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________________ डा० छोटूभाई र. नायक सोमवार' ने दिवसे फरीथी गोंसाई जदरुप ने मलवा दिल आकर्षायु निःसंकोच हुँ तेनी कुटीर तरफ उतावलो उतावलो गयो. अपने तेने मलयो. तेनी साथे उच्च कक्षानी घरणी बात थई, अल्लाह ताला तेने ताजुबी उत्पन्न करे एवी शक्ति अर्पेली छे. तेनी समज उमदा प्रकारनी, तेनो स्वभाव उन्नत कोटिनो अपने तेनी परख शक्ति प्रचंड छे. ते साथे तेना मा इलाही ज्ञान संग्रहित छे दुनियां नी माया मां थी ते तेनु दिल मुक्त करी दीघेलु छे. संसार तथा तेमां जे कई छे ते तरफ तेतो पूंठ फेर वेली छे. ते एकांत खूणांमां निःस्पृह जीवन गाले छे. सृष्टि नी चीजो मा थी प्रधगज पुराणु टाट तेनी पासे छे. जेवड़े ते तेनुं गुप्त अंग ढांके छे. पारणीं पीवा माटे तेनी पासे माटींनु वासरण छे. शियाला उनाला अने चोमासा मां ते उघाडो नग्न सिरे भने नग्न पणे रहे छे, अति मुश्केिली थी धातु बालक दाखल थई शके एवी (सांकड़ी) गुफा मां ते रहे छे. २८ बुधवार ने दिवसे फरीथी हुँ गोसांई ने मलवा गयो अने पछी तेवाथी छूटो पडयो निःसंकोच तेनी संगतमां रही ने तेनाथी थयेली जुदाई मारा निष्ठावान दिल उपर बोज समान रही. जहांगीर हि० स० १०२७ ( ई० स० १६१८ ) माँ अमदाबाद मां हतो ते दरमियान पण तेदे एक सन्यासी कांकरियानी पाल ऊपर मली गयो हतो. तेणे नोंध्यु छे के "कांकरिया तलाब नी पाल उपर एक सन्यासी तूटी फूटी कुटिर मां रहतो हतो. ते हिंदु हतो. मांरु दिल संतोनी संगत तरफ आकर्षा रहे तु होवाथी कोई परण प्रकारना संकोच बिना शाही तंबु मांयी नीकलीने फकीरना जेवा तेना बसवाट तरफ हुँ गयो. लांवो समय तेनी पासे हुँ बेसी रह्यो तपास करतां जाणवानुं मलयु के ते सन्यासी ज्ञान, सज्जनता अने त्याग वृति धरावे छे ग्रन परमात्मा अंगेना मर्म ने अध्यात्म ना भेद थी वाफ छे. बाहय रीते ते फकीरी ने दरवेशों जेवो रहे छे अने प्रांतरिक रीते तेणे संसारी माया तो त्याग करे लो छे". आगल उपर जहांगीर तेने विशे लख्यु' छे के 'त्यां अन्य अनेक संतो हता; परंतु ते सन्यासी थी चढे एवो ते मंडली मां कोई बीजो नजरे पडयो नहिं". जैन मुनिना प्रत्ये पण जहांगीर आदरनी लागणी धरावतो हतो. जैनाचार्यो मां हीर विजय सूरि, २ विजयसेन सूरि अने विजय देवसूरि जैन समाज ना गोरव - रत्नो छे. जहांगीर ना समय मां एक एवो बनाव बन्यो के हीर विजय सूरि ना पट्ट घर विजयसेन सूरि ए विजयदेव सूरि ने पोताना पट्ट धर बनाव्या हता. तेना केटलाक शिष्यो ए ते नीमणूक सामे वांधो उठाव्यो भने विरोध कर्यो, ए समये जहांगीर ने एवा ए विजय देवसूरि ने मलवानुं मनथयु अने तेथी तेणे तेमने पोताना दरबार मां पधारवा आमंत्रण एक फरमान द्वारा पाठव्यु । जहांगीर मालवा मां मांडू ( मांडवगढ़ ) मांहतो ने सूरि खंभात मां चोमासु पालता हता. फरमान मलतां तेमणे मांडू तरफ विहार कर्यो अनेत्यां पहोंची शहेनशाह तुजुके जहांगीरो पृ० २८२-८३ अकबर श्रा मुनि ने रमेशाँ पोतानी पासे राखतो रतो अनेदर विवारे सवारे एमना मुछे थी बोलता सूर्य सर स्त्रनाम मालानु एकाग्रता पूर्वक श्रवण करतो रतो. (पद्मश्री मुनिजिन विजयजी - जैन इतिहासनी झलक पृ० १८१ ) ३. पद्मश्री जिनविजय जी — जैन इतिहास नी झलक- १८७ १. २. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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