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________________ १४४ उदयसिंह भटनागर इनमें एक ही शब्द के वाड़, वाड़ो, वाड़ी, बीडु चार रूप हैं, जो स्थान और सीमा के द्योतक हैं और फिनिशियन वाड़ी (Wady) के समानार्थी हैं। 'मगरा' शब्द पर विस्तारपूर्वक विचार करने से हमारा ध्यान पूर्व की ओर मगध और वहां से वर्मा के अरकान पहाड़ी प्रदेश में बसी हुई अति प्राचीन जाति 'मग' की प्रोर प्राकर्षित हो जाता है और कुछ ऐसा लगता है कि इजिप्टो-फिनिशियन 'मगराह' राजस्थानी 'मगरो' बिहारी 'मगधरा' और 'परकान' के 'मग' में 'मग' तत्व में ध्वनि-साम्य के साथ कोई अर्थसाम्य भी है। इस प्रकार 'मगरा' से भीलों का सम्बन्ध पश्चिम में एशिया माइनर और पूर्व में अरकान तक कहा जाता है । वाड़, वाड़ो, वाड़ी, वीडु शब्दों से इनका सम्बन्ध पश्चिम में एशिया माइनर और दक्षिण में तमिलनाड़ (>तमिल्लवाड़) से स्थापित होता है। तमिल से सम्बन्ध रखनेवाली अन्य प्राचीन भीली शब्द पाल, पाली, पालवी हैं, जो द्रविड़ से ध्वनि-साम्य और अर्थ साम्य रखते हैं। भीलों में इनका अर्थ क्रमशः सीमा, बस्ती और मुखिया होता है । तमिल में 'पल्ली' शब्द भीली 'पालवी' का समानर्थी है । इस प्रकार 'वाड़' (वीडु) और पाल (>पल्ल) प्राचीनतम शब्द हैं और प्राचीनतम भाषावशेष भी, जिनका सम्बन्ध राजस्थान से अति प्राचीनकाल से चला आया है। इस प्रकार प्रर्वलि (>अर्+वल्लि) और अर्बुद (अ+बुद्ध) में अर् का अर्थ भी पहाड़ होता है । 'अर्' के समानार्थी फिनिशिया में 'अर्दस" (पहाड़ी प्रदेश) यूनान में, 'अर्कादिया'(Arkadia)= पेलोपोनीज का एक पहाड़ी प्रान्त और वर्मा में 'अरकान' नामों में 'अर' तत्व वर्तमान हैं ।-पर तत्त्व की प्राचीनता और भीलों का उसके साथ सम्बन्ध इससे स्पष्ट होता है और यूनान तथा फिनिशिया से लेकर अरकान तक किसी एक साम्य-सम्बन्ध का संकेत मिलता है। यह शब्द 'मगरो' के बहुत पीछे का है और सम्भवतः आर्य भाषा का शब्द है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि भील आर्यों से बहुत पहले इस देश में वर्तमान थे और यहां पा चुके थे-अथवा यहां से अन्य देशों में गये हों। १०-संस्कृत में 'अर्' शब्द का प्रयोग पहाड़ के लिये ही हुआ है, पर भारत में इस प्रान्त को छोड़कर शायद कहीं भी पहाड़ के लिये 'अर' शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है। सम्भवत: 'अर' शब्द संस्कृत में बहुत पीछे स्वीकृत हुआ होगा । आबू पर्वत में प्राबू शब्द का विकास अबुंद से माना जाता है । अबुंद अर्+बुद । यहाँ कुछ लोगों ने बुद शब्द का सम्बन्ध फारसी 'बुत' जो स्थापित किया जो ठीक नहीं है । बुद शब्द 'भुज' का अपभ्रंश है । भुज के 'म' में महाप्राण लोप होकर 'ब' हुया और 'ज' का द' में परिवर्तन हुमाजैसे-कागज का कागद । इधर 'पर' शब्द का अर्थ पहाड़ स्पष्ट होने पर भी डा. मोतीलाल मेनारिया ने अपने थीसिस 'राजस्थान का पिंगल साहित्य' में लोक प्रचलित कथन के आधार पर अलि शब्द की व्युत्पत्ति 'पाडावला' (पाड़ा+अंवला=उलटा-सीधा) से मानी है। यह उलटी व्युत्पति मान लेने पर अर्बुद की व्युत्पत्ति कैसे मानी जायगी। 'पाड' शब्द का सम्बन्ध हाड >पहाड़ से है वला, बलि, वल शब्दों का अर्थ निवास स्थान से होता है । अतः स्पष्ट है कि आडावला प्रर्वलि का ही अपभ्रंश रूप है जिसका अर्थ 'मगरा' या पहाड़ी प्रदेश से है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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