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________________ अभिनन्दन है. अभिनन्दन है सदगुणा री सौरभ जग में, फैल रही है प्यारी जी महासती श्रीकुसुमवतीजी, महिमा जिन की भारीजी अगणित गुण जिन में भरे, जीवन प्रातः वन्दनीय है सदा, गावे पुण्यवान ही पुण्य कमा कर इस धरती पर आते जी निर्मलता और गौरवता से जीवन धन्य बनाते जी सुसंयम की गाथा कथकर गाते हैं नर-नारी जी । सती शिरोमणि कुसुमवती जी अमित ज्ञान भण्डार जी ऐतिहासिक आदर्श जीवन जी मृदुता भरी अपार जी प्रतिभासम्पन्न महासतीवर, जावे नित बलिहारी जी । जन्म स्थान उदयपुर जिनका वीर-भूमि जी कहलावे गणेशलाल जी गोत्र कोठारी मात कैलाश सुहावे जी उगणी सौ बरियासी विक्रम सोमवार शुभकारी जी नाम दिया है नजरकुंवर शुभ जन-मन को प्रिय लागे जी सूरत सुहानी है मन मोहन भावना जागे जी धर्म-भावना बढ़ी दिनोदिन बचपन है सुखकारी जी त्याग Jain Education International संयम रुचा अन्तर् मानस में और न मन में भावे जी विरक्त अवस्था मोक्षमार्ग है दृढ़ता मन में लावे जी परम पूजनीया गुरुणी श्रीजी सोहनकुंवरजी प्यारीजी १६ - कविरत्न श्री मगन मुनि जी वही महान । मंगल गान ॥ म. 'रसिक' देलवाड़ा में संयम लीनो कुसुमवती दियो नाम जी उगणी सौ इकराणु मांही सफल कियो है काम जी दस वर्ष की अल्पायु में, संयम व्रत लियो धारी जी साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ For Private & Personal Use Only उपाध्याय जी श्रमण संघ के पुष्कर मुनिवर प्यारे जी प्रखर प्रवक्ता जन वल्लभ हैं उज्ज्वल नयन सितारे जी गुरुदेव की सुदृष्टि से, अभिवृद्धि हुई सारी जी न्याय तीर्थ और साहित्यरत्न है व्याकरण का है ज्ञान जी संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी गूर्जर है राजस्थानी ज्ञान जी आगम का है ज्ञान गहन अति, मृदुभाषी हितकारीजी ओजभरी वाणी मनभावन पुलकित है जन सारा जो जिनवाणी का भर-भर प्याला आप पिलावन हारा जी सन्मति मारग सदा बतावे सूरत मोहनगारी जी वर्ष पचास संयमी जीवन के पूरण आज मनावां जी मंगलकामना हो दीर्घायु हिवड़े हरष भरावां जी अभिनन्दन है अभिनन्दन है, रसिक शत-शत बारीजी । प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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