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________________ ...-7127ोटी गई। कल का अध्ययन त नाओं से ओत-प्रोत था तथा वे पूज्य म. सा. के आपकी ममता माँ की ममता से भी बढ़क प्रति सर्वात्मना समर्पित थे अतः उनको मेरी भावना आपसे माता-सदृश अगाध वात्सल्य प्राप्त हुआ है सनकर प्रसन्नता हुई। उन्होंने कहा-मेरी ओर से जिसे मैं किन शब्दों से अंकित करू ? माँ जैसे तो मना नहीं है लेकिन तेरे पिताश्री की आज्ञा अपने सुख-दुःख की परवाह न करके अपनी सन्तान मिलना बहुत मुश्किल है । मैंने कहा-आपका साथ के लिए सर्वस्व अर्पण करती है ठीक उसी प्रकार होगा तो कुछ भी कठिन नहीं है । पूज्य गुरुवर्या माँ है; बचपन से लेकर आज तक समय बीतता गया और समय के साथ-साथ पूज्या गुरुणी प्रवरा का जो अपार वात्सल्य मिला है मेरी भावना भी दृढ़ है उसे मैं शब्दों द्वारा व्यक्त नहीं कर सकती। भी जारी था । जब भी छुट्टियाँ होतीं कुछ दिनों के अक्सर देखा जाता है कि जो विद्वान् हैं उनमें लिए म. सा. के पास चली जाती थी। मेरी संयम सेवा का गुण कम ही होता है, लेकिन गुरुणीजी ४ भावना दृढ़ बनती गई । अन्ततः पूज्य गुरुदेव उपा- महाराज इसके अपवाद रहे हैं आपने अपनी गुरुणी ध्याय श्री पुष्करमुनिजी महा. के द्वारा सन् १९७३ तपोमूर्ति श्री सोहनकुंवरजी महाराज को रुग्ण में अजमेर नगर में मेरी आहती दीक्षा सम्पन्न हुई। अवस्था में अथक सेवा की। पूज्य सोहनकुंवरजी मेने बहिन महाराज का शिष्यत्व स्वाकार किया। महाराज पाली में दस माह तक असाध्य व्याधि से दीक्षा के पश्चात् मेरा अध्ययन गुरुवर्या श्री के पीड़ित रहे। पूज्य माताजी महाराज श्री कैलाश कुंवरजी म. ब्यावर और अजमेर के बीच छोटे से सान्निध्य में हुआ। आपको आगमों का गहरा ज्ञान है । आप आगम के रहस्यों को जिस सरलता और गांव खराया में असाध्य व्याधिग्रस्त हो गये । उस समय रात-दिन की परवाह किये बगैर आपने जो सुगमता से समझाते हैं कि दुरूह से दुरूह विषय भी सेवा की, उसको कैसे लिखा जाय? मैंने अपनी आँखों सहज समझ में आ जाता है, आगमों का ही नहीं से देखा है । आप रात-रात भर उनके पास जागते दार्शनिक विषयों का भी गहरा अध्ययन है । आपश्री बैठे रहते थे। माताजी म. को हार्ट की तकलीफ की ज्ञान गरिमा को देखकर हृदय गद्गद् हो जाता थी। विहार करते हुए हार्ट में दर्द होने लग जाता, है, मस्तक झुक जाता है। सोते-बैठे भी सीने में जोरों से दर्द होने लगता । ____ अध्ययन की अपेक्षा अध्यापन कार्य कठिन है। कठिन है। आप छाया की तरह हर समय उनके साथ रहते अध्ययन में स्वयं को पढ़ना होता है, जबकि अध्या- और उनकी सेवा करते। पन में स्वयं की योग्यता का परीक्षण होता है। आज भी मैं देखती हूँ, छोटी सतियों को भी अध्ययन करने वालों की योग्यता के अनुसार विषय कुछ तकलीफ या वेदना होती है तो आप उनकी को संक्षेप और विस्तार से समझाना पड़ता है। तन-मन से सेवा में लग जाते हैं। आपका हृदय अध्यापन कठिन कार्य है, फिर भी गुरुणीजी महा- किसी की वेदना सहन नहीं कर सकता। आपका राज उसको सहज रूप में सम्पन्न करने में कुशल हैं सेवा भावना को देखकर हर कोई प्रेरणा पा आपने अपनी शिष्याओं, प्रशिष्याओं को तो अध्ययन कराया ही है। अन्य भी अनेक साध्वियों ने सकता है। अध्ययन किया तथा अनेक बालक-बालिकाओं ने गुरुणीजी महाराज किसी भी कार्य को अपना धार्मिक ज्ञान सीखा। लक्ष्य/ध्येय बना लेते हैं तो उस पर निर्भीक होकर आपका हृदय ममता/वत्सलता से परिपूर्ण है। बढ़ते हैं। उनमें कृतित्व शक्ति गजब की है। प्राणीमात्र के प्रति आपकी वत्सलता प्रवाहित है कश्मीर विहरण के लिए जब जम्मू से विहार प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना 3५ साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ । Education Internatius
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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