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________________ Be साहित्य समीक्षा महासती श्री कुसुमवती जी महाराज का साहित्यः एक समीक्षात्मक चिन्तन -उपप्रवर्तक श्री राजेन्द्रमुनि पूजनीया महासती थी कुसुमवती जी महा. के का प्रकृष्ट कथन 'प्रवचन' है। प्रवचन में आत्मा 3 कुसुमवत् जीवन की झांकी विस्तारपूर्वक पिछले का स्पर्श, साधना का तेज और जीवन का सत्य पृष्ठों में आ चुकी है। उस विषय में अथवा उनके परिलक्षित होता है । उसका प्रभाव तीर सी वेधजीवन की विशेषताओं पर पुनः लिखकर विषय की कता लिए होता है। उसमें प्रयुक्त शब्द, मात्र शब्द पुनरावृत्ति ही करना है। यहाँ हमारा मूल उद्देश्य नहीं होते, वे जीवन की गहराइयों और अनुभवों महासती जी के कृतित्व पर विचार करना है। की ऊँचाइयों का अर्थ लिए होते हैं। बृहत्कल्प महासती श्री कुसुमबती जी म. सा. मौन साधिका भाष्य में कहा हैहैं । वे प्रचार-प्रसार से तो दूर रहती ही हैं। उन्होंने गुणसूठियस्स वयणं घयपरिसित्तुव्व पावओ भवइ। स्वरचित साहित्य का अद्यावधि प्रकाशन भी नहीं गुणहीणस्स न सोहइ नेहविहूणो जह पईवो ॥ करवाया है । आज तक उनके द्वारा रचित कुछ अर्थात् गुणवान् व्यक्ति का वचन घृत-सिंचित भजन स्तवन ही प्रकाशित हुए हैं । वे भी सार्वजनिक अग्नि की तरह ओजस्वी एवं पथ प्रदर्शक होता है। लाभ की दृष्टि से ध्यान में रखकर प्रकाशित कर- जबकि गुणहीन व्यक्ति का वचन स्नेह रहित (तेल वाए गए हैं। इसका यह अर्थ कदापि नहीं लगाया शून्य) दीपक की भाँति निस्तेज और अन्धकार से रनमें लेखकीय क्षमता नहीं है। महासता परिपर्ण होता है। जी ने प्रवचन, कहानी, निबन्ध साहित्य का सृजन परम विदुषी महासती श्री कुसुमवती जी म. तो किया ही साथ ही उन्होंने समय-समय पर अपने . सा. एक सफल प्रवचन लेखिका हैं। अपने सुदीर्घ ॥ मानस पटल पर उभरने वाले चिन्तन का भी सहज तितिक्ष जीवन में एक ओर जहां शास्त्रों का गहन (HEOS कर रखा है। इसी प्रकार वे अध्ययन अध्यापन में अध्ययन किया है, वहीं समाज में व्याप्त रूढ़ियाँ, विशेष रुचि रखती हैं। यही कारण है कि उनकी अन्धविश्वास और परम्पराओं को भी निकट से शिष्याएँ प्रशिष्याएँ उच्च योग्यता प्राप्त हैं। महा- टेखा । काळ अन्धविश्वासों और रूढियों को देखसती जी के इसी कृतित्व पक्ष पर यहां विचार किया कर तो आपका कोमल हृदय द्रवित हो उठता है तब जाएगा। आप अपने प्रवचन में सटीक चोट करती हैं। जिस प्रवचन समय आप सैद्धान्तिक प्रवचन फरमातो हैं तब __ प्रवचन गद्य साहित्य की एक विशिष्ट विधा आपका तलस्पर्शी ज्ञान दृष्टिगोचर होता है । अपने है । साधारण वाणी या कथन वचन कहा जाता है। कथन को आप शास्त्रीय गाथाओं, उदाहरणों से परन्तु सन्तों, विचारकों एवं आध्यात्मिक अनुभवियों पुष्ट करती हैं और विभिन्न दृष्टान्तों से उसे सर सप्तम खण्ड : विचार-मन्थन ५२५ C) 6.0 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ JallrEducation Internationar Por Private & Personal Use Only...... www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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