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________________ राजस्थान भाषा पुरातत्व १४३ (Samoa) के आस पास के द्वीप समूहों में वर्तमान है। इसी प्रकार इन दोनों में दन्त्योष्ठ्य व (v);, और द्वयोष्ठ्य व् (W)' भी वर्तमान है। भील भारत की उन प्राचीनतम जातियों में से है जो रामायण और महाभारत युग से भी पहले वर्तमान थी और अर्वलि, विन्ध्या तथा सतपूड़ा के प्रदेश इनके निवास स्थान थे। पूर्व में जहां पूर्वी द्वीप समूहों तक उनका सम्बन्ध था इसी प्रकार पश्चिम में काकेशिया और फिनिशिया तक भी इनका सम्बन्ध रहा है। भाषा तत्त्व के आधार पर इसको खोजा जा सकता है। भारत की प्राग-एतिहासिक जातियों के उद्गम या विकास की भूमि राजस्थान का वह भूखण्ड भी है जिसको अर्वलि कहा जाता है । इसी प्रदेश में उसी आदिम जाति के निवास स्थान है जिसको भील कहा जाता है। भीलों की अपनी भाषा यद्यपि आज नष्ट हो गई है और वे आर्य भाषा ही. बोलते हैं फिर भी कुछ ऐसे तत्त्व उसमें वर्तमान हैं जो उनकी प्राचीनता के द्योतक हैं । प्रर्वलि में बिखरी हुई बस्तियों का प्रान्त अति प्राचीन काल से 'मगरा' कहलाता है। यह 'मगरा' शब्द भाषा पुरातत्त्व की दृष्टि से विचारणीय है। राजस्थानी में इसका अर्थ पहाड़ होता है और उसी से उसका पहाड़ी प्रान्त से भी अर्थ लिया जाता है। इसका सम्बन्ध इजिप्टो-फिनिशियन शब्द 'मगरोह' से है, जिसका अर्थ उन भाषाओं में भी पहाड़ ही होता है। इसी आधार पर फिनिशिया के एक प्रान्त का नाम 'वाड़ी मगराह' (Wady Magrah) मिलता है, जिसका अर्थ फिनिशियन भाषा में पहाड़ी प्रान्त से ही होता है । वाड़ी शब्द की व्युत्पत्ति वाटिका से मानकर उसका अर्थ किसी छोटे बाग-बगीचों से लिया जाता है, परन्तु राजस्थान-गुजरात में प्राचीनकाल से ही इस शब्द का प्रयोग निवास, बस्तो, प्रान्त, सीमा आदि अर्थों में होता आया है। जैसे--- १. प्राचीन बड़ी जातियों की बस्तियों और सीमाओं के द्योतक-भीलवाड़ो, मेरवाड़ो, मेवाड़ आदि। २. अन्य स्थानीय विशेषताओं वाली बस्तियों के द्योतक-मारवाड़, ढूंढाड़, खैराड़,(प्राइघाड़) प्रादि । उत्तरकालीन जातियों और स्थानीय विशेषताओं की बस्तियों और स्थानों के द्योतकजीलवाड़ो, केलवाड़ो, खेरवाड़ो, बांसवाड़ो, सागवाड़ो, गौरवाड़, झालावाड़, रीछेड़ (रीछ+ : ईड< वीडु) आदि । । । ४. एक ही गांव या नगर में भिन्न जातियों के मुहल्लों के आधुनिक नाम--कुम्हारवाड़ो, तेली वाड़ो, मोचीवाड़ो, कोलीवाड़ो, भोईवाड़ो, जाटवाड़ी, बोहरवाड़ी आदि । 7. "Apart from traditions Samon is the most archaic of all Polynesions tongues and still preserves the organic letter S which becomes H or disappears in nearly all other archipelegos. Thus the terms Sawaii, itself, originally Savaiki is supposed to have been carried by Samsan wanderers over the ocean of Tahiti, Newzealand and the Marquisses Sandwhich groups, where it still survives in such varient forms as Havar,?' Hawaiki, 8 Havaikio and Hawaite: "2 " Encyclopeedia Brittanica Vol. XXIV P. 115-11th Ed., Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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