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________________ (चौलुक्य) महाराजाधिराज श्रीदुर्लभराज के समय का राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली का (वि०) सम्वत् १०६७ का ** दान-पत्र * इस दानपत्र के सम्पादन का सौभाग्य मुझे इन्द्रप्रस्थीय राष्ट्रीय संग्रहालय के सौजन्य से प्राप्त हुआ है। दानपत्र दो ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण है जो किसी समय तार से जुड़े थे। इनके मिलने का स्थान अज्ञात है; परन्तु इनकी खरीद छापर (राजस्थान) के श्री बुधमल दुघोरिया से हुई थी, अतः बहुत सम्भव है कि ये राजस्थान या गुजरात से मिले हों। पत्र सुरक्षित हैं, और अक्षर प्राय: सुवाच्य हैं। दोनों ताम्रपत्रों में दस-दस पंक्तियाँ हैं, और प्रत्येक पंक्ति में लगभग चौबीस अक्षर हैं। दोनों ही ताम्रपत्रों के उत्तरभाग के अक्षर पूर्वभाग के अक्षरों से कुछ मोटे हैं । लिपि तत्कालीन देवनागरी है । उस समय के व्यवहारानुसार प्रायः पृष्ठ मात्राओं का उपयोग किया गया है। ब के स्थान में व का ही प्रयोग है । एकाध सामान्य अशुद्धि भी है । पंक्ति ६ में मत्त को मंत्त, पंक्ति ७ में तृण को त्रिण, और पंक्ति १६ में नुमतं संभवतः नुयं के रूप में उत्कीर्ण है। पंक्ति १२ का लोइययन गोत्र शायद ठीक रूप में लाट्यायन हो। क्षत्रियपद दो स्थानों में क्षत्रियपद्र रूप में उत्कीर्ण है। बहत सम्भव है कि प्रचलित रूप में इसका उच्चारण सानुस्वार रहा हो। पहला ताम्रपत्र जिसकी संग्रहालय संख्या ६१. १५२८ है २१.१४ १२.२ सेन्टीमीटर का और दूसरा जिसकी संग्रहालय संख्या ६१.१५२६ है २०.६ १२.५ सेन्टीमीटर का है। लेख कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। यह दुर्लभराज चौलुक्य के समय का सर्वप्रथम प्राप्त अभिलेख है । 'प्रबन्धचिन्तामणि' के अनुसार मूलराज के उत्तराधिकारी चामुण्डराज ने संवत् १०५० से संवत् १०६५ तक राज्य किया। इसके बाद वल्लभ राज ने पांच महीने और उन्तीस दिन तक राज्य किया। इसके छोटे भाई दुर्लभराज ने संवत् १०६५ से १०७७ तक राज्य किया। इसके विषय में 'द्वयाश्रयकाव्य' से हमें ज्ञात है कि उसका विवाह नडूलीय चौहान महेन्द्र को बहिन दुर्लभादेवी से हुआ था। इस दानपत्र में निर्दिष्ट दान का दाता महाराजाधिराज श्री दुर्लभराज का तन्त्रपाल क्षेमराज था । उसने स्वमुक्त भिल्लमाल-मण्डल के अन्तर्गत क्षत्रियपद्ग्राम में आये हुए राजपुरुषों और ब्राह्मणादिजातियों को जताया है कि सोम ग्रहण के दिन स्नान और महादेव के पूजन के बाद उसने गोविन्द के पुत्र, माध्यंदिन वाजसनेयी शाखानुयायी लाट्यायन (?)- गोत्रीय भिल्लमाल वासी ब्राह्मण नन्नुक को भाग-भोगउपरिकरादि सहित क्षत्रियपद ग्राम प्रदान किया है। ग्राम की सीमा के अन्तर्गत काष्ठ, तण, पूति गौचर और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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