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________________ सता व स्पष्टता प्रदान करती हैं। आपके प्रवचन कहानी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि आप मूल विषय जहाँ एक ओर आप सफल प्रवचनकर्ती हैं वहीं से भिन्न विचार प्रकट नहीं करती हैं। मूल विषयों दूसरी ओर आप मधुर भाषा शैली में कहानी की से सम्बन्धित उद्धरण और दृष्टान्त ही प्रकट करती रचना भी करती हैं। कहानी गद्य विधा की एक है । आपकी प्रवचनकला से श्रोता ऊब का अनुभव सशक्त अभिव्यक्ति है। मनुष्य जो कुछ देखता है, नहीं करते, वरन वे उसमें डूब से जाते हैं, आत्म भोगता है वह दुसरे को बताना चाहता है। कहना विभोर हो जाते हैं। चाहता है। अभिव्यक्त करना चाहता है। यह आपके प्रवचनों से दुष्प्रवत्तियां समाप्त होती हैं मनुष्य की सहज प्रवृत्ति है और इसी प्रवत्ति के और सप्रवतियों का पोषण होता है। श्रोताओं में परिणाम स्वरूप कहानी को जन्म मिला। इस आप जागृति की एक लहर उत्पन्न होती है। आपकी बीती में कथा या कहानी के अनेक अंश उभरे। प्रवचन शैली उच्चकोटि की कही जा सकती है। दूसरे शब्दों में हम इसे कहानी के प्रकार अथवा भेद कब, क्या और कैसे भाव व्यक्त करना. यह आप कह सकते हैं। अच्छी तरह से जानती हैं। आप इस तथ्य से भी कथा की उत्पत्ति कथ धातू से हई है और 1Y अच्छी प्रकार परिचित हैं कि लोगों पर कोई भी विद्वानो ने इसकी परिभाषा अपने अपने ढंग से कीK बात जबरन थोपी नहीं जा सकती है। इसलिए आप है। सामान्यतः तो गद्यात्मक शैली में लिखी गई। श्रोताओं की मनोदशा के अनरूप प्रवचन देती हैं। लघुकथा की कहानी कहते हैं। एक पाश्चात्य विद्वान इसका परिणाम यह होता है कि आपके प्रवचन । न ने कहानी की परिभाषा करते हुए लिखा हैप्रभावी होते हैं और लोग उनके अनरूप अपना 'कहानी' एक ऐसा गद्यात्मक आख्यान है जो आध कार्य एवं व्यवहार रखने का प्रयास करते हैं। घंटे से लेकर दो घण्टे तक के समय में एक ही बैठक में समाप्त हो जाए और पाठक के हृदय में । आपके प्रवचनों के विषय वसे तो जनधनु- संवेदना उत्पन्न कर सके । एक अन्य विद्वान के अनुसार होते हैं किन्तु समय समय पर आप समाज सार 'एक छोटी कहानी ऐसी कहानी हो जिसमें सुधार विषयक भी लिखती हैं। साधारण घटनाओं और आकस्मिक दुर्घटनाओं का आपके प्रवचनों की भाषा सरल, सहज, सरस अंकन हो । कथावस्तु गतिशील हो और अप्रत्याशित और बोधगम्य है। जनता को जनता की भाषा में एवं असम्भव चरम विकास में उसकी समाप्ति हो।' कहना आप अच्छी प्रकार जानती हैं, यही कारण है डा० श्यामसुन्दर दास ने कहानी में नाटकीयता कि आपके प्रवचनों में लोक भाषा की शब्दावली पर बल दिया और प्रेमचन्द ने कहानी को एक भी खूब मिलती है । कहावतों, लोकोक्तियों, मुहा- ऐसी रचना माना है जिसमें जोवन के किसी एक वरों का भी यथास्थान स्वाभाविक रूप से प्रयोग अंग या किसी एक मनोभाव को प्रदर्शित करना ही हुआ है। लेखक का उद्देश्य रहता है। आपके अनेक प्रवचन लिखे हुए हैं जो अप्रका- उपर्युक्त विविध परिभाषाओं को देखने से हमें शित हैं, आशा है शीघ्र ही प्रकाशित होंगे। आपके 'कहानी' क्या है ? समझ में आ जाता है। कहानी के कुछ प्रवचन उदाहरण स्वरूप पिछले पृष्ठों में दिये रूप भी कई मिलते हैं । घटनाप्रधान, चरित्रप्रधान, जा चुके हैं । पाठक उन्हें पढ़कर आपकी प्रवचनकला वातावरणप्रधान एवं भावप्रधान कहानियाँ होती से परिचित होंगे ही। हैं। किन्तु लम्बी कहानी, लघुकथा, रूपककथा, ५२६ सप्तम खण्ड : विचार-मन्थन 5 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International Pornprivate personalittleoonly . www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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