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________________ १४० श्री उदयसिंह भटनागर हैं । इस दृष्टि से राजस्थान भाषा पुरातत्त्व की खोज यहां पर रहने वाली आदिम जाति के आधार पर ही की जा सकती है। यहां के आदिम निवासियों की भाषा, जीवन, व्यवहार मादि प्राचीन निवास स्थानों के नाम तथा अन्य अनेक प्रकार के उत्खनित प्रागैतिहासिक अवशेष राजस्थान भाषा पुरातत्व की ओर संकेत करते हैं । आधुनिक बोलियों तक में ऐसे तत्व मिलते हैं जो यहां की आदिम तथा अन्य प्राचीन जातियों के भाषा अवशेष कहे जा सकते हैं और जो राजस्थानी के अक्षुण्ण प्राधार हैं। राजस्थानी ध्वनिसंहति रूपयोजना, भावाभिव्यक्ति आदि में प्राचीन तत्व वर्त्तमान हैं; और इसकी खोज से राजस्थानी ही नहीं; भारत में बोली जाने वाली अन्य भाषाओं और उनको बोलने वाली जातियों के इतिहास की रहस्यमय पृष्ठभूमि का उद्घाटन हो सकता है । " राजस्थान की प्राग्- इतिहासिक भूमि पर भी मानव विचरता था, परन्तु यह कहने के लिये हमें प्रमाणों की आवश्यकता है कि इस भूमि पर किमी यादि मानव का उद्भव हुआ हो। जो अवशेष या धन्य सामग्री अब तक उपलब्ध है उससे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि राजस्थान भी प्राग् ऐतिहासिक युग से अनेक जातियों के उत्थान-पतन की भूमि रहा है। आज से कई हजार वर्ष पूर्व राजस्थान में सर्वलि पर्वत मालाओं से विशाल समुद्र स्पर्श करता था, जिसके अवशेष आबू पर्वत श्रेणी में विद्यमान हैं। दक्षिण राजस्थान तथा बीकानेर का एक भाग आाज भी 'बागड़' कहा जाता है, जिसका अर्थ समुद्रतट की कछार भूमि से होता है । ऋग्वेद की रचना के समय राजस्थान का बहुत बड़ा भाग समुद्र में निमग्न था और यहीं पर सरस्वती नदी हिमालय से निकल कर समुद्र में मिलती थी। यह समुद्र पंजाब के पूर्व से लेकर गंगा के मैदान में लहराता था । इसका उल्लेख ऋग्देव की ऋचाम्रों में मिलता है । आधुनिक भूतत्त्व अनुवीक्षण से भी इस कथन की पुष्टि होती है कि तृतीय भूस्तर युग ( Tertiary Era ) में आधुनिक राजस्थान में और मध्यतृतीय भूस्तर उत्थान युग ( Mioseme Epooh) में गंगा के मैदान में समुद्र लहराता था । भूतत्त्व शास्त्री प्रमाणों से यह भी स्पष्ठ है कि भारत में मध्य तृतीय भूस्तर उत्थान युग ( Miosene Epoch ) धौर प्रस्तरोदस्त उत्थान युग ( Paleosene Epoch ) के समय मानव वर्तमान था । सम्भव है यह मानव राजस्थान का मील प्रथवा उसी का कोई आदि पुरुष रहा है, जो इसी समुद्र के तट पर विचरता हुआ पूर्व में, और फिर दक्षिण में बढ़ा और वहां से पूर्वी द्वीपों तक चला गया। जहां प्राज हिन्दमहासागर लहराता है। वहां सिक्तप्रस्तरोक्त उत्पान युग (Permian Epoch ) में एक हिन्द महासागरीय (Indo Oceanic) महाद्वीप था । दक्षिण अफ्रीका और भारत मिसलेन युग ( Mislane Epoch ) के अन्त तक एक ही भूमि तट से । We have thus the Primitive-Negreto tribes, probably the most ancient people to make India their homes. . . . Then these were followed by Austric tribes from Indo-China, and these in their turn by Dravidians from the west. The Aryans next followed and from the North-East and North came TibetoChinese tribes." S. K. Chatterji-Indo-Aryan and Hindi P. 2. 2. Avinash Chandra-Rigvedic India P. 7. ३. वही पृ० ७ ४. वही पृ० ५५६-५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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