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________________ होम कुस्मश्रीजी म. का कुसुम-सा महकता जीवन जिस मार्ग पर आपश्री जी को जन्मदात्री -परम विदषी साध्वीरत जननी चली, उसी पथ का अनुसरण आपने भी श्री विजेन्टकमारी जी किया निर्भय होकर, यही तो शूरवीर वीरांगनाएँ - होती हैं जो कष्टों की भी परवाह किए बिना दुर्गम तारोफ में जिनकी, शब्द ही खो जायें। पथ पर अग्रसर हो जाती हैं। हमारी चरितनाकैसे करें तारीफ उनकी, जरा आप ही बतायें ? यिकाजी (श्री कुसमवती) म० भी संयम के पथ पर हमारी गौरवशालिनी मातृभूमि सन्तों की तपो- अग्रसर होकर निर्भय रूप से चलीं। मय भूमि रही है । सन्त ही भारतीय संस्कृति के मैं आपकी ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप त्रिवेणी प्राण हैं । श्रमण-श्रमणियों की साधना से ही यह साधना का अभिनन्दन करती हुई, शासनेश संस्कृति अंकुरित-पल्लवित-पुष्पित हुई है। प्रभु से प्रार्थना करती हूँ कि आप दीर्घायु हों। गुलाब का फूल जिस वन उपवन में जहाँ भी मेरा मुखरित मन पल-पल स्वयं ही गुजन कर विकसित होता है, वहाँ के वातावरण को सुरम्य । उठता है। सुहावना और सुवासित बना देता है । जन मन के तुम हमारे हो सदा ही, हम तुम्हारे हैं। 1 मानस को तरोताजा बना देता है। उसे इस बात भावनाओं के सुमन, सब आज वारे हैं। का जरा भी विचार नहीं आता कि कोई मुझे देख कह रहा है यह नित्य, धरती का कण-कण । ह रहा है या नहीं। कोई मेरा गुणगान भी कर रहा तुम जिओ इतने साल, कि जितने सितारे हैं ॥ 8 तुम जिआ इतन स Pal या नहीं । मैं किसी बहुत बड़े बगीचे में खिला हूँ। या एकान्त में। IT जीवन का गुलाब सदा कष्टों के काँटों में ही 'संयम पथ की अमर साधिका' विकसित होता है। काँटों का मधुर मुस्कान से . सुवासित करने वाला जीवन ही महान् जीवन है __ (साध्वीरत्न श्री विजेन्द्र कुमारी जी म० की शिष्या) साध्वी 'निधि ज्योति जी' महान साधक व साधिकाएँ कभी कांटों से घबराते नहीं प्रत्युत काँटों को भी फूल बनाने की, उनकी जग में जीवन श्रेष्ठ वही, Hiचुभन को सुवास में परिणत करने का प्रयत्न करते हैं। उनका एक ही काम रहता है, विकसित होना ___ जो फूलों सा मुस्कराता है । और अपने सद्गुणों की सौरभ को विस्तृत कर अपने गुण सौरभ से जग में, कण-कण को महकाता है। देना। भारतीय संस्कृति में-श्रमण संस्कृति में उसके परम पूज्या श्रद्धया महासती श्री कुसुमवतीजी सता श्री कुसुमवतीजी महान सत्पुरुषों व आत्मसाधकों का गौरवपूर्ण म० का जीवन भी एक महकते हुए गुलाब की तरह स्थान है। यहाँ पर आज से नहीं बल्कि अनादिकाल से तीर्थंकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव और अनेक __महासती जी म० के जीवन के कण-कण में और त्यागी, तपस्वी महान आत्माओं ने अवतार लेकर मन के अणु-अणु में साधना और तप का स्रोत बह इस धरा को पवित्र किया, और कर रहे हैं, तथा ह रहा है । जिस प्रकार पुष्प में सुगन्ध, दूध में धव- करते रहेंगे। उनकी सुकीर्ति-सुयश, तप, त्याग लता, चन्द्र में शीतलता समाई हुई है। उसी प्रकार वृत्ति की ऊँचाइयाँ तथा अध्यात्मवाद का दिव्य आपके रोम-रोम में साधना अभिव्यक्त है। प्रकाश रवि रश्मि सम यत्र-तत्र-सर्वत्र व्याप्त है। प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना ora साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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