहद्दे शी पृ० १, २) इस उद्धरण की अन्तिम पंक्ति बृहद्दे शी के मूलपाठ में के प्रथम अध्याय के श्लोक ७ पर टीका में मतंग के नाम से जो गई है । Jain Education International (२) गीतं वाद्य तथा नृत्तं त्रयं संगीतमुच्यते । नहीं है, सोमनाथ ने अपने राग - विबोध उद्धरण दिया है, उसमें से यह पंक्ति ल मार्गे देशीति तद्वधा तत्र मार्गः स उच्यते ॥ यो मार्गितो विरिञ्च्याद्यः प्रयुक्तो भरतादिभिः । देवस्य पुरतः शम्भोर्नियताभ्युदयप्रदः ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy