SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ न्यायतीर्थ हैं, काव्यतीर्थ हैं जैन सिद्धान्ताचार्य हैं और साथ साहित्यरत्न कर सभी संवारे कार्य हैं ||१३|| महावीर की वाणी ऐसे मधुर स्वरों में गाई है जगह-जगह जाकर जनता की जड़ से नींद उड़ाई है || १४ || महिलाओं की ओर आपका ध्यान बहुत ही जाता है महिलाओं के साथ पता न ऐसा कैसा नाता है ||१५|| भ्रम के भय के अन्धकार में भटक रही जो भारी है उसे बताया अय नारी ! तू सबला है, सन्नारी है ॥१६॥ बड़े-बड़े दिग्गज मुनिवर भी जिसे छुड़ान पाते हैं चुटकी से मिथ्यात्व पता न कैसे आप छुड़ाते हैं ॥१७॥ Jam Education Internationen जैनागम स्वाध्याय आपको प्राणों से भी प्यारा है एक शब्द में जीवन इस पर अगर कहें सब वारा है ||१८|| प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना मारवाड़, मेवाड़, देहली हरियाणा जम्मू पंजाब उत्तर मध्य प्रदेश प्रान्त में पहुँचे जाकर किया खिताब ॥ १६ ॥ साध्वीश्री चारित्रप्रभा जी दिव्यप्रभा 'गरिमा जी' और गुणी आपकी शिष्यायें हैं सेवा समता में सिरमौर ||२०|| 'दिव्यप्रभा जी' बहन ममेरी दीक्षित आपके पास किए एम. ए. और पी-एच. डी. संस्कृत में, शत-शत शाबाश || २१ || ' दर्शनप्रभा' सती श्री 'प्रतिभा' सती 'राजश्री' जी गुणखान 'विनयप्रभा जी' 'रुचिकाजी' फिर आगम-ज्ञाता ज्ञाननिधान ||२२|| 'अनुपमा' 'निरुपमाजी' श्रमणी श्रमण संघ की शान अहो ! विदुषी सभी प्रशिष्याओं को तप जप निर अभिमान कहो ||२३|| चन्दनमुनि पंजाबी के मन छाई खुशी अनन्ती जी मंगलमय हो सती 'कुसुम' को दीक्षा स्वर्ण जयन्ती जो ||२५|| कठिन बताना कठिन गिनाना जितना पर उपकार किया जहाँ पधारे श्रमण संघ का भारी जय-जयकार किया || २४|| साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Por Private & Personal Use Only १५ www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy