SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेरा विश्वास है। राजस्थान में ही प्राचार्य श्री ने जन्म लिया और अंतिम जीवन राजस्थान में ही बिता रहे हैं । इस दृष्टि से इस में राजस्थान की भाषा और संस्कृति के विषय में विशेष देने का हमारा प्रयत्न था, किन्तु उसमें हम विशेष सफल नहीं हुए। फिर भी जो कुछ हो पाया है वह विशेष उपयोगी सिद्ध होगा इसमें संदेह नहीं है। प्राचार्य श्री जिनविजयजी के प्रति आदर रखने वाले देश-विदेश के विद्वानों ने इसमें भारतीय दर्शन, मूर्ति कला, संगीत, साहित्य, पुरातत्व आदि विषयों में जो लिखा है वह बहुमूल्य है। यहां हम विशेष रूप से डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल को याद करते हैं जिन्होंने इसके लिये भारतीय कला के विषय में लेख दिया किन्तु वे इस अभिनन्दन ग्रन्थ को देख नहीं सके । इस बीच उनका स्वर्गवास हो गया। आचार्य श्री जिनविजय जी का विद्वज्जगत् में जो नाम है और कार्य है उसके अनुरूप यह अभिनन्दन ग्रन्थ बना नहीं है-इसे स्वीकार करना ही चाहिए। किन्तु जो भी अल्प-स्वल्प बन पड़ा यह विद्वज्जगत् के समक्ष रख रहे हैं । इस ग्रन्थ में जो भी कमी रह गई हो-उसके लिये क्षमाप्रार्थी हूं और इस अभिनन्दन के संयोजको में खास कर श्री पूर्णचन्द्र जैन तथा श्री जवाहरलाल जैन को अनेक कार्यों में व्यस्त रहने पर भी यह कार्य पूरा किया एतदर्थ उनका आभार मानता हूं । दलसुख मालवरिणया ला०प० विद्या मंदिर, अहमदाबाद-६ ता० ३१-३-७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy